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प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत, Plate Tectonics theory, Definition, facts, evidence, characteristics, criticism, history, plate boundaries, explanation,

प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत (Plate Tectonic Theory) :-
सामान्य परिचय :- प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत महाद्वीप एवं महासागर की उत्पत्ति से संबंधित नवीनतम सिद्धांत है। यह सिद्धांत महाद्वीपीय प्रवाह (Continental drift), समुद्र तली प्रसरण (Sea floor spreading), ध्रुवीय परिभ्रमण (Polar wandering) , द्वीपीय चाप (Islands arcs), महासागरीय कटक Oceanic ridge) इत्यादि की निर्माण प्रक्रिया पर विस्तृत प्रकाश डालता है। प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत का प्रादुर्भाव दो तथ्यों के आधार पर हुआ है।
(1.) महाद्वीपीय प्रवाह की संकल्पना (Concept of Continental drift)
(2.) सागर नित्तल प्रसार की संकल्पना (Concept of Sea floor spreading)
प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत का प्रतिपादन 1962 में हैरी हेस महोदय द्वारा किया गया। सन् 1967 में मैकेंजी,पार्कर, मोर्गन ने मिलकर स्वतंत्र रूप से उपलब्ध विचारों को समन्वित कर एक अवधारणा प्रस्तुत की जिसे प्लेट विवर्तनिकी कहते हैं। 
• इस सिद्धांत की वैज्ञानिक व्याख्या का श्रेय मोर्गन को दिया जाता है। जबकि इसके प्रचार-प्रसार का श्रेय मैकेंजी, पार्कर तथा होम्स को दिया जाता है। प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी की भूपर्पटी का निर्माण अनेक छोटी-बड़ी प्लेटों से हुआ है। ये प्लेटें 100 किलोमीटर की मोटाई वाले स्थलमंडल से निर्मित है एवं दुर्बलता मंडल पर तैरती रहती है। इन प्लेटों के संचालन के फलस्वरूप महाद्वीप एवंमहासागरों के वर्तमान स्वरूप की उत्पत्ति हुई है।
प्लेट का अर्थ एवं परिभाषा :- स्थलीय दृढ़ भूखंड को प्लेट कहा जाता है।
प्लेट शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग टुजो विल्सन ने 1965 में किया था। प्लेट का निर्माण स्थलमंडल से हुआ है। इनकी रचना सियाल एवं सीमा से हुई है अर्थात इनका निर्माण महाद्वीपीय व महासागरीय स्थलमंडलों से मिलकर हुआ है। जिसकी मोटाई 100 किलोमीटर तक मानी गई है। ये प्लेटें दुर्बलता मंडल (Asthenosphere) पर एक स्वतंत्र इकाई के रूप में क्षैतिज अवस्था में गतिशील है। प्लेटो के संचलन का मुख्य कारण दुर्बलता मंडल में रेडियो सक्रिय पदार्थों की उपस्थिति के कारण तापीय संवहन तरंगों की चक्रीय प्रक्रिया का होना है। जिस के संबंध में सर्वप्रथम आर्थर होम्स ने बताया था।
प्लेट विवर्तनिकी (Plate Tectonic) :- प्लेटों के स्वभाव तथा प्रवाह से संबंधित अध्ययन को प्लेट विवर्तनिकी कहा जाता है।
मुख्य एवं गौंण प्लेटें :- प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी के स्थलमंडल को छह या सात प्रमुख प्लेटो एवं 20 लघु प्लेटों में विभाजित किया गया है। नासा ने प्लेटो की संख्या 100 बताई है। इन प्लेटो की सीमा को नवीन वलित पर्वत, खाईयांँ, भ्रंश सीमांकीत करते है।
• प्रमुख प्लेटें :-
1. यूरेशियन प्लेट :- यह पूर्णतया महाद्वीपीय प्लेट है।
2. उत्तरी अमेरिकन प्लेट :- यह प्लेट महासागरीय एवं महाद्वीपीय अर्थात मिश्रित प्रकार की है।
3. दक्षिणी अमेरिकन प्लेट:- यह प्लेट महासागरीय एवं महाद्वीपीय अर्थात मिश्रित प्रकार की है।
4.अफ्रीकन प्लेट :- यह महासागरीय-महाद्वीपीय प्रकृति की प्लेट है।
5.अंटार्कटिक प्लेट:- यह पूर्णतया महाद्वीपीय प्लेट है।
6.प्रशांत प्लेट:- यह प्लेट पूर्णतया महासागरीय प्लेट है।
7. इण्डो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट :- यह महासागरीय-महाद्वीपीय प्रकृति की प्लेट है।
प्रमुख गौंण प्लेटें :-
1.कोकोस प्लेट :- यह प्लेट मध्यवर्ती अमेरिका एवं प्रशांत महासागरीय प्लेट के बीच स्थित है।
2. नज़का का प्लेट :- यह प्लेट दक्षिणी अमेरिका व प्रशांत महासागरीय प्लेटों के मध्य स्थित है।
3. फिलीपीन प्लेट :- यह एशिया महाद्वीप और प्रशांत महासागरीय प्लेट के बीच स्थित है।
4. कैरोलीन प्लेट :- यह न्यूगिनी के उत्तर में फिलिपियन-इंडियन प्लेट के मध्य स्थित है।
5. फ्यूजी प्लेट :- यह ऑस्ट्रेलिया के उत्तर पूर्व में स्थित है।
6. अरेबियन प्लेट :- इस प्लेट के अंतर्गत अरब प्रायद्वीप का भूभाग सम्मिलित है।
7. स्कोशिया प्लेट
8. कैरेबियन प्लेट
9. तिब्बत प्लेट
10 सोमाली प्लेट
11. नूबियन प्लेट
महासागरीय प्लेटें :- इन प्लेटो का भार अधिक तथा मोटाई कम होती है। इन प्लेटो का निर्माण बेसाल्ट द्वारा हुआ है। उदाहरण - प्रशांत महासागरीय प्लेट,
• महाद्वीपीय प्लेट :- ये प्लेटें अपेक्षाकृत हल्की है तथा इनकी रचना ग्रेनाइट से हुई है। इनकी मोटाई लगभग 100 किलोमीटर है। उदाहरण -  यूरेशियाई तथा अंटार्कटिका प्लेट।
• महासागरीय-महाद्वीपीय प्लेटें :- इन प्लेटो का निर्माण महासागरीय तली एवं महाद्वीपों भाग से मिलकर हुआ है। उदाहरण - अमेरिकी प्लेट, भारतीय प्लेट।
प्लेटो के किनारे या सीमा (Plate Margins or Boundary) :- इन प्लेटो के किनारे अत्यधिक महत्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि इन्हीं किनारों के सहारे संपूर्ण विवर्तनिक घटनाएं जैसे भूकंप ज्वालामुखी तथा अन्य विवर्तनिक घटनाएं घटित होती है। लघु प्लेटें बड़ी प्लेटों से स्वतंत्र होकर गतिशील हो सकती हैं। 
नोट:- (1.) प्लेट किनारा (Plate Boundary) :- प्लेट के सीमांत भाग को प्लेट किनारा कहते हैं।
(2.) प्लेट सीमा (Plate Margins) :- दो प्लेटों के मध्य संचलन मंडल(motion zone) को प्लेट सीमा कहते हैं।
• प्लेटो के किनारों को सामान्यतः तीन भागों में विभाजित किया गया है।
 (1.) अपसारी प्लेट सीमा या रचनात्मक किनारा (Divergent plate boundary or Constructive margin) 
(2.) अभिसारी प्लेट सीमा या विनाशात्मक किनारा (Convergent plate boundary or Destructive margin)  
(3.) संरक्षी प्लेट सीमा (Conservative margin) 
{1.} अपसारी प्लेट सीमा :-  इसके अंतर्गत दो प्लेटें एक दूसरे की विपरीत दिशा में गति करती है तो नई पर्पटी या पदार्थों का निर्माण होता है। इसे अपसारी प्लेट सीमा कहते हैं। ये संवहन तरंगों के ऊपरीमुखी स्तंभों के ऊपर अवस्थित होते हैं। इसके कारण दो प्लेटें एक दूसरे की विपरीत दिशा में गतिशील होती है एवं दोनों के मध्य एक भ्रंश दरार का निर्माण होता है, जिसके सहारे दुर्बलता मंडल का मैग्मा ऊपर आता है एवं ठोस होकर नवीन भूपर्पटी का निर्माण करता है। अतः इन्हें रचनात्मक किनारा भी कहा जाता है। इस तरह की प्लेटों को अपसारी प्लेटें कहते हैं। यह घटना मध्य महासागरीय कटको के सहारे घटित होती है। मध्य अटलांटिक कटक इसका सर्वोत्तम उदाहरण है। जिस स्थान पर यह क्रिया होती है उसे प्रसारी स्थान (Spreading site) कहते हैं। इन प्लेट किनारों पर भ्रंश दरार का निर्माण होता है। जिससे मैग्मा उदगार तथा तापीय संवहन तरंगों के कारण मैग्मा का फैलाव होता है। जिससे नवीन सागर का निर्माण एवं सागर नित्तल का प्रसार होता है। 
उदाहरण- मध्य अटलांटिक कटक का निर्माण उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिकी प्लेट तथा यूरेशियन एवं अफ्रीकन प्लेटो के अपसरण के कारण हुआ है।
{2.} अभिसरी प्लेट सीमा :- जब दो प्लेट एक दूसरे के आमने सामने अभिसरित होती है। तो भारी प्लेट का धँसाव अधोगमित क्षेत्र (Subduction zone) में होता है। इस क्रिया के फलस्वरुप प्लेट के किनारों का विनाश होता है। अतः इसे विनाशात्मक प्लेट किनारा भी कहते हैं। ऐसी प्लेटों को अभिसारी प्लेट कहा जाता है। यह अभिसरण मुख्यतः तीन प्रकार का होता है।
(1.) महासागरीय-महासागरीय प्लेटों के मध्य अभिसरण।
(2.) महासागरीय एवं महाद्वीपीय प्लेटों के मध्य अभिसरण। 
(3.) महाद्वीपीय-महाद्वीपीय प्लेटों के मध्य अभिसरण।
(1.) महासागरीय-महासागरीय प्लेटों के मध्य अभिसरण :- जब दोनों अभिसारी प्लेटें महासागरीय हो तो अपेक्षाकृत बड़ी व भारी प्लेट का अधोगमन हल्की प्लेट के नीचे होता है। परिणाम स्वरूप ज्वालामुखी क्रिया, ज्वालामुखी द्वीप एवं महासागरीय गर्तो का निर्माण होता है। 
उदाहरण:-  प्रशांत प्लेट, जापान या फिलीपींस प्लेटों के अभिसरण के कारण जापान के होंशू द्वीप,लूजोन द्वीप तथा उत्तरी पूर्वी प्रशांत महासागर में समुद्री गर्तो ( मेरियाना ट्रेंच) का निर्माण हुआ है।
( 2.) महासागरीय एवं महाद्वीपीय प्लेटों के मध्य अभिसरण :- जब एक अभिसारी प्लेट महासागरीय एवं दूसरी महाद्वीपीय हो तो महासागरीय प्लेट के अधिक भारी होने के कारण उसका महाद्वीपीय प्लेट के नीचे क्षेपण होता है।परिणाम स्वरूप महासागरीय गर्त, वलित पर्वत, ज्वालामुखी पर्वत का निर्माण होता है। राॅकी पर्वत एवं एंडीज पर्वत का निर्माण इसी प्रकार हुआ है। इस क्रिया में अधोगमित क्षेत्र का में पिघला हुआ मैग्मा भू-पर्पटी को तोड़ते हुए ज्वालामुखी क्रिया  का निर्माण भी करता है।
उदाहरण- द.अमेरिकी प्लेट का पश्चिमी किनारा जहां पर्वतों का निर्माण हुआ है। ज्वालामुखी उद्गार देखने को मिलते हैं। एंडीज पर्वत के आंतरिक भागों में कोटोपैक्सी तथा चिंबोराजो ज्वालामुखी पाए जाते हैं।
(3.) महाद्वीपीय-महाद्वीपीय प्लेटों के मध्य अभिसरण :- जब दोनों अभिसारी प्लेटें महाद्वीपय होती है, तो इनमें से किसी भी प्लेट का अधोगमित क्षेत्र में क्षेपण नहीं होता है। इस प्रकार के अभिसरण के फलस्वरुप वलित पर्वतों का निर्माण होता है।
 उदाहरण- यूरेशियन प्लेट एवं इण्डो-ऑस्ट्रेलियन के मध्य अभिसरण के फलस्वरूप टैथिस सागर में जमा अवसादो में वलन पढ़ने से हिमालय पर्वत का निर्माण हुआ है।
{ 3.} संरक्षी प्लेट किनारा :- इस प्लेट किनारे के सहारे दो प्लेटें एक दूसरे के अगल बगल में  खिसकती है, जिस कारण किसी भी प्लेट सीमा का विनाश नहीं होता है। इन प्लेटों के किनारों के धरातलीय क्षेत्र में अंतर नहीं होता है,अतः इस प्लेट सीमा को शीयर सीमा कहा जाता है। इस सीमा के सहारे न तो प्लेट का क्षय होता है और न ही नयी क्रस्ट का निर्माण होता है। अपितु इन प्लेट किनारों के सहारे रूपांतर भ्रंश (Transform fault) का निर्माण होता है। 
• रूपांतर भ्रंश के सहारे सर्वाधिक तीव्रता वाले भूकंप आते हैं। 
उदाहरण- सान-एंड्रियाज रूपांतर भ्रंश (कैलीफोर्निया- संयुक्त राज्य अमेरिका)
प्लेटो की गति :- विश्व की सभी प्लेटों की गति असमान पाई जाती है। 
• महाद्वीपीय प्लेटों की औसत गति 2 सेंटीमीटर प्रति वर्ष तथा महासागरीय प्लेटों की औसत गति 5 सेंटीमीटर प्रति वर्ष ज्ञात की गई है।
• ग्रीनलैंड प्लेट सर्वाधिक गति ( 20 सेंटीमीटर प्रति वर्ष ) की दर से उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर प्रवाहित हो रही है।
• भारतीय प्लेट गोंडवाना लैंड से अलग होने के बाद 12 सेंटीमीटर प्रति वर्ष की गति से उत्तर दिशा की ओर प्रवाहित हो रही थी। इस प्लेट के साथ 140 मिलियन वर्ष पूर्व मेडागास्कर भी जुड़ा हुआ था। किंतु भारतीय प्लेट के उत्तरी कगार के तिब्बत के द्रास से टकराने के कारण क्रीटेशियस युग में इसकी गति धीमी हो गई। परिणाम स्वरूप भारतीय प्लेट वर्तमान में 5 सेंटीमीटर प्रति वर्ष की दर से उत्तर-पूरब दिशा की ओर प्रवाहित हो रही है।
प्लेटो की गति के कारण :- पृथ्वी की सभी बड़ी एवं छोटी प्लेटें गतिशील है। इनकी गति को प्रभावित करने वाले कारक निम्न है।
(1.) पृथ्वी की घूर्णन गति :-  पृथ्वी की घूर्णन गति का प्लेटों की गतिशीलता पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। पृथ्वी के धरातल पर भूमध्यरेखीय भाग अधिक तीव्र गति से घूर्णन करता है। इसलिए भूमध्य रेखीय भागों पर केंद्रप्रसारित बल अधिक होता है। ध्रुवों की तरफ जाने पर यह बल कम होता जाता है। इसके परिणाम स्वरूप यदि कोई प्लेट ध्रुवीय भाग में स्थित है तो वह भूमध्य रेखा की तरफ प्रवाहित होगी। उदाहरण भारतीय प्लेट दक्षिणी ध्रुव से मध्य रेखा की ओर प्रवाहित हो रही है।
•  यदि कोई प्लेट देशांतर के सहारे उत्तर से दक्षिण की ओर विस्तृत है तथा उसका विस्तार भूमध्य रेखीय, मध्य तथा उच्च अक्षांशों पर है तो यह पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित होगी। उदाहरण- दोनों अमेरिकी प्लेटें तथा प्रशांत प्लेट पश्चिम की ओर खिसक रही है।
• आयलर सिद्धांत :- पृथ्वी के घूर्णन का केंद्रप्रसारित बल पर प्रभाव की व्याख्या तथा इस बल के प्लेटों की गति एवं दिशा पर प्रभाव का अध्ययन सर्वप्रथम आयलर महोदय ने किया था। अतः इस सिद्धांत को आयलर सिद्धांत कहते है।
हॉट स्पॉट (Hot Spot) :- भूपर्पटी या प्लेट के नीचे मेंटल में रेडियोधर्मी तत्वों की अधिकता के कारण भूतापीय उर्जा उत्पन्न होती है। इन क्षेत्रों को हॉटस्पॉट कहा जाता है। हॉट स्पॉट संकल्पना का प्रतिपादन टुजो विल्सन ने किया था। उत्पन्न ऊर्जा  संवहनीय तरंगों के रूप में ऊपर उठती है, जो प्लेट के निचली सतह तक आती है। इस ऊपर उठती संवहनीय तरंगों को प्लूम(Plume) कहते हैं। यही प्लूम प्लेट के संचालन का प्रमुख कारण है। ब्लूम के कारण ही प्लेट  पीघलती है तथा यह किनारों को धक्का देकर ऊपर उठाती है। जिससे प्लेट दुर्बलता मंडल पर नाव की तरह तैरने लगती है। 
प्लेट विवर्तनिकी का प्रभाव :- प्लेटों के संचलन के कारण पृथ्वी के धरातल पर ज्वालामुखी, भूकंप, समुद्र नितल प्रसार, द्वीपीय चापों का निर्माण, वलित पर्वतों का निर्माण तथा ध्रुवीय परिभ्रमण जैसी घटनाएं घटित होती है। यह इस बात का प्रमाण है, कि प्लेटें गतिशील है।
प्लेटो की गतिशीलता का मापन पूरा चुंबकत्व (Palaemagnetism) के आधार पर भी किया जाता है।

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