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Volcano,meaning,Defination,types,distribution,ज्वालामुखी अर्थ, परिभाषा, प्रकार,प्रमुख ज्वालामुखीयों की स्थिति एवं विशेषताएं ज्वालामुखीयो का विश्व वितरण

📝...  ज्वालामुखी अर्थ एवं परिभाषा :-
ज्वालामुखी से तात्पर्य उस क्षेत्र या दरार से होता है। जिसका संबंध पृथ्वी के आंतरिक भाग से होता है तथा उस क्षेत्र के माध्यम से गैस, तरल लावा राख,जलवाष्प आदि का निर्गमन होता है। ज्वालामुखी क्रिया के अंतर्गत मैग्मा के निर्गमन से लेकर धरातल के आंतरिक भाग में मैग्मा के विभिन्न रूपों में इसके ठंडा होने की प्रक्रिया को शामिल किया जाता है। 
📝... ज्वालामुखी क्रिया (Volcanic eruption) :-
• उलरिज एवं मार्गन के अनुसार :- " ज्वालामुखी क्रिया के अंतर्गत पृथ्वी के आंतरिक भाग में मैग्मा तथा गैस की उत्पत्ति से लेकर पदार्थों के ऊपर की ओर अग्रसर होने तथा भूपटल के नीचे प्रविष्ट होने एवं धरातल पर प्रकट होने तथा शीतल एवं ठोस होकर रवेदार एवं अर्द्ध रवेदार शैलों के निर्माण तक की समस्त प्रक्रिया को शामिल किया जाता है। "
• आर्थर होम्स के अनुसार :- " ज्वालामुखी मुख्य रूप से एक विवर या छिद्र होता है। जिसका संबंध पृथ्वी के आंतरिक भाग से होता है तथा इससे लावा का प्रवाह, तप्त जल का फौवारा एवं गैसों का विस्फोटक आकस्मिक उद्गार तथा ज्वालामुखी धूल एवं राख का धरातलीय सतह पर आगमन होता है।"
 इस प्रकार स्पष्ट है कि ज्वालामुखी क्रिया एक वृहद प्रक्रिया है। जिसका संबंध भू पृष्ठ के नीचे तथा ऊपर दोनों रूपों में होता है। आभ्यान्तरिक क्रिया में धरातल के नीचे क्रस्ट तथा मेंटल में मैग्मा तथा गैसों का निर्माण होता है तथा इनका ऊपर की ओर प्रसार होता है। धरातल के नीचे मार्ग में मैग्मा शीतल होकर ठोस रूप धारण करता है।जिससे विभिन्न रूपों का निर्माण होता है। जैसे बेथोलिथ, फैकोलिथ, लैकोलिथ, सिल, डा़इक आदि।
 बाह्म क्रियाओं में गर्म एवं तरल पदार्थ लावा एवं अन्य पदार्थ, गैसें आदि के धरातल पर प्रकट होने की क्रिया को शामिल किया जाता है। इसमें ज्वालामुखी लावा का दरारी प्रवाह, गर्म जल के स्रोत, गीजर,धुआँरे, पंख ज्वालामुखी आदि को शामिल किया जाता है
📝...  ज्वालामुखी से निसृत पदार्थ (Pyroclastic materials) :- ज्वालामुखी क्रिया के फलस्वरुप उद्गार के समय छिद्र के माध्यम से अनेक प्रकार के पदार्थ धरातल पर प्रकट होते हैं। इन पदार्थों को तीन भागों में विभाजित किया गया है।
(1.) गैसें तथा जल वाष्प (Gases or Water vapour) :- सर्वप्रथम ज्वालामुखी उदभेदन के समय गैसें भूपटल को तोड़कर धरातल पर प्रकट होती है। इन गैसों में सर्वाधिक मात्रा वाष्प की होती है। संपूर्ण ज्वालामुखी गैसों का 70 से 90% भाग वाष्प का होता है। इसके अलावा ज्वालामुखी क्रिया के फलस्वरुप कार्बन-डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन,सल्फर डाइऑक्साइड आदि गैसें निकलती है।
(2.) विखंडित पदार्थ (Pyroclastic materials) :- विखंडित पदार्थों के अंतर्गत ज्वालामुखी की बारीक धूल से लेकर बड़े-बड़े चट्टानों के टुकड़ों को शामिल किया जाता है। उद्गार के समय गैसों की तीव्रता के कारण ये टुकड़े आकाश में अधिक ऊंचाई तक उछाल दिए जाते हैं। जो गैसों की तीव्रता कम होने पर धरातल पर आसमान से गिरने लगते हैं। इनके गिरने से ऐसा लगता है। जैसे आकाश से बम बरसाए जा रहे हो।
• बम (bomb) :- ज्वालामुखी से निसृत बड़े बड़े टुकड़ों को बम कहते हैं। 
• लैपिली (Lapilli) :- ज्वालामुखी क्रिया के फलस्वरुप निसृत मटर के दाने या अखरोट के आकार वाले टुकड़ों को लैपिली कहते हैं।
• ज्वालामुखी धूल या राख (Volcanic dust or ash) :- ज्वालामुखी क्रिया के फलस्वरुप निसृत बहुत बारीक कणों को ज्वालामुखी धूल या राख कहते हैं।
• टफ (Tuff) :- ज्वालामुखी क्रिया के फलस्वरुप धूल एवं राख के घनीभवन से बने चट्टानी टुकड़ों को टफ कहते हैं।
• ब्रेसिया (Breccia) :- ज्वालामुखी क्रिया के फलस्वरुप निकलने वाले बड़े आकार के कोणात्मक चट्टानी टुकड़ों को ब्रेसिया कहते हैं।
• इग्मिब्राइट (Ignimbrite):- ज्वालामुखी उद्गार के समय निकलनेवालले बारिक पदार्थों (जिनका आकार धूल के कणों के समान होता है) तथा छोटे शिलाखंड एवं मृत्पात्र खंडों के उदगार स्थल से दूर निक्षेप को इग्मिब्राइट कहते हैं।
(3.)मैग्मा और लावा (Megma or Lava) :- 
• मैग्मा (Megma):-  ज्वालामुखी उद्गार के समय भूगर्भ में स्थित तरल पदार्थ को मैग्मा कहते हैं।
लावा :- जब यह मैग्मा धरातल पर प्रकट होता है, तो इसे लावा कहते हैं। सिलिका की मात्रा के आधार पर लावा को दो भागों में विभाजित किया गया है।
(अ) क्षारीय लावा (Basic lava) :- यह लावा हल्का,पतला एवं धरातल पर से शीघ्रता से फैलने वाला होता है। यह लावा गहरे तथा काले रंग का होता है इसे पैठिक लावा भी कहते हैं। इस लावा में सिलिका की मात्रा कम पाई जाती है। जिस कारण इससे चपटे एवं शील्ड शंकु का निर्माण होता है। मोनालोआ शंकु (हवाई द्वीप) का निर्माण बेसिक लावा से ही हुआ है।
(ब) अम्लीय लावा (Acid lava) :- यह लावा अत्यधिक गाढ़ा तथा चिपचिपा होता है। इसमें सिलिका की मात्रा अधिक पाई जाती है। यह लावा पीले रंग का होता है। इसमें अम्ल की मात्रा अधिक पाई जाती है। अतः यह जम जाने पर ऊंचे तापमान पर पिघलता है। यह लावा धरातल पर विस्तृत क्षेत्र में फैलकर क्रेटर के आसपास गुंबदाकार शंकु का निर्माण करता है। स्ट्रांबोली (इटली) एवं पाई-डी-डोम (फ्रांस) इसी प्रकार के लावा से निर्मित गुंबदाकार शंकु के उदाहरण है।
• रासायनिक एवं खनिज संगठन के आधार पर वर्गीकरण :- वर्तमान समय में मैग्मा तथा लावा एवं आग्नेय शैलों का वर्गीकरण रासायनिक तथा खनिज संगठन के आधार पर किया जाता है। खनिजों को हल्के रंग तथा गहरे रंग की दो श्रेणियों में विभक्त किया जाता है। ये इस प्रकार है।
(1.) फेल्सिक (Felsic) :- इसमें सिलिका प्रधन खनिज क्वार्टज तथा फेल्सपार की अधिकता होती है। जिनका रंग हल्का होता है। इसके अंतर्गत ग्रेनाइट अंतर्जात लावा का तथा रायोलाइट बहिर्जात लावा का उदाहरण है।
(2.) मैफिक (Mafic) :- इस समूह के खनिजों में मैग्नीशियम व लौह तत्व की प्रधानता होती हैं। सिलिका की मात्रा कम होती है।ये  रंग में गहरे होते हैं। पायरोक्सींस,एम्फिबोल्स तथा ऑलविन की प्रधानता होती है। इसके अंतर्गत डायोराइट अंतर्जात लावा का तथा एंडेसाइट बहिर्जात लावा का उदाहरण है।
(3.) अल्ट्रामैफिक (Ultramafic ) :- फेल्सिक तथा मैफिक के मध्यस्थ गुणों वाले खनिजों को अल्ट्रामैफिक कहा जाता है। इनमें सिलिकन व एल्नियुमिनीयम की मात्रा अधिक होती है। इसके अंतर्गत गैब्रो अंतर्जात लावा का तथा बेसाल्ट बहिर्जात लावा का उदाहरण है।
• लावा को हवाईयन भाषा के अनुसार दो भागों में बांँटा गया है।
(1.) पहोयहोय लावा (Pahoyhoy Lava ) :- यह लावा अत्यधिक तरल होता है। इसका विस्तार चादर के रूप में पाया जाता है। इसे लसदार लावा भी कहते हैं। पहोयहोय का हवाईयन भाषा में अर्थ साटन अर्थात रेशम जैसा मुलायम, चमकदार तथा चिकना होता है। यह लावा पतला होने के कारण मंद गति से शीतल होता है तथा लंबी अवधि तक गतिशील रहता है। इस लावा को रोपीलावा (Ropy lava) भी कहते हैं। जब इस लावा का प्रसार सागर नितल में होता है। तो फैलने के बाद इसका रूप तकिये या बोरे के समान होता है। इस कारण इसे शिरोधन लावा या पीलो लावा (Pillow lava ) भी कहते हैं।
(2.) आह आह लावा (Ah Ah Lava) :- यह लावा अत्यधिक गाढ़ा तथा लसलसा होता है। इसे ब्लॉक लावा (Block lava) भी कहते हैं।
📝...  ज्वालामुखी के अंग (Parts of Volcano):-
• ज्वालामुखी शंकु (Volcanic Cone) :- ज्वालामुखी क्रिया के फलस्वरुप जब लावा ज्वालामुखी छिद्र के चारों जमा होने लगता है। तो इस प्रकार निर्मित शंकु की आकृति को ज्वालामुखी शंकु कहते हैं।
• ज्वालामुखी पर्वत (volcanic mountain) :- ज्वालामुखी शंकु के चारों ओर लावा का जमाव अधिक हो जाने पर शंकु का आकार विस्तृत हो जाता है तथा यह पर्वत का रूप धारण कर लेता है। इस शंकु को ज्वालामुखी पर्वत कहते हैं।
• ज्वालामुखी छिद्र या विवर (Volcanic Vent) :- ज्वालामुखी पर्वत के ऊपर मध्य में एक छिद्र होता है। जिससे लावा बाहर निकलता है। इसे ज्वालामुखी विवर कहते हैं।
• ज्वालामुखी नली (Volcanic Pipe) :- ज्वालामुखी विवर का संबंध नीचे भूगर्भ से एक पतली नली द्वारा होता है। इसे ज्वालामुखी नली कहते हैं।
• ज्वालामुखी मुख (Volcanic Crater) :- जब ज्वालामुखी का विवर (छिद्र ) विस्तृत हो जाता है। तो इसे ज्वालामुखी मुख कहते हैं।
• काल्डेरा (Caldera) :- धँसाव की प्रक्रिया या अन्य कारणों की वजह से ज्वालामुखी मुख का विस्तार अधिक हो जाने पर उसे काल्डेरा कहते है।
📝... ज्वालामुखीयों के प्रकार (Types of Volcano) :- विभिन्न आधारों पर ज्वालामुखीयों को निम्नलिखित प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है।
(1.) सक्रियता के आधार पर ज्वालामुखी का वर्गीकरण :- ज्वालामुखी उदगार की प्रक्रिया के बीच अवकाश के आधार पर ज्वालामुखी को तीन श्रेणियों में बांटा गया है।
(अ) सक्रिय ज्वालामुखी (Active Volcano) :- ऐसे ज्वालामुखी जिनके मुख से सदैव धूल, धुआंँ, वाष्प, राख, चट्टानी टुकड़े, लावा आदि पदार्थ बाहर निकलते रहते हैं। उन्हें सक्रिय ज्वालामुखी कहते हैं। वर्तमान में विश्व में लगभग 500 से अधिक सक्रिय ज्वालामुखी है। महत्वपूर्ण सक्रिय ज्वालामुखी इस प्रकार है।
• मोनालोआ - हवाई द्वीप
• ओजस डेल सैलेडो- अर्जेंटीना चिलि की सीमा पर स्थित है।
• बैरन द्वीप- अंडमान निकोबार
• माउंट इरेबस-अंटार्कटिका
• कोटोपैक्सी- इक्वाडोर 
• स्ट्रांबोली - यह ज्वालामुखी भूमध्य सागर में सिसली के उत्तर में लिपरी द्वीप पर स्थित है इससे सदैव प्रज्वलित गैस से निकलती रहती हैं। जिससे आसपास का क्षेत्र प्रकाशमान रहता है। अतः इस ज्वालामुखी को भूमध्य सागर का प्रकाश स्तंभ (Light house) कहते हैं।
• माउंट एटना - सिसली द्वीप 
• यासुर -ताना द्वीप
• समेरू- इंडोनेशिया
• मेरापी- इंडोनेशिया
• दुकानों- इंडोनेशिया
• लांगीला एवं बागाना- पापुआ न्यूगिनी
• कीलायु- हवाई द्वीप
• माउंट ऐरिबस-अंटार्कटिका
• पिनाटुबो - फिलीपाइन्स 
(ब) प्रसुप्त ज्वालामुखी (Dormant Volcano) :- ऐसे ज्वालामुखी जिनमें एक बार उद्गार होने के पश्चात निकट भविष्य में उदगार नहीं हुआ है। लेकिन जिनमें कभी भी उद्गार होने की संभावना है। ऐसे ज्वालामुखीयों को प्रसुप्त ज्वालामुखी कहते हैं।
उदारहण -
• विसुवियस - इटली
• फ्यूजीयामा - जापान
• क्राकाटाओ - इंडोनेशिया
• नारकोंडम -अंडमान निकोबार
(स) शांत ज्वालामुखी (Extinet Volcano) :- इन ज्वालामुखीयों में  एक बार उद्गार होने के पश्चात उद्गार पुनः नहीं होता है तथा भविष्य में भी इनमें कोई उद्गार होने की संभावना नहीं होती है। इन्हें शांत ज्वालामुखी कहते हैं। प्रमुख शांत ज्वालामुखी निम्नलिखित हैं
• माउंट पोपा - म्यानमार
• किलिमंजारो- तंजानिया
• चिंबोराजो- इक्वेडोर
• एकांकगुआ - एंडीज पर्वत 
• कोहे सुल्तान- ईरान
• देवबंद- ईरान
(2.) ज्वालामुखी उद्गार के अनुसार वर्गीकरण :-
(अ) केंद्रीय उद्गार वाले ज्वालामुखी (Central eruption type volcano) :- जब ज्वालामुखी का उद्गार किसी एक केंद्रीय मुख से भारी धमाके के साथ होता है। तो इसे केंद्रीय उदभेदन कहते हैं। इस प्रकार के ज्वालामुखीयों की उत्पत्ति विनाशात्मक प्लेटों के किनारों के सहारे होती है। इस प्रकार के ज्वालामुखी अत्यधिक विनाशकारी होते हैं जिनके उद्गार के फलस्वरूप भयंकर भूकंप आते हैं। इन ज्वालामुखीयों को लैक्रायक्स ने निम्नलिखित भागों में बांटा है।
(1.) हवाईयन तुल्य ज्वालामुखी :- इस प्रकार के ज्वालामुखीयों में उदगार शांत ढंग से होता है। इसका मुख्य कारण लावा का पतला होना तथा गैसों की तीव्रता में कमी का होना है। इस प्रकार का उद्गार हवाई द्वीप पर पाए जाने वाले ज्वालामुखीयों में देखा गया है। इस कारण इस प्रकार के ज्वालामुखीयों को हवाईयन प्रकार के ज्वालामुखी कहते हैं।
(2.) स्ट्रांबोली तुल्य ज्वालामुखी :- इस ज्वालामुखी में हवाईयन तुल्य ज्वालामुखी की अपेक्षा कुछ अधिक तीव्रता के साथ उद्गार होता है। मार्ग में गैसों के रुकावट के कारण कभी-कभी विस्फोटक उद्गार होते हैं। इस प्रकार का उद्गार मुख्यतः भूमध्य सागर में स्थित सिसलि द्विप के उत्तर में स्थित लिपरी द्वीप के स्ट्रांबोली ज्वालामुखी में होता है। इसी के नाम पर इस तरह के ज्वालामुखीयों को स्ट्रांबोली तुल्य ज्वालामुखी कहते हैं।
(3.) वलकैनो तुल्य ज्वालामुखी :- इस प्रकार के ज्वालामुखीयों में उदगार भयंकर विस्फोट के साथ होता है। इनसे निकलने वाला लावा चिपचिपा एवं लसदार होता है। जो ज्वालामुखी छिद्र पर जमकर उसे ढक लेता है। जिससे गैसों के मार्ग में अवरोध आ जाता है। परिणाम स्वरूप गैसें अधिक मात्रा में एकत्रित होकर तीव्रता से अवरोध को उड़ा देती है तथा भयंकर विस्फोट के साथ प्रकट होती है। इस प्रकार के ज्वालामुखीयों का नामकरण भूमध्यसागर में स्थित लिपारी द्विप के ज्वालामुखी वलकैनो के आधार पर किया गया है। इस प्रकार के ज्वालामुखीयों में अगला उदभेदन पिछले उद्गार से निर्मित लावा की परत को उड़ाकर होता है।
(4.) पीलियन तुल्य ज्वालामुखी :- यह ज्वालामुखी सबसे अधिक विनाशकारी होते हैं। इनका उद्गार सबसे अधिक विस्फोटक एवं भयंकर होता है। इन ज्वालामुखीयों में निकलने वाला लावा सबसे अधिक चिपचिपा तथा लसदार होता है। इन ज्वालामुखीयों का नामकरण पश्चिमी द्वीप समूह के मार्टीनिक द्विप पर स्थित पीली ज्वालामुखी के नाम पर किया गया है। इस प्रकार के विस्फोटक उद्गार वाले ज्वालामुखीयों को पीलीयन तुल्य ज्वालामुखी कहते हैं। इन ज्वालामुखीयों में उद्गार से पूर्व शंकु या गुंबद का अधिकांश भाग नष्ट हो जाता है। जावा एवं सुमात्रा के मध्य सुंडा जलडमरूमध्य पर 1883 में कक्राकातोआ ज्वालामुखी का उद्गार इसी प्रकार का था।
(5.) विसुवियस तुल्य ज्वालामुखी :- इस प्रकार के ज्वालामुखीयों में उद्गार के समय गैसों की तीव्रता के कारण गैसें तथा लावा आकाश में अत्यधिक ऊंँचाई तक उछाल दिये जाते है। जब विस्फोटक पदार्थ काफी ऊंचाई तक पहुंच जाते हैं। तो गैस, वाष्प एवं लावा से निर्मित ज्वालामुखी बादल फूलगभी के आकार का हो जाता है।
इस प्रकार का उदगार 79 ई.वी. में विसुवियस ज्वालामुखी में हुआ था। इसका प्रथम पर्यवेक्षण प्लीनी महोदय द्वारा किया गया था। इस प्रकार के ज्वालामुखीयों को प्लिनी महोदय के नाम पर प्लीनियन प्रकार के ज्वालामुखी कहते हैं।
(ब)दरारी उदभेदन वाले ज्वालामुखी (Fissure eruption type volcano) :- भूगर्भिक  हलचलो के कारण भूपर्पटी की शैलों में दरारे पड़ जाती हैं। इन दरारों से लावा धरातल पर प्रवाहित होकर फैल जाता है। इस प्रकार के उदभेदन को दरारी उदभेदन कहते हैं। दरारी उदभेदन मुख्यतः रचनात्मक प्लेट किनारों के सहारे होता है। इस प्रकार के उदगार क्रिटैसियस युग में बड़े पैमाने पर हुए थे। जिसके परिणाम स्वरूप पृथ्वी पर लावा पठारो का निर्माण हुआ था।
Comming soon... Next part of Volcano... 
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