📝... अर्थ एवं सामान्य परिचय :-
धुँआरे अथवा धूम्रछिद्र शब्द लैटिन भाषा के फ्यूमरोल (Fumarol) शब्द से लिया गया है। जिसका तात्पर्य ऐसे छिद्र से होता है जिसके अंदर से गैसेें तथा वाष्प निकला करती है। इन छिद्रो को दूर से देखने पर ऐसा लगता है, मानो बहुत सारा धुआंँ ही धुआंँ निकल रहा हो। अतः इन्हें धूम्रछिद्र अथवा धुुँँआरे भी कहा जाता है।
• धुँआरे का संबंध मुख्यतः ज्वालामुखी क्रिया से होता है। ज्वालामुखी उद्गार के फलस्वरूप जब लावा, राख एवं विखंडित पदार्थ आदि का निकलना बंद हो जाता है। तो कभी कभी लंबे अवकाश के बाद लगातार गर्म वाष्प तथा गर्म गैसें धुँआ के रूप में लंबे समय तक निकलती रहती है। इन्हें ही धुँआरे कहा जाता है। धुँआरों की उत्पत्ति ज्वालामुखी के उद्गार के बाद मैग्मा के ठंडा होने एवं सिकुड़ने से गर्म गैसें तथा वाष्प का निर्माण होता है। ये गैसें एवं वाष्प ऊपर की ओर ज्वालामुखी नली से होकर धरातल पर प्रकट होती है। इन्हें ही धुँआरे कहा जाता है।
• धुँआरे ज्वालामुखी सक्रियता के अंतिम लक्षण होते हैं।
📝.. प्रमुख क्षेत्र :- धुँआरों का विस्तृत क्षेत्र अलास्का मे कटमई ज्वालामुखी के समीप पाया जाता है। इस क्षेत्र में धुँआरे अत्यधिक मात्रा में समूह में पाए जाते हैं। इस घाटी को 10 सहस्त्र धूम्र घाटी (A valley of ten thousand smokes) के नाम से जाना जाता है। यहांँ धुँआरों का विस्तार कई किलोमीटर क्षेत्र में पाया जाता है। इस घाटी की निम्न तली में इतनी अधिक मात्रा में धुँआरे पाए जाते हैं, कि उनकी निश्चित संख्या बता पाना कठिन है। यहाँ धुँआरे आकार में छोटे-छोटे हैं। साधारण तौर पर इनकी चौड़ाई 10 फीट पाई जाती है। इस घाटी में धुँआरों की स्थिति दरार या फटन के सहारे तथा ज्वालामुखी क्रेटर पर पायी जाती है।
• गेसर एवं गर्म जलस्रोत की अपेक्षा धुँआरों
के द्वारा निकलने वाली वाष्प एवं गैसों का तापमान बहुत अधिक होता है। गैसों का तापमान 645 डिग्री सेंटीग्रेड तक पाया जाता है। सभी प्रकार के धुँआरे से निसृत पदार्थों एवं गैसों में वाष्प का प्रतिशत सर्वाधिक अर्थात 98.4 प्रतिशत से 99.99% तक पाया जाता है। धुँआरों से मुख्यतया कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोक्लोरिक एसिड, हाइड्रोजन सल्फाइड, नाइट्रोजन, अमोनिया एवं ऑक्सीजन आदि गैसें निकलती है। धुँआरों की वाष्प तथा गैसों की उत्पत्ति के विषय में यह स्पष्ट होता है कि ये ज्वालामुखी क्रिया से संबंधित है। इनकी उत्पत्ति तप्त मैग्मा से निस्सृत वाष्प एवं गैसों के कारण होती है।
•धुँआरों की सक्रियता में ऋतुवत परिवर्तन देखने को नहीं मिलता है। इनमें निकलने वाली वाष्प में धरातलीय जल का कुछ भाग अवश्य पाया जाता है।
• धुँआरें अत्यंत मनमोहक आकर्षक दृश्य उपस्थित करते हैं। अनेक पर्यटक इन्हें देखने के लिए आते हैं। अतः इनका पर्यटन की दृष्टि से भी अत्यधिक महत्व है।
• धुँआरों का आर्थिक उपयोग :- धुँआरें आर्थिक दृष्टि से अत्यधिक उपयोगी है। धुँआरों से निकलने वाले पदार्थों से मुख्यरूप से गंधक तथा बोरिक एसिड प्राप्त होते हैं।
• धुँआरों की गर्म वाष्प तथा गैसों को गहरे गड्ढों में एकत्रित करके विद्युत भी उत्पन्न की जाती है।
👉 उदाहरण :-
• इटली के टस्कनी प्रांत में धुँआरे से बिजली उत्पन्न की जाती है। जिसका उपयोग आसपास के नगरों में प्रकाश तथा शक्ति के लिए किया जाता है।
• संयुक्त राज्य अमेरिका के कैलिफर्निया में
धुँआरों के द्वारा 650 फीट गहरे गड्ढे से बिजली उत्पन्न की जाती है।
• सोलफतारा या गन्धकीय धुँआरे (solftara) :- कभी-कभी धुँआरे के साथ वाष्प तथा गैसों के साथ- साथ कुछ खनिज पदार्थ भी निकलते रहते हैं। इन खनिज पदार्थों में प्रमुख रूप से गंधक होती है। ऐसे धुँआरे जिनसे अधिक मात्रा में गंधक युक्त धुँआ निकलता रहता है। उन्हें सोलफतारा या गन्धकीय धुँआरे कहा जाता है।
• इटली में नेपल्स नगर के समीप सोलफतारा नामक गन्धकीय धुँआरा स्थित है। जिससे सदैव गन्धकीय धुआँ एवं वाष्प निकला करती है।
• विश्व के प्रमुख धुँआरें :-
(1.) अलास्का की 10 सहस्त्र धूम्र घाटी के धुँआरें। (2.) ईरान का कोहे सुल्तान धुँआरा।
(3.) न्यूजीलैंड की प्लेंटी की खाड़ी में स्थित ह्मइट टापू का धुँआरा।
(4.) इटली में नेपल्स नगर के समीप सोलफतारा नामक गन्धकीय धुँआरा ।
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