भारतीय प्लेट की विवर्तनिकी
(Tectonics of Indian Plate)
👉 भारतीय प्लेट एक वृहद् प्लेट है। जो महासागरीय- महाद्वीपीय प्रकृति की प्लेट है।
• इस प्लेट की उत्तरी सीमा- प्रायद्वीपीय पठार के उत्तरी अग्रभाग अर्थात राजमहल पहाडीयों, छोटा नागपुर पठार, बघेलखंड, मालवा पठार तथा अरावली पहाड़ीयो को मिलाने वाले अक्ष के सहारे स्थित है।
• इसकी पश्चिमी सीमा- अरब सागर में स्थित काल्सबर्ग समुद्री कटक तथा हिंद महासागर में स्थित मिड इंडियन समुद्री कटक द्वारा सीमांकित है।
• इस प्लेट की दक्षिणी सीमा - हिंद महासागर में स्थित दक्षिणी पूर्वी भारतीय समुद्री कटक द्वारा सीमांकित है।
• पूर्वी सीमा - न्यूजीलैंड द्वीप एवं कर्माडिक कटक (न्यूजीलैंड के उत्तर पूर्व में स्थित) से सीमांकित है।
• उत्तरी पूर्वी सीमा - न्यूगिनी, जावा, सुमात्रा एवं अंडमान द्विपों को मिलाने वाली रेखा के सहारे स्थित है।
• भारतीय प्लेट को भारतीय- ऑस्ट्रेलियाई प्लेट कहा जाता है। भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश है, जिसके नाम पर हिंद महासागर तथा भारतीय प्लेट का नामांकन हुआ है।
• किसी प्लेट के मुख्यतः तीन किनारे होते हैं। (1.) रचनात्मक किनारा :- भारतीय प्लेट का पश्चिमी तथा दक्षिणी किनारा रचनात्मक किनारा है। जिसके सहारे ज्वालामुखी उद्गार से निर्मित अधः समुद्री कटक पाए जाते हैं।
(2.) विनाशात्मक किनारा :- भारतीय प्लेट का उत्तरी किनारा विनाशात्मक में किनारा है।यहाँ पर भारतीय प्लेट का उत्तरी किनारा यूरेशियाई प्लेट के नीचे अधोगमित हो रहा है। यह किनारा महादीपीय-महाद्वीपीय अभिसरण का प्रतीक है। इसके परिणाम स्वरूप हिमालय पर्वत ऊपर की ओर उठ रहा है।
(3.) संरक्षी प्लेट किनारा :-
भारतीय प्लेट भूगर्भिक दृष्टि से गोंडवाना लैंड से संबंध रखती है। इसमें दक्षिणीअमेरिका,अफ्रिका,अंटार्कटिका,भारत तथा आस्ट्रेलिया शामिल थे। लगभग 20 करोड वर्ष पूर्व गोंडवाना लैंड के पृथ्वी की आंतरिक शक्तियों के कारण विखंडन से भारतीय प्लेट उत्तर दिशा में प्रवाहित होने लगी। भारतीय प्लेट तथा इसके उत्तर में स्थित यूरेशिया की प्लेट के मध्य स्थित टैथिज सागर में जमा अवसाद पर भारतीय प्लेट का दबाव पड़ने से अवसादी बलुआ पत्थर वाले मोडदार हिमालय पर्वत की उत्पत्ति हुई।• भारतीय प्लेट सर्वप्रथम लद्दाख के पास यूरेशियन प्लेट से टकरायी। जिससे इसकी गति 12 सेंटीमीटर से घटकर 5.5 सेंटीमीटर वार्षिक हो गई तथा इसकी प्रवाह की दिशा उत्तर-पूर्व की ओर हो गई। जो वर्तमान में भी जारी है।
भारतीय प्लेट की विशेषताएंँ :-
(1.) हिमालय श्रेणियों का 1.2 मिलीमीटर की वार्षिक दर से उत्थान हो रहा है। भारतीय प्लेट का उत्तरी किनारा प्लेट विवर्तनिकी की दृष्टि से सक्रिय है।
(2.) पामीर की गांँठ से अराकान योमा तक हिमालय प्रदेश के सहारे आने वाले विभिन्न भूकम्प इस तथ्य की पुष्टि करते हैं, कि भारतीय प्लेट के उत्तरी किनारे का अधोगमित भाग दुर्बलता मंडल में पहुंचकर मैग्मा के रूप में परिवर्तित हो रहा है। जिससे हिमालय की संरचना पर प्रभाव पड़ रहा है तथा हिमालय के मेन बाऊण्डी थ्रस्ट (MBT) तथा मेन सेंट्रल थ्रस्ट (MCT) के सहारे भूकम्प के झटके आते हैं।इस क्षेेत्र में आने वाले भूकम्प इसके उदाहरण हैं।
(3.) एअरोमैग्नेटिक सर्वेक्षण से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार उत्तरी तथा मध्य गंगा के मैदान में अवसादो की गहराई 8000 से 6000 मीटर बताई गई है। ( NCERT के अनुसार उत्तरी मैदान के जलोढ़ निक्षेप की अधिकतम गहराई 1000 से 2000 मीटर मानी गई है। ) अवसादो की गहराई हिमालय पर्वतीय पाद क्षेत्र में अधिक तथा दक्षिणी प्रायद्वीपीय पठार की ओर कम पाई जाती है। जो इस बात का प्रमाण है कि भारतीय प्लेट उत्तर पूर्व की ओर प्रवाहित होने रही है। तथा उत्तरी कगार हिमालय की जड़ों में अधोगमित हुआ है। जिससे हिमालय श्रेणी तथा पठार के उत्तरी कगार के मध्य एक ट्रेंंच का निर्माण हुआ है। जिसकी गहराई उत्तर की ओर अधिक थी। जिसमें हिमालय से निकलने वाली नदियों के द्वारा लाकर अवसाद की मोटी परत जमा की गई है।
(4.) कोकण तथा कन्नड़ तट के अनेक स्थल रूप इस बात का प्रमाण है, कि इनका निर्माण उत्थान के फलस्वरुप हुआ है। इससे यह स्पष्ट होता है कि भारत के पश्चिमी तट का उत्थान हुआ है
(5.) छोटा नागपुर पठार के पूर्वी तथा दक्षिणी कगार के सहारे भारत का प्रमुख कोयला क्षेत्र पाया जाता है। जो इस बात का साक्ष्य है कि यह क्षेत्र पूर्व काल में भूमध्य रेखीय वनों से आच्छादित था। मेघालय पठार के दाऊकी भ्रंश के सहारे छोटा नागपुर पठार से अलग होने की घटना के दौरान ये वनस्पतियांँ दबकर कोयले में परिवर्तित हो गई थी।
(6.) मध्यपदेश के मोहगांँव कला के अन्तट्रैप के संस्तरो के मध्य मिलने वाले नारियल के जीवाश्मों का carbon-14 विधि द्वारा तिथि से किए गए अध्ययन से स्पष्ट होता है, कि ये लगभग 7 करोड़ वर्ष पुराने तृतीयक कल्प के जीवाश्म है। इससे सिद्ध होता है कि मध्यप्रदेश में कोकोनट प्रजाति वाले भूमध्यरेखीय वन पाए जाते थे तथा मध्यप्रदेश की स्थिति भूमध्य रेखा पर थी। प्लेट विवर्तनिकी के कारण इसकी वर्तमान स्थिति में परिवर्तन हुआ है।
(7.) भारत का धारवाड़ (कर्नाटक), मेडागास्कर एवं अफ्रीका आपस में संबंधित थे। प्राचीन काल में भारत वर्तमान की अपेक्षा दक्षिण की ओर भूमध्य रेखा पर स्थित था। विखंडन के पश्चात मेडागास्कर तथा अफ्रीका भारत से अलग हो गये एवं भारतीय भूखंड के पश्चिम भाग का भूखण्ड निमज्जित हो गया और इस पर हिंद महासागर का जल फैल गया। फलस्वरुप अरब सागर का निर्माण हुआ। इस निमज्जन की प्रक्रिया के फलस्वरुप भारत के पश्चिमी घाट पर्वत का भी जन्म हुआ। निमज्जित स्थलखंड के भूमध्य रेखीय वन भूगर्भ में दबकर पेट्रोलियम खनिज के रूप में परिवर्तित हो गये। बंबई से 80 किलोमीटर दूूर पश्चिमी में स्थित मुंबई हाई क्षेत्र में पेट्रोलियम का पाया जाना इस तथ्य की पुष्टि करता है।
(8.) वर्तमान से लगभग 10 करोड वर्ष पूर्व राजमहल लावा के उद्गार के समय भारत की वर्तमान स्थिति 2250 किलोमीटर दक्षिण में थी अर्थात 20 डिग्री दक्षिणी अक्षांश पर भारत स्थित था। कन्याकुमारी जो आज 8 डिग्री 4 मिनट उत्तरी अक्षांश पर स्थित है उस समय लगभग 12 डिग्री दक्षिणी अक्षांश पर स्थित था।
(9.) भारतीय प्लेट के उत्तरी पूर्वी किनारे पर बंगाल की खाड़ी एक भूसन्नति के रुप में है। जिसमें गंगा व ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा अवसाद का जमाव किया जा रहा है। इसका प्रमाण गंगा के डेल्टा में सुंदरी वृक्षों की समुद्र तल से 15 मीटर से 150 मीटर की गहराई पर मिलने वाली जड़े हैं। (10.) बंगाल की खाड़ी भूसन्नति के अधोगमन से उत्पन्न दरारों से मैग्मा पृथ्वी की सतह पर आ रहा है। अंडमान तथा निकोबार द्वीपसमूह के ज्वालामुखी इस तथ्य की पुष्टि करते हैं।
(11.) बंगाल की खाड़ी भूसन्नति के अधोगमन से भारत का पूर्वी तट 1.2 मिलीमीटर प्रतिवर्ष की दर से नीचे की ओर बैठ रहा है।
(12.) प्राकृतिक तेल एवं गैस आयोग द्वारा शिवालिक के पर्वत पाद प्रदेश में किए गए एक बोरिंग से 17 फीट गहरी एक मीठे जल की झील का पता चला है। जो वस्तुतः इंडो-ब्रह्मा नदी की घाटी है। भारतीय प्लेट के उत्तर-पूर्व दिशा में संचलन से यह घाटी उत्थापित हो गई। परिणाम स्वरूप शिवालिक श्रेणी का निर्माण हुआ।
(13.) शिवालिक की उत्पत्ति से पूर्व इंडो-ब्रह्मा नदी हिमालय के दक्षिणी पर्वत पाद के सहारे पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित होकर अरब सागर में गिरती थी। प्लेट विवर्तनिकी के कारण दिल्ली जल विभाजक के उत्थान से इस नदी के मार्ग में परिवर्तन हो गया। जो वर्तमान में बंगाल की खाड़ी में गिरने लगी है। इसका परित्यक्त भाग आज भी हरियाणा में घग्घर नदी के रूप में पाया जाता है।जिसका जल वर्षा ऋतु में राजस्थान की तलवाड़ा झील में सूख जाता है।
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