" कांगो बेसिन के पिग्मी [The Pygmies of Congo basin /African pygmies ] "
👉 सामान्य परिचय :- अफ्रीका के भूमध्य रेखीय वर्षा वनों में निवास करने वाली पिग्मी जनजाति के लोग अत्यंत छोटे एवं नाटे कद के होते है। पिग्मी लोगों को नीग्रीटो के नाम से भी जाना जाता है। पिग्मी लोगों को सबसे प्राचीन आदिकालीन मानव माना जाता है। आरंभिक विकासवादियों द्वारा इस मानव समुदाय को पशुओं के अधिक निकट माना गया है। पिग्मी लोग भूमध्य रेखीय वनों से कंद ,मूल, फल, बेर, खाने योग्य पत्तियाँ, कीड़े, मकोड़े, मेंढक, छिपकलीयाँ तथा अन्य प्रकार के पशुओं का आखेट कर उनका संग्रहण करते है तथा अपना जीवन यापन करते है। पिग्मी लोगों में कृषि, पशुपालन, स्थाई आवास, बहु संगोत्र, सामाजीकरण, उपहार तथा शिकारी को पकड़ने, विजय के लिए युद्ध, सामाजिक वर्ग, तकनीकी ज्ञान, नागरिक नियम, शिल्प, टोकरी बनाना, वस्त्र बनाना, नागरिक वास्तुकला तथा धार्मिकता का अभाव पाया जाता है। पिग्मी जनजाति एक आखेटक जनजाति है, जो भूमध्य रेखीय वर्षा वनों में चलवासी एवं घुमक्कड़ जीवन व्यतीत करतती है।
👉 निवास क्षेत्र (Habitat) :- पिग्मी लोगों का मुख्य निवास कांगो बेसिन के पूर्वी भाग में इतुरी नदी का तटीय क्षेत्र है। इस क्षेत्र में पिग्मियों के अनेक उपवर्ग पाये जाते है। जो भूमध्य रेखा से 3 डिग्री उत्तरी अक्षांश और 3 डिग्री दक्षिणी अक्षांश के मध्य स्थित भूमध्य रेखीय वर्षा वनों में बिखरे हुए पाये जाते है। पिग्मी लोगों की संख्या अत्यधिक कम है। ये लोग पश्चिम में गैबन से लेकर पूर्व में युगांडा तक यत्र-तत्र बिखरे हुए रूप में पाये जाते है। पिग्मी लोगों के कुछ वर्ग दक्षिण पूर्वी एशिया में फिलीपाइन के वनों तथा न्यू गिनी के वनों में भी पाये जाते है। पिग्मियों का मुख्य निवास भूमध्यरेखीय वर्षा वनों का क्षेत्र है।
👉 प्राकृतिक पर्यावरण :- पिग्मी लोगों का निवास कांगो बेसिन में विषुवत रेखा के दोनों ओर पाया जाता है। ये लोग अधिक ऊँचे भाग को छोड़कर कम उँचाई वाले निम्न तापमान वाले भागों में निवास करते है। इस प्रदेश की जलवायु अत्यधिक गर्म है। इस प्रदेश में वर्षभर औसत तापमान 27 डिग्री से 30 डिग्री सेंटीग्रेड रहते है। वर्षा वर्षभर संवहनीय वर्षा होती है। इस प्रदेश में वर्षा वार्षिक औसत 250 सेंटीमीटर से अधिक पाया जाता है। मार्च एवं सितंबर अधिक वर्षा के महीने होते है। उच्च तापमान उच्च आद्रता तथा शांत वायु के कारण यहांँ का पर्यावरण उमस भरा रहता है। यह मानव निवास के अनुकूल नहीं है। वर्ष पर्यंत उच्च तापमान और अधिक वर्षा के कारण तथा इन सघन वनों में अनेक प्रकार के विषैले तथा घातक जीव पाये जाते है। जिस कारण सदैव मानवीय जीवन कष्टदायक बना रहता है। कांगो बेसिन की उष्णआर्द्र जलवायु सदाबहार वनों के विकास के लिए उपयुक्त है। इस क्षेत्र में विश्व के सर्वाधिक सघन वन पाये जाते है।
इन वनों में वृक्षों की ऊंचाई 50 मीटर तक पायी जाती है। ये वन इतने अधिक सघन पाये जाते है, कि सूर्य का प्रकाश धरातल तक नहीं पहुंच पाता है तथा वृक्षों के नीचे अनेक प्रकार की वनस्पतियांँ उग आती है। पिग्मी लोग इन वनों से चमड़ा रंगने के लिए विभिन्न प्रकार के रंग, अर्क जलाने के लिए लकड़ी ,घटापर्चा, रबड़, तेल तथा अनेक प्रकार की औषधियाँ जैसे कुनैन, कपूर, कोकीन आदि प्राप्त करते है। इन वस्तुओं का अंतरराष्ट्रीय बाजार में अत्यधिक मूल्य होता है। पिग्मी होने इस प्रकार के अनुप्रयुक्त अनुपयुक्त तथा विपरीत पर्यावरण मैं अपने आप को समायोजित कर लिया है। ये लोग यहांँ स्थाई निवास न बनाकर चलवासी या घुमक्कड़ जीवन व्यतीत करते है।
👉 पिग्मी जनजाति के प्रमुख वर्ग :- पिग्मियों के जिन वर्गो के विषय में सर्वाधिक जानकारी उपलब्ध है। वे छितरे हुए रूप में उष्णकटिबंधीय मध्य अफ्रीका के जायरे, कांगो, कैमरून,गैबान, रवांडा, बुरुण्डी में निवास करते है। अफ्रीका महाद्वीप के पिग्मियों को पूर्वी, केंद्रीय तथा पश्चिमी वर्गों में विभाजित किया जाता है। पिग्मी लोगों के मुख्यतः 4 वर्गो के विषय में अधिक जानकारी उपलब्ध है।
(1) मबूती :- ये अफ्रीका के पूर्वी भाग में जायरे के इतुरी वन प्रदेश में निवास करते है।
(2.) तवा :- ये कांगो गणराज्य के भूभग पर निवास करते है।
(3.) बिंगा/बोन्गो (Bongo): - बोन्गो पिग्मी गैबोन में निवास करते है।
(4.) बत्वा :- कांगो बेसिन के बत्वा समूह के बारे में सर्वाधिक जानकारी उपलब्ध है। ये पशुपालक तुत्सी तथा कृषि कार्य करने वाले हुटु के साथ जायरे की कीव झील के पास मैदानी भाग में निवास करते है।
पश्चिम की ओर कांगो नदी के दक्षिण में स्थित दलदली क्षेत्र में त्वा और बत्वा पिग्मियों का एक विस्तृत समूह निवास करता है।
• बत्सवा वर्ग के पिग्मी मुख्यतः मछली पकडने और पशुओं के शिकार पर निर्भर है।
• कांगो नदी के उत्तर में उबान्गों नदी के वन प्रदेश में बबिन्गा जाति निवास करती है। जो सांस्कृतिक दृष्टि से पिग्मी जाति के अत्यधिक निकट है।
• त्वा और बत्सवा जातियांँ आज भी मुख्यतः आखेटक, खाद्य संग्राहक एवं खानाबदोश है।
👉 शारीरिक लक्षण (Physical traits) :- पिग्मी जनजाति के लोगों का संबंध नीग्रोइड या नीग्रीटो प्रजाति से है। इन लोगों का कद नाटा होता है। इनकी औसत लंबाई 132 सेंटीमीटर होती है। यह संसार की सबसे छोटे कद की प्रजाति है। अतः इन्हें बौना भी कहते है। स्त्रियों की औसत ऊंचाई 140 सेंटीमीटर तथा पुरुषों की औसत ऊंचाई 150 सेंटीमीटर के मध्य पाई जाती है। पिग्मी लोगों का कद नाटा, छोटा, रंग काला, नाक चौड़ी एवं चपटी, होठ मोटे और चेहरा आगे की ओर निकला हुआ तथा बाल छल्लेदार होते है।
• नीग्रिटो प्रजाति के नाटे लोगों को नीग्रिलो (Negrillo ) कहते है।
• अफ्रीकी नीग्रिलो (पिग्मी) सर्वाधिक छोटे कद के होते है। जिनकी औसत ऊंचाई 140 सेंटीमीटर पायी जाती है।
👉 आर्थिक क्रियाकलाप (Economic Activity) :-
(1.) आखेट (Hunting) :- कांगो बेसिन में निवास करने वाले पिग्मी लोग भोजन संग्राहक और आखेटक है। ये छोटे-छोटे समूहों में निवास करते है। आखेट या शिकार पिग्मी लोगों के जीवन यापन का मुख्य आधार है।
• पिग्मी लोग एक कुशल शिकारी होते है। ये शिकार की खोज में निरंतर भूमध्य रेखीय वनों में घूमते रहते है। पिग्मी लोगों द्वारा तालाबों ,झीलों एवं नदियों से मछलियाँ भी पकड़ी जाती है। साथ ही जंगल से कंदमूल, फल, शहद आदि वस्तुओं का संग्रहण किया जाता है। भोजन सामग्री एकत्रित करने का कार्य मुख्यतः स्त्रियों द्वारा किया जाता है। पुरुष भी इसमें सहयोग करते है।
• पिग्मी लोगों की आवश्यकताऐं अत्यंत सीमित होती है। ये केवल भरण पोषण से ही संबंधित होती है। इनका जीवन पूर्णतया वनों पर आधारित है।
• पिग्मी लोगों द्वारा छोटे जानवरों से लेकर हाथी जैसे विशालकाय जानवरों का भी शिकार किया जाता है। छोटे जानवरों का शिकार एक या दो व्यक्ति मिलकर करते है। जबकि बड़े जंतुओं का शिकार सामूहिक रूप से किया जाता है। पिग्मी लोगों द्वारा शिकार के लिए तीर कमान का प्रयोग किया जाता है। इन लोगों द्वारा विषाक्त तीरों का प्रयोग किया जाता है।
• पिग्मी लोगों द्वारा हाथी का शिकार कर इसके मांँस को खाया जाता है तथा हाथी के रक्त को पेय पदार्थ के रूप में प्रयोग किया जाता है।
• पिग्मी लोग पक्षियों को मारने के लिए साधारण विषाक्त तीरों का प्रयोग करते है। यह विष वृक्षों से प्राप्त किया जाता है।
• पिग्मी कुशल शिकारी होने के साथ-साथ अनेक पशु पक्षियों की आवाज की नकल करने में भी प्रवीण होते है। पशु पक्षियों की बोली की नकल कर ये उनका शिकार करते है। पिग्मी लोग पेड़ों पर बड़ी फुर्ती के साथ चढ़ जाते है।
• पिग्मी लोगों द्वारा प्रातः काल कुछ नाश्ता किया जाता है। इनका मुख्य भोजन सूर्यास्त के समय ही होता है। • जिस खाद्य पदार्थ को पिग्मी लोग कच्चा नहीं खा सकते है। उसे हरे बांस की लंबी नली में पकाकर खाया जाता है।
• पिग्मी लोगों का प्रिय भोज्य पदार्थ केला होता है।
(2.) वस्तु विनिमय (Goods Exchange) :-कांगो बेसिन में निवास करने वाले पिग्मी लोगों द्वारा अपने समीप के लोगों से वस्तु विनिमय किया जाता है। कांगो बेसिन में पिग्मी समुदाय के लोगों के समीप बंटू कृषकों की स्थाई बस्तियांँ पायी जाती है। ये लोग एक दूसरे की भाषा से अनभिज्ञ होने के कारण वस्तु विनिमय द्वारा वस्तुओं का आदान प्रदान करते है। इसे मौन व्यापार (Silent trade) कहा जाता है । पिग्मी लोगों द्वारा अपने समीप के कृषक लोगों से वस्तु विनिमय द्वारा आवश्यकता की वस्तुओ जैसे केला,रतालु, आदि प्राप्त किये जाते है। इस मौन व्यापार का मुख्य आधार आपसी विश्वास होता है। कभी-कभी वस्तु के मूल्य के बराबर उपयुक्त मात्रा में वस्तु के नहीं मिलने के कारण इनमें झगड़े भी होते रहते है।
👉 भोजन (Food) :- पिग्मी लोगों द्वारा आखेट से प्राप्त पशु पक्षियों का मांँस तथा जंगल से एकत्रित किए गए कंदमूल, फल, मछलियाँ ही इनका प्रमुख भोजन है। पिग्मी लोग दीमक, चीटियों के लार्वा, शहद आदि का भी भोज्य पदार्थ के रूप में प्रयोग करते है। ये लोग मांँस को भूनकर तथा कच्चा दोनों प्रकार से खाते है।
• हाथी का रक्त इनका मुख्य पेय पदार्थ है।
• पिग्मी लोगों का प्रिय भोजन पदार्थ केला होता है। छोटे कद के होते हुए भी एक पिग्मी द्वारा 50 से 60 केले खा लिए जाते है। पिग्मी लोगों द्वारा पड़ोसी कृषकों से वस्तु विनिमय द्वारा केला प्राप्त किया जाता है।
• इन लोगों द्वारा मधुमक्खियों के अंडों एवं शहद को बड़े चाव से खाया जाता है।
👉 औजार या उपकरण (tools) :- पिग्मी लोग लोगों द्वारा साधारण एवं सीमित औजारों का ही प्रयोग किया जाता है। पिग्मी लोग शिकार के लिए धनुष और बाण का प्रयोग करते है। भूमि खोदने के लिए बाँस या लकड़ी के डंडे का उपयोग किया जाता है। खुरदरे और अनगढ पत्थरों से लकड़ी को काटने, खुरचने का काम में लिया जाता है। पिग्मी लोगों द्वारा पानी भरने के लिए बाँस तुम्बि का प्रयोग किया जाता है। मछलियों को पकड़ने के लिए ये लोग कांटे भी बनाते है। पिग्मी लोगों द्वारा विषाक्त बाणों का प्रयोग किया जाता है। यह विष विशिष्ट वृक्षों एवं लताओं के रस से प्राप्त किया जाता है। पिग्मी लोगों द्वारा पत्थरों से निर्मित औजारों का प्रयोग भी शिकार के लिए किया जाता है। पिग्मी लोगों द्वारा भोजन को पकाने के लिए बांँस की नलियों का प्रयोग किया जाता है।
👉 वस्त्र (Clothes) :- पिग्मी मुख्य रूप से उष्णआर्द्र जलवायु वाले भूमध्य रेखीय वन प्रदेश में निवास करते है। इन्हें वस्त्रों की बहुत कम आवश्यकता होती है। अतः अधिकांश पिग्मी लोग बिना वस्त्र के ही रहते है। इन लोगों द्वारा वस्त्रों के रूप में सामान्यतः वृक्षों की छाल, पशुओं की खाल और पत्तों को कमर पर लपेटा जाता है। स्त्री एवं पुरुषों द्वारा बेल के बीजों से बनी करधनी तथा पत्तियों के आभूषण पहने जाते है। स्त्रियों द्वारा पेड़ की छाल एवं पत्तियों से निर्मित वस्त्र को कमर के नीचे पहना जाता है। पिग्मी लोगों द्वारा बांँस द्वारा निर्मित कंघी तथा पत्तों के गुच्छे को कमर से नीचे लटकाया जाता है। इनका विश्वास है कि ऐसा करने से इन्हें बीमारियों से सुरक्षा मिलती है।
👉 निवास गृह (House) :- पिग्मी लोगों द्वारा आखेट की खोज में निरंतर घुमक्कड़ जीवन व्यतीत किया जाता है। अतः इन लोगों द्वारा स्थाई निवास नहीं बनाए जाते है। भूमध्य रेखीय वनों में पाये जाने वाले विषैले कीड़े मकोड़े एवं हिंसक पशुओं की अधिकता के कारण पिग्मी लोगों द्वारा पेड़ों के ऊपर झोपड़ीयों का निर्माण किया जाता है। ये झोपड़ीयाँ 2 मीटर लंबी तथा 1.5 मीटर ऊंची बनाई जाती है। इसमें प्रवेश के लिए एक छोटा प्रवेश द्वार होता है। प्रवेश द्वार की ऊंचाई 50 सेंटीमीटर होती है। झोपड़ी में घुटनों के बल रेंगकर प्रवेश किया जाता है। पिग्मी लोगों की प्रत्येक परिवार की एक झोपड़ी होती है। कहीं-कहीं इन लोगों द्वारा ऊँची भूमि पर वृक्ष की शाखाओं को भूमि में गाडकर अर्धवृत्त आकार झोपड़ियों का निर्माण भी किया जाता है। जिसे पेड़ों की पत्तियों से ढका जाता है। पिग्मी लोगों के स्थाई गांव में 10 से 12 झोपड़ियाँ होती है। इन गांँवों की अवधि कुछ महीनों की ही होती है।
• पिग्मी लोगों द्वारा निर्मित झोपड़ियों की आकृति मधुमक्खी के छत्ते के समान होती है।
👉 समाज एवं संस्कृति (Society and culture) :- पिग्मी लोगों का सामाजिक संगठन आदिम तथा साधारण होता है। इन लोगों के समाज में सार्वजनिक संस्था एवं मुखिया का अभाव होता है। आपसी झगड़ों एवं कल्ह को पारस्परिक बातचीत से हल किया जाता है। पिग्मी लोगों द्वारा कुशल एवं सफल आखेटक को ही बस्ती का मुखिया बनाया जाता है। इन लोगों द्वारा देवताओं को प्रसन्न करने एवं बच्चों के जन्म पर सामूहिक नृत्य एवं गीतों का आयोजन किया जाता है। पिग्मी लोग अपने परिवार के प्रति कर्मठ एवं निष्ठावान होते है।
• पिग्मी लोगों में एकल विवाह एवं बहु विवाह दोनों का प्रचलन है।
• पिग्मी लोग मृतकों को झोपड़ी के पास ही लकड़ी और पत्तियों पर रखकर जला देते है। इसके पश्चात पिग्मी परिवार वहाँ से स्थानांतरण कर जाता है। सांस्कृतिक विकास के दृष्टिकोण से फिल्मी आज भी आदिम अवस्था में है। ये लोग बाहरी सभ्य समाज से दूर रहना ही पसंद करते है। अपनी परंपरागत रीति-रिवाजों एवं जीवन शैली को सुरक्षित रखने में ये अधिक विश्वास करते है। पिग्मी लोगों का जीवन अत्यंत पिछड़ा हुआ है। इस कारण इन में जन्म दर एवं मृत्यु दर दोनों ही उच्च पायी जाती है। इसका कारण पिग्मी लोग देवी देवताओं के प्रकोप एवं जादू टोने का परिणाम मानते है।
👉 आधुनिकता का प्रभाव :- पिग्मी लोग अनुपयुक्त तथा विषम पर्यावरण वाले प्रदेश में निवास करते है। अतः इन पर बाहरी संस्कृति का प्रभाव बहुत कम दिखाई देता है। इन लोगों के अपने समीपवर्ती बंटू कृषकों के संपर्क में आने से इनकी बोली को समझने एवं बोलने लगे है। परंतु इनकी जीवन शैली में कोई उल्लेखनीय परिवर्तन नहीं हुआ है। कुछ क्षेत्रों में पिग्मी लोगों पर पड़ोसी कृषकों तथा यूरोपीय लोगों का प्रभाव भी देखा जा सकता है। कहीं कहीं पर ये लोग खानो में मजदूरी तथा नौकरी भी करने लगे है। यूरोपीय उपनिवेशको के विस्तार के कारण पिग्मियों की संख्या में निरंतर कमी होती जा रही है। पिग्मी ऐसा स्वतंत्र समुदाय है। जो प्रकृति से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है तथा अपने पर्यावरण को कोई भी क्षति पहुंचाए बिना उसका उपयोग करता आ रहा है।
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