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कोपेन के जलवायु वर्गीकरण के अनुसार भारत के जलवायु प्रदेश (Koppen ke jalwau vargikarn ke anusar bharat ke jalwau Pradesh ) Climatic Regions of India According to koppen) Amw As Aw Bshw BWhw Cwg Dfc ET EF climate. विशेषताएं एवं क्षेत्र

📝... कोपेन के जलवायु वर्गीकरण के अनुसार भारत के जलवायु प्रदेश (Climatic Regions of India According to koppen) :- 
• सामान्य परिचय :- जर्मन जलवायु विज्ञानवेत्ता  एवं वनस्पति वैज्ञानिक ब्लाडीमीर कोपेन ने सर्वप्रथम सन् 1900 में विश्व की जलवायु का वर्णात्मक वर्गीकरण प्रस्तुत किया। कोपेन ने इस वर्गीकरण में अनेक बार (1918 एवं 1931) परिमार्जन एवं संशोधन किये। अंततः पूर्ण संशोधित रूप में कोपेन ने अपना जलवायु वर्गीकरण सन 1936 में प्रस्तुत किया।
• कोपेन ने अपने जलवायु वर्गीकरण में तापमान तथा वर्षा को प्रमुख आधार बनाया है।
• कोपेन का जलवायु वर्गीकरण परिमाणात्मक है अतः यह अधिक महत्वपूर्ण है।
• कोपेन ने जलवायु प्रदेशों की सीमाओं के निर्धारण हेतु तापमान तथा वर्षा से संबंधित संख्यात्मक मूल्यों का प्रयोग किया है।
• सन 1953 में गीगर पोही ने कोपेन के विश्व जलवायु वर्गीकरण की मौलिक योजना को संशोधित करके एक नयी जलवायु योजना का प्रकाशन करवाया। कालांतर में यह विश्व जलवायु का वर्गीकरण की गीगर पोही वर्गीकरण के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अतः इस वर्गीकरण को गीगर पोही जलवायु वर्गीकरण भी कहते है।
• कोपेन ने  कैंडोल द्वारा सन 1874 में प्रस्तावित 5 वनस्पति मंडलों के आधार पर विश्व की जलवायु को पांँच प्रमुख समूहों में विभाजित किया तथा इनका नामकरण अंग्रेजी के बड़े अक्षरों पर रखा। ये इस प्रकार है।
(1.) A जलवायु - उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु। (2.) B जलवायु - शुष्क जलवायु।
(3.) C जलवायु - मध्य अक्षांशीय समशीतोष्ण जलवायु।
(4.) D जलवायु - मध्य अक्षांशीय शीतार्द्र जलवायु।
(6.) E जलवायु - ध्रुवीय जलवायु।
• कोपेन ने अंग्रेजी के बड़े अक्षरों के अलावा कुछ अन्य वर्णों का प्रयोग भी अपने वर्गीकरण में वर्षा की अवधि को प्रदर्शित करने के लिए किया है। ये निम्नलिखित है।
1.) f  - वर्ष भर वर्षा, सबसे ठंडे महीने का औसत तापमान 18 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक रहता है। वर्ष के प्रत्येक महीने में न्यूनतम 6 सेंटीमीटर वर्षा अवश्य होती है।
2.) s -  ग्रीष्म काल शुष्क।
3.) w - शीतकाल शुष्क
4.) S - अर्ध शुष्क या स्टैफी जलवायु
5.) W - शुष्क जलवायु 
6.) m - मानसूनी जलवायु, लघु शुष्क मौसम, सबसे शुष्क महीने में 6 सेंटीमीटर से कम वर्षा।
• इस प्रकार कोपेन ने विश्व जलवायु को पांच प्रमुख एवं 11 उप प्रकारों में विभाजित किया है
📝...  कोपेन की पद्धति पर आधारित भारतीय जलवायु के प्रमुख प्रकार :- भारत की जलवायु मानसूनी जलवायु है। भारत में पायी जाने वाले मौसम के तत्वों में क्षेत्रीय विभिन्नतायें देखने को मिलती है। ये विभिन्नतायें मुख्य रूप से विभिन्न जलवायु के उप प्रकारों में प्रदर्शित होती है। एक जलवायु प्रदेश में जलवायु भी दशाओं में समरूपता पायी जाती है। जो जलवायु के कारकों के संयुक्त प्रभाव से उत्पन्न होती है। तापमान एवं वर्षा जलवायु के दो महत्वपूर्ण तत्व है। ये जलवायु वर्गीकरण की सभी पद्धतियों में मुख्य रूप से निर्णायक भूमिका निभाते है। कोपेन के जलवायु वर्गीकरण के अनुसार भारत में आठ जलवायु प्रकार पाये जाते है। ये निम्नलिखित है।
(1.) Amw जलवायु ( लघु शुष्क ऋतु वाली मानसूनी जलवायु )
(2.) As जलवायु ( शुष्क ग्रीष्म ऋतु वाली मानसूनी जलवायु )
(3.) Aw जलवायु ( उष्णकटिबंधीय सवाना जलवायु )
(4.) BShw जलवायु ( अर्ध शुष्क स्टैपी जलवायु )
(5.)  BWhw जलवायु ( गर्म मरुस्थलीय शुष्क जलवायु ) 
(6.) CWg जलवायु ( शुष्क शीत वाली मानसूनी जलवायु )
(7.) Dfc जलवायु ( लघु ग्रीष्म ठंडी आर्द्र ऋतु वाली जलवायु )
(8.) E जलवायु ( ध्रुवीय जलवायु )
👉 (1.) Amw जलवायु ( लघु शुष्क ऋतु वाली मानसूनी जलवायु ) :- इसे मानसूनी या मानसून जलवायु के नाम से भी जाना जाता है। इस जलवायु में एक लघु शुष्क मौसम होता है। परंतु वार्षिक वर्षा इतनी अधिक होती है, कि भूतल पर वर्ष भर तर  रहता है। वर्षा समुद्र की ओर से आने वाली मानसूनी हवाओं के द्वारा होती है। वर्षा का औसत 200 से 250 सेंटीमीटर के मध्य पाया जाता है। यहाँ सघन उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन पाये जाते है। यह जलवायु Af एवं Aw के मध्य की जलवायु है।
यह जलवायु भारत में गोवा के दक्षिण में भारत के पश्चिमी तटीय भाग में केरल, कर्नाटक एवं तमिलनाडु राज्यों में पायी जाती है।
👉 (2.) As जलवायु ( शुष्क ग्रीष्म ऋतु वाली मानसूनी जलवायु ) :- इस जलवायु में ग्रीष्म ऋतु शुष्क होती है। अधिकांश वर्षा शीतकाल में ही होती है। भारत में यह जलवायु तमिलनाडु के कोरोमंडल तटीय क्षेत्र में पायी जाती है। इस क्षेत्र में वर्षा प्रत्यावर्तित मानसून द्वारा होती है। यहांँ सघन उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन पाये जाते है। इस जलवायु का विस्तार तमिलनाडु एवं आंध्र प्रदेश राज्यों में पाया जाता है।
👉 (3.) Aw जलवायु ( उष्णकटिबंधीय सवाना जलवायु ) :- यह उष्णकटिबंधीय आर्द्र तथा शुष्क जलवायु है। इस जलवायु में शीतकाल शुष्क होता है। कम से कम 1 महीने की वर्षा 6 सेंटीमीटर से कम होती है तथा वर्ष भर उच्च तापमान रहता है। इस जलवायु में सवाना प्रकार की वनस्पति पायी जाती है।
• भारत में उष्णकटिबंधीय सवाना प्रकार की जलवायु का विस्तार कर्क रेखा के दक्षिण में प्रायद्वीपीय पठार के अधिकांश भाग पर पाया जाता है।
👉 (4.) BShw जलवायु ( अर्ध शुष्क स्टैपी जलवायु ) :- यह शुष्क प्रकार की जलवायु है। इस जलवायु में वर्षा की अपेक्षा वाष्पीकरण अधिक होता है। वर्षा की मात्रा इतनी अधिक नहीं हो पाती है कि स्थायी भौम जल स्तर बना रहे। इस जलवायु में औसत वार्षिक तापमान 18 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक होता है एवं वर्षा 50 सेंटीमीटर से कम होती है। इस जलवायु में कंटीली झाड़ियांँ एवं घासें पायी जाती है। 
• इस जलवायु का विस्तार भारत में उत्तर पश्चिमी गुजरात, पश्चिमी राजस्थान, और पंजाब के कुछ भागों में पाया जाता है। इसके अलावा इस जलवायु का विस्तार दक्षिणी भारत में पश्चिमी घाट के वृष्टि छाया प्रदेश में भी पाया जाता है।
👉 (5.)  BWhw जलवायु ( गर्म मरुस्थलीय शुष्क जलवायु ) :- यह शुष्क मरुस्थलीय जलवायु है। इस जलवायु में भी वर्षा की अपेक्षा वाष्पीकरण अधिक होता है। वर्षा की मात्रा इतनी कम होती है कि स्थाई भौम जल स्तर अत्यधिक गहराई में पाया जाता है। औसत वार्षिक तापमान 18 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक होते है। तथा वर्षा 20 सेंटीमीटर से कम होती है। कभी-कभी ग्रीष्म काल में तापमान 45 डिग्री सेंटीग्रेड से भी अधिक पाये जाते है। वर्षा के अभाव के कारण यहांँ वनस्पति का लगभग पूर्णतया अभाव पाया जाता है। भारत में शुष्क मरुस्थलीय जलवायु का विस्तार राजस्थान के पश्चिमी भाग में पाया जाता है। इस प्रदेश में विस्तृत क्षेत्र पर रेत के टीलों का विस्तार पाया जाता है।
👉 (6.) CWg जलवायु ( शुष्क शीत वाली मानसूनी जलवायु ) :- इस जलवायु का विस्तार भारत के सर्वाधिक क्षेत्र पर पाया जाता है। इस जलवायु में शीत ऋतु शुष्क होती है। अधिकांश वर्षा ग्रीष्म काल में मानसूनी पवनों के द्वारा होती है। इस जलवायु में वर्षा से पूर्व तीव्र गर्म मौसम होता है तथा शीत ऋतु के आर्द्रतम महीने की अपेक्षा ग्रीष्म ऋतु के आर्द्रतम महीने में 10 गुना अधिक वर्षा होती है। 
• इस जलवायु का विस्तार भारत में गंगा यमुना के मैदान, पूर्वी राजस्थान , उत्तरी मध्य प्रदेश, उत्तरी पूर्वी भारत के अधिकांश क्षेत्रों पर पाया जाता है।👉 (7.) Dfc जलवायु ( लघु ग्रीष्म ठंडी आर्द्र ऋतु वाली जलवायु ) :- यह लघु ग्रीष्म तथा ठंडी आर्द्र ऋतु वाली शीतोष्ण जलवायु है। इस जलवायु में सबसे ठंडे महीने का औसत तापमान - 3 डिग्री सेंटीग्रेड से कम होता है तथा उष्णतम महीने का तापमान 10 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक होता है। इस जलवायु में धरातल कभी-कभी हिमाच्छादित अधिक रहता है। इस जलवायु का विस्तार भारत में अरुणाचल प्रदेश एवं उत्तरी असम में पाया जाता है।
👉 (8.) E जलवायु ( ध्रुवीय जलवायु ) :- ध्रुवीय जलवायु में उष्णतम महीने का तापमान 10 डिग्री सेंटीग्रेड से कम होता है। इस जलवायु को दो भागों में बांँटा गया है।
(1.) Et जलवायु :- इसे टुण्ड्रा जलवायु भी कहते है। इस जलवायु में उष्णतम महीने का तापमान 10 डिग्री सेंटीग्रेड से कम, परंतु 0 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक होता है। भारत में टुण्ड्रा जलवायु का विस्तार जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश एवं उत्तराखंड राज्यों में पाया जाता है। इस जलवायु में वनस्पति के रूप में लाइकेन, मास, लिचेन,काई, छोटे फूलों के पौधे पाए जाते है।
(2.) EF जलवायु :- इसे सतत हिमाच्छादित जलवायु कहते है। इस जलवायु में सभी महीनों का तापमान 0 डिग्री सेंटीग्रेड से कम रहता है। इस जलवायु में धरातल वर्षभर हिमाच्छादित रहता है। भारत में हिमाच्छादित जलवायु का विस्तार पाक अधिकृत कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश के ऊंँचे पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाता है। इस डलवाई में वनस्पति का पूर्णतया अभाव पाया जाता है।



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