📝... सामान्य परिचय :- प्रवास कटिबंध सिद्धांत का प्रतिपादन अमेरिकी विद्वान ग्रिफिथ टेलर ने सन 1919 में किया था। यह सिद्धांत मानव प्रजातियों के उद्भव और विकास से संबंधित एक नवीनतम सिद्धांत है।
• इस सिद्धांत को कटिबंध एवं स्तर सिद्धांत के नाम से भी जाना जाता है।
• यह सिद्धांत मुख्यतया जलवायु परिवर्तन पर आधारित है।
• ग्रिफिथ टेलर के प्रवास कटिबंध सिद्धांत पर डार्विन के विकासवादी सिद्धांत का प्रभाव स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है।
• इस सिद्धांत के द्वारा ग्रिफिथ टेलर ने मानव प्रजातियों की उत्पत्ति तथा विकास की व्याख्या क्षेत्र और समय (time and space) के संदर्भ में की है।
• टेलर के अनुसार मानव प्रजातियों का उदभव प्लीस्टोसीन काल से पूर्व हो चुका था।
• टेलर ने मध्य एशिया को समस्त प्रजातियों का उदभव स्थल ( Cradle land of human races) माना है। जहांँ से फैल कर ये प्रजातियाँ विभिन्न महाद्वीपों तक पहुँँची।
• टेलर के अनुसार प्लीस्टोसीन काल का सर्वाधिक प्रभाव उत्तरी गोलार्ध पर पड़ा। परिणामस्वरूप जलवायु और वनस्पतियों की पेटियों में भी परिवर्तन हुए। प्लीस्टोसीन काल के समय मध्य एशिया की जलवायु अपेक्षाकृत गर्म थी और यह शीतोष्ण स्टैपी घास प्रदेश था। इसके उत्तर में एक वन पेटी तथा दक्षिण में रेगिस्तानी एवं वन भूमि का विस्तार था। प्लीस्टोसीन काल के समय मानव के जीवन का मूल आधार आखेट था। • टेलर के अनुसार विश्व की जलवायु में कई बार परिवर्तन हुए एवं अनेकअंतर्हिम युगों का आगमन हुआ।
• टेलर के अनुसार मानव प्रजातियों का उदभव विभिन्न अंतर्हिम युगों की अवधि के दौरान हुआ है।
• टेलर ने अपने प्रवास कटिबंध सिद्धांत के आधार पर बताया कि सर्वप्रथम मध्य एशिया में नीग्रिटो (Negrito) प्रजाति का विकास हुआ। उस समय मध्य एशिया की जलवायु उष्ण थी। कालांतर में हिमयुग का आगमन होने से मध्य एशिया की जलवायु अति शीतल हो गई ओर यह मानव निवास के योग्य नहीं रह गई थी। गर्म जलवायु वाले एक प्रदेश की पेटी दक्षिण की ओर खिसक गई। परिणाम स्वरूप मानव समुदायों ने दक्षिण की ओर प्रवास किया। जहांँ की जलवायु मानव निवास के अनुकूल थी। सैकड़ों वर्षों पश्चात पुनः जलवायु दशाओं में परिवर्तन हुए और हिम युग धीरे-धीरे समाप्त हो गया। हिम युग के समाप्त होने पर मध्य एशिया की जलवायु में पुनः परिवर्तन हुआ और वह उष्ण हो गई। परिणाम स्वरूप वनस्पतियों तथा जीवों की पेटियांँ पुनः उत्तर की ओर खिसक गई। फलस्वरूप दक्षिण की ओर प्रवासित मानव जातियाँ के बहुत से समूह पुनः मध्य एशिया की ओर वापस लौट आये। परंतु इनमें से कुछ मानव वर्ग वापस नहीं लौटे और वे प्रवासित क्षेत्रों में ही निवास करने लगे। इस प्रकार प्रारंभिक मानव प्रजाति दो वर्गों में विभाजित हो गई।
जो मानव समूह दक्षिण में उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में निवास करने लगे थे। उन पर अधिक धूप एवं तापमान के प्रभाव से उनकी त्वचा का रंग काला तथा सिर लंबा हो गया। इस प्रकार उष्ण कटिबंध में नीग्रिटो प्रजाति का विकास हुआ। उसी अवधि में मध्य एशिया में निवास कर रहे मानव समूह के लोगों की त्वचा का रंग अपेक्षाकृत साफ और सिर चौड़ा हो गया तथा मध्य एशिया में नीग्रो प्रजाति का विकास हुआ।
द्वितीय हिम युग के आगमन पर मध्य एशिया से पुनः बड़ी संख्या में मानव समूह का प्रवास हुआ। इन मानव समूहों ने प्रवासी क्षेत्रों में रहने वाले प्रजाति के लोगों को बाहर की ओर खदेड़ दिया। जिससे वे मानव समूह बाहर की ओर स्थानांतरित हो गए। द्वितीय हिम युग की समाप्ति के पश्चात कुछ मानव समुदाय पुनः मध्य एशिया में लौट आये तथा कुछ मानव वर्ग प्रवासित क्षेत्रों में ही बस गये। उन्होने वहांँ के पर्यावरण से समायोजन कर लिया। इस प्रकार टेलर ने बताया कि जलवायु के परिवर्तन के परिणाम स्वरूप बाद के हिम युगों एवं अंतर्हिम युगों में भी मानव का प्रवास जारी रहा। इस प्रकार प्रत्येक अंतर्हिम युग में मध्य एशिया की भूमि पर नवीन मानव प्रजातियों का उदभव हुआ।
ग्रिफिथ टेलर के अनुसार सभी मानव प्रजातियों का विकास क्रमिक रूप से मध्य एशिया में ही हुआ है। यहीं से इन मानव प्रजातियों का प्रवास बाहरी प्रदेशों की ओर हुआ। बाद में विकसित होने वाली प्रजातियां अपने पूर्ववर्ती प्रजातियों से अधिक चतुर और शक्तिशाली थी। इस कारण बाद में विकसित होने वाली प्रजातियों ने अपने से पहले विकसित प्रजातियों को बाहर की ओर हटा दिया। जो मानव प्रजाति सबसे पहले विकसित हुई (नीग्रिटो) उसने बाद में विकसित मानव प्रजातियों को महाद्वीपों की परिधि अर्थात बाहरी प्रदेशों की ओर धकेल दिया।
• टेलर के प्रभास कटिबंध सिद्धांत के अनुसार अनुसार मध्य एशिया में नियंडरथल मानव के पश्चात क्रमानुसार :- नीग्रिटो - नीग्रो - ऑस्ट्रेलाॅयड - भूमध्यसागरीय प्रजाति - अल्पाइन प्रजाति तथा मंगोलॉयड प्रजातियों का विकास हुआ।
• टेलर के सिद्धांत के अनुसार सबसे पहले विकसित प्रजातियाँ महाद्वीपों के बाहरी पेटी में पाई जाती है। जबकि बाद में विकसित प्रजातियाँ क्रमशः महाद्वीपों की आंतरिक पेटियों में पायी जाती है।
• सबसे बाद में विकसित होने वाली मंगोलायड़ प्रजाति अभी भी मध्य एशिया तथा उसके समीपवर्ती क्षेत्रों में निवास करती है।
• टेलर के अनुसार विभिन्न मानव प्रजातियों का स्थानांतरण अनेक चरणों में हुआ है। प्रत्येक स्थानांतरित मानव समूह लंबे समय तक प्रदेश में रहने के बाद बाहर की ओर स्थानांतरित हुआ। परिणाम स्वरूप उसने नए पर्यावरण से समायोजन किया जिसके फलस्वरूप मनुष्य के शारीरिक लक्षणों जैसे सिर, बाल,नाक, त्वचा का रंग आदि की आकृति और शारीरिक कद में भी परिवर्तन हो गया। इस प्रकार स्पष्ट है कि नये जलवायु कटीबंन्धों के प्रभाव से विभिन्न शारीरिक लक्षणों वाली मानव प्रजातियों का उदभव एवं विकास हुआ।
• सिद्धांत से संबंधित साक्ष्य :- टेलर ने अपने सिद्धांत की प्रमाणिकता के लिए प्रजाति संबंधी तथ्यों को निम्नांकित साक्ष्यों एवं सिद्धांतों के रूप में प्रस्तुत किया है।
(1.) टेलर के अनुसार पृथ्वी के विशाल महाद्वीपों में एशिया महाद्वीप की केंद्रीय स्थिति है। जिसके चारो ओर तीन महाद्वीप यूरोप, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया तथा अमेरिका है। प्रत्येक महाद्वीप में प्रजातीय कटिबंध पाए जाते है। जो मध्य एशिया से बाहर की ओर आदिकालीन रूप में क्रमबद्ध रूप से पाये जाते है।
(2.) सर्वाधिक आदिकालीन प्रजाति महाद्वीपों की बाहरी पेटी अर्थात परिधीय क्षेत्रों में पायी जाती है तथा सबसे अंत में विकसित होने वाली प्रजातियाँ महाद्वीपों के केंद्रीय भाग (मध्य एशिया) में पायी जाती है।
(3.) जिन क्षेत्रों में प्रजातीय विकास की प्रगति सर्वाधिक हुई है। इन क्षेत्रों में भूमि में आदिम प्रजातियों के दबे हुए स्तर सर्वाधिक पाये गये है।
(4.) मानव प्रजातियों के विकास का क्रम दोनों प्रकार से एक जैसा ही पाया जाता है। मध्य एशिया से बाहर की ओर जाने पर विभिन्न कटीबंधों को पार किया जाये अथवा विकास केंद्र में ऊपर से नीचे की ओर विभिन्न स्तरों को देखा जाए तो उनका क्रम एक जैसा ही पाया जाता है। (5.) आदिम प्रजातियांँ उन प्रदेशों में वर्तमान समय में भी जीवित पायी जाती है। जहांँ पर इनकी उत्पत्ति नहीं हुई थी। अपितु ये अन्यत्र स्थान से स्थानांतरित होकर वहांँ पहुंची थी।
(6.) अफ्रीका, यूरोप, दक्षिणी एशिया तथा आस्ट्रेलिया में मिले साक्ष्यों के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि मध्य एशिया से प्रजातियों का अपकेंद्रीय प्रवास (Centrifugal movement) हुआ है।
(7.) प्रथम मानव समूह का प्रवास दक्षिणी पश्चिमी एशिया तथा अफ्रीका की ओर हुआ था।
(8.) द्वितीय मानव समूह का प्रवास दक्षिणी पूर्वी एशिया से होते हुए आस्ट्रेलिया की ओर हुआ था। (9.) तीसरा मानव प्रवास साइबेरिया से होते हुए बेरिंग जलसंधि के रास्ते से उत्तरी अमेरिका की ओर हुआ था।
इस प्रकार ग्रिफिथ टेलर ने अपने प्रवास कटिबंध सिद्धांत के द्वारा मानव प्रजातियों के उदभव और विकास को स्पष्ट करने का सराहनीय प्रयास किया है। वर्तमान समय में इनका यह सिद्धांत अत्यधिक मान्यता रखता है।
• महत्वपूर्ण बिंदु :-
• प्रवस कटिबंध सिद्धांत के अनुसार सर्वप्रथम नीग्रिटो प्रजाति का उदभव हुआ था।
• प्रवास कटिबंध सिद्धांत के अनुसार मानव प्रजातियों के विकास का क्रम इस प्रकार है। नियंडरथल मानव - नीग्रिटो - नीग्रो - आस्ट्रेलायड - भूमध्यसागरीय - अल्पाइन - मंगोलायड़ ।
• ग्रिफिथ टेलर ने मध्य एशिया में कैस्पियन सागर व अरल सागर के मध्यवर्ती भाग को समस्त प्रजातियों का उदभव स्थल माना है।
•आस्बर्न ने मानव का उदगम क्षेत्र तिब्बत एवं मंगोलिया को माना है।
• लुके एवं डार्टकीथ महोदय ने मानव का उदगम क्षेत्र अफ्रीका महाद्वीप को माना है।
• ड्रायोपीथिकस को मानव का प्राचीनतम पूर्वज माना जाता है।
• मानव विकास का क्रम:- ड्रायोपीथिकस - ऑस्ट्रेलोपीथिकस - होमोइरेक्टस - होमोसेपियंस।
• क्रोमैग्नन (होमो सेपियंस-सेपियंस) को आधुनिक मानव का प्रतिनिधि माना जाता है।
• आधुनिक मानव को होमो सेपियंस कहा जाता है।
• Race शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग सर्वप्रथम 1570 में फॉक्स महोदय ने अपनी पुस्तक Book of Martyrs में किया था।
• मानव प्रजाति नस्ल को प्रकट करती है ना की सभ्यता को (Race denotes breed not culture ) यह कथन ग्रिफिथ टेलर का है।
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