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पृथ्वी की आंतरिक संरचना Structure of the earth's interior, Internal structure, layers of the पृथ्वी की आंतरिक संरचना के विषय में जानकारी देने वाले स्रोत,seis ,seismograph,seismic waves, seismic waves shadow zones, core, sial, Sima, nife,

       

       पृथ्वी की आंतरिक संरचना 
(Structure of the earth's interior)
• सामान्य परिचय :-
पृथ्वी के धरातल का स्वरूप पृथ्वी की आंतरिक अवस्था एवं संरचना का परिणाम है। पृथ्वी की आंतरिक संरचना का विशेष महत्व है,क्योंकि इसी के फलस्वरूप हमारी पृथ्वी पर निर्मित विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक भूदृश्यों के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। पृथ्वी की आंतरिक संरचना किस प्रकार की है, आज भी यह एक रहस्य ही बना हुआ है। वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की आंतरिक संरचना के विषय में अप्रत्यक्ष साधनों के माध्यम से सूचना प्राप्त करने के पर्याप्त प्रयास किए हैं।
📝.. पृथ्वी की आंतरिक संरचना के स्रोत (Sources of the earth's interior) :-
• पृथ्वी की आंतरिक संरचना के विषय में जानकारी प्रदान करने वाले स्रोत को मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित किया गया है।
{1.} अप्राकृतिक स्रोत (Artificial Sources)
(1.) घनत्व (Density)
(2.) दबाव (Pressure)
(3.) तापमान (Temperature)
{2.} पृथ्वी की उत्पत्ति से संबंधित सिद्धांतों के साक्ष्य (evedience of origin of the earth's theories)
{3.} प्राकृतिक स्रोत (Natural Sources)
(1.) ज्वालामुखी उद्गार (Volcano eruption)
(2.) भूकंप विज्ञान के साक्ष्य (Evedience of seismology)
{1.} अप्राकृतिक साधन (Artificial sources) :- पृथ्वी की आंतरिक संरचना के विषय में जानकारी देने वाले अप्राकृतिक साधनों के अंतर्गत तीन स्रोतों को शामिल किया जाता है।
1. घनत्व 
2. दबाव 
3. तापमान
(1.) घनत्व (Density) :- पृथ्वी की चट्टानों के घनत्व, दबाव एवं आंतरिक भाग में बढ़ते हुए तापमान के आधार पर पृथ्वी की आंतरिक संरचना के विषय में अनेक निष्कर्ष निकाले गए हैं। पृथ्वी का औसत घनत्व 5.5 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर है। पृथ्वी की बाहरी परत का घनत्व 3.0 तथा मध्य परत का घनत्व 5.0 एवं अंतरतम का घनत्व 11.0 से 13.5 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर माना गया है।
• पृथ्वी का ऊपरी भाग परतदार शैलों का बना है। जिसकी औसत मोटाई आधे मील के समकक्ष है।कहीं-कहीं यह मोटाई अधिक भी पाई जाती है।इस  सतह के नीचे पृथ्वी के चारों ओर रवेदार एवं स्फटिकीय शैलों की एक परत पाई जाती है।
• कैवेन्डिश ने 1798 में न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत के आधार पर पृथ्वी के औसत घनत्व के मापन का प्रयास किया था। कैवेन्डिश के अनुसार पृथ्वी का औसत घनत्व जल की तुलना में 5.48 से अधिक है।
• प्वायन्टिंग ने 1878 में एक प्रयोग के द्वारा पृथ्वी का औसत घनत्व 5.49 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर बताया था।
• 1950 के पश्चात उपग्रहों के माध्यम से पृथ्वी के औसत घनत्व का परिकलन किया जाने लगा। उपग्रहों के आधार पर पृथ्वी का औसत घनत्व 5.517 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर परकलित किया गया है। धरातल का घनत्व 2.6 से 3.3 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर तथा पृथ्वी के केंद्र का घनत्व 11 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर परीकलित किया गया है। इस प्रकार प्रमाणित होता है,कि पृथ्वी के आंतरिक भाग का घनत्व सर्वाधिक है।
(2.) दबाव (Pressure) :- एक सामान्य नियम के अनुसार दबाव बढ़ने से घनत्व में वृद्धि होती है। परंतु प्रयोगों से यह स्पष्ट होता है, कि पृथ्वी के आंतरिक भाग के अधिक दबाव का कारण परतो का दबाव न होकर वहांँ पाए जाने वाले पदार्थों के अधिक घनत्व के कारण है।
(3.) तापमान (Temperature) :- सामान्य रूप से पृथ्वी के आंतरिक भाग में 8 किलोमीटर की गहराई तक प्रवेश करने पर प्रति 32 मीटर पर 1 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की वृद्धि होती है। इसके बाद तापमान में गहराई के साथ वृद्धि दर कम होती जाती है।
• 100 किलोमीटर की गहराई में प्रत्येक किलोमीटर पर 12 डिग्री सेंटीग्रेड की वृद्धि होती है। इसके पश्चात 300 किलोमीटर की गहराई में प्रत्येक किलोमीटर पर 2 डिग्री सेंटीग्रेड एवं इसके पश्चात प्रत्येक किलोमीटर की गहराई पर 1 डिग्री सेंटीग्रेड की वृद्धि होती है। इसे ज्ञात होता है कि पृथ्वी के आंतरिक भाग में उष्मा का प्रवाह बाहर की ओर तापीय संवहन तरंगों के रूप में होता है तथा इन तरंगों की उत्पत्ति मुख्य रूप से रेडियो सक्रिय पदार्थों तथा गुरुत्व बल के तापीय ऊर्जा में परिवर्तन के कारण होती है।
• वैज्ञानिक परीक्षणों के आधार पर महाद्वीपीय क्रस्ट में तापमान की वृद्धि दर का मापन भूताप ग्राफ (Geotherms graphs) के आधार पर किया जाता है। तापमान में गहराई के साथ वृद्धि  दर घटती जाती है। 
• पृथ्वी के आंतरिक भाग में तापमान की स्थिति के विषय में निम्न तथ्य प्रस्तुत किए गये हैं।
दुर्बलता मंडल (Asthenosphere) आंशिक रूप से द्रवित या गलित अवस्था में है।
• 100 किलोमीटर की गहराई पर तापमान 11 डिग्री सेंटीग्रेड से 12 डिग्री सेंटीग्रेड के मध्य पाया जाता है। जो प्रारंभिक गलनांक के करीब है।
• 400 किलोमीटर की गहराई पर 1500 डिग्री सेंटीग्रेड तथा 700 किलोमीटर की गहराई पर 1900 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान का परिकलन किया गया है।
• मेंटल तथा  बाहरी गलित अंतरतम की सीमा पर अर्थात 2900 किलोमीटर की गहराई पर 3700 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान का अनुमान है।
• बाहरी गलित अन्तरतम की सीमा पर अर्थात 1500 किलोमीटर की गहराई पर तापमान 4300 सेंटिग्रेड पाया जाता है। 
{2.} पृथ्वी की उत्पत्ति से संबंधित सिद्धांतों के साक्ष्य (Evedience of origin of the earth's theories) :- विभिन्न विद्वानों द्वारा पृथ्वी की उत्पत्ति से संबंधित सिद्धांतों के आधार पर पृथ्वी को ठोस, वायव्य एवं तरल अवस्था में माना है। यह मत असत्य है।
 • टी. सी. चैम्बरलिन की ग्रहाणु संकल्पना के अनुसार पृथ्वी का निर्माण ठोस ग्रहाणणुओं के एकत्रीकरण से हुआ है। इस कारण इसका अंतरतम भाग ठोस होना चाहिए।
• जेम्स जींस की ज्वारीय परिकल्पना के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति सूर्य द्वारा निस्तृत ज्वारीय पदार्थों के ठोस होने से हुई है। अतः पृथ्वी का अंतरतम द्रव अवस्था में होना चाहिए।
• लाप्लास की निहारिका परिकल्पना के अनुसार पृथ्वी का अंतरतम गैसीय अवस्था में होना चाहिए। इन विचारधाराओं से पृथ्वी की आंतरिक संरचना के विषय में कोई निश्चित प्रमाण नहीं मिल पाता है।
{3.} प्राकृतिक साधन (Natural Sources):-
(1.) ज्वालामुखी उद्गार (Volcano eruption) :- ज्वालामुखी क्रिया के अंतर्गत पृथ्वी के आंतरिक भाग में मैग्मा तथा एवं बाहरी भाग में लावा का विस्तार होता है। इस आधार पर स्पष्ट होता है, कि पृथ्वी के आंतरिक भाग में एक परत अवश्य ऐसी पायी जाती है, जो तरल अवस्था में होती है। इस परत को मैग्मा भंडार या दुर्बलता मंडल (magma chamber or Asthenosphere) कहते हैं। इस परत के तरल अवस्था में पाए जाने का कारण पृथ्वी के आंतरिक भाग में अधिक दबाव का होना है। परंतु जलवायु ज्वालामुखी क्रिया द्वारा पृथ्वी की आंतरिक संरचना के विषय में स्पष्ट जानकारी प्राप्त नहीं होती है। ज्वालामुखी उद्गार का तरल मैग्मा पृथ्वी के अंदर किसी न किसी भाग को तरल अवस्था में सिद्ध करता है। परंतु पृथ्वी के अंतरतम में अत्यधिक दबाव चट्टानों को पिघली अवस्था में नहीं रहने देता है। ज्वालामुखी क्रिया के फलस्वरुप निकलने वाला मैग्मा एवं लावा पृथ्वी के आंतरिक भाग में स्थित दुर्बलतामंडल से आता है।
• पायरोक्लास्ट :- जवालामुखी क्रिया के फलस्वरूप निकलने वाले समस्त पदार्थों को संयुक्त रुप से पायरोक्लास्ट कहते हैं।
(2.) भूकम्प विज्ञान के साक्ष्य (Evedience of seismology) :- भूकम्प विज्ञान ही एक ऐसा प्रत्यक्ष साधन है, जिसके द्वारा पृथ्वी के आंतरिक भाग की संरचना के विषय में स्पष्ट अनुमान लगा पाना संभव हुआ है।
• भूकम्प विज्ञान(seismology) :-  इस विज्ञान में भूकम्पीय लहरों का सिस्मोग्राफ यंत्र द्वारा अंकन करके अध्ययन किया जाता है। भूकंप की लहरों के इस अध्ययन को सिस्मोग्राफी कहा जाता है।
• भूकम्प मूल (Focus) :- पृथ्वी के आंतरिक भाग में जहांँ सर्वप्रथम भूकम्प की उत्पत्ति होती है। उसे भूकम्प मूल कहते हैं।
• भूकम्प केंद्र Epicenter or hypocenter) :- पृथ्वी के धरातल पर सर्वप्रथम जहां भूकम्प की लहरों का अनुभव किया जाता है। उसे भूकम्प केंद्र कहते हैं।
• भूकम्पीय लहरें (Seismic waves):- भूकम्प की क्रिया के फलस्वरुप उत्पन्न होने वाली लहरों को भूकम्पीय लहरें कहते हैं। भूकम्प के समय पृथ्वी के आंतरिक भाग में तीन प्रकार की लहरों की उत्पत्ति होती है। ये लहरें इस प्रकार हैं।
(1.) प्राथमिक अथवा अनुदैर्ध्य लहरें (Primary or longitudinal or Compressional waves or P-Waves)
(2.) आडी़ अथवा गौंण लहरें (Secondary or Transverse or Distortional or S-waves )
(3.) धरातलीय लहरें (Surface or Long period waves, L-waves )
(1.) प्राथमिक व अनुदैर्ध्य लहरें (Primary or longitudinal or Compressional waves or P-Waves) :-
• इन तरंगों की उत्पत्ति भूकम्प के समय सर्वप्रथम होती है,अतः इन्हें प्राथमिक तरंगे कहते हैं।
• सर्वप्रथम लघु अथवा कमजोर कंपन होता है इसे प्राथमिक कंपन कहते हैं पीले रे प्राथमिक कंपन को प्रदर्शित करती है।
• इन तरंगों में कणों की गति लहर की रेखा की सीध में होती है।
• इन लहरों की गति 8 किलोमीटर प्रति सेकंड होती है।
• ये तरंगे भूकम्प मूल से उत्पन्न होती है।
• प्राथमिक तरंगे सर्वाधिक वेगवन होती है।
• ये तरंगे ठोस भाग में तीव्र गति से प्रवाहित होती है।
• इन तरंगों की गति तरल माध्यम में  कम हो जाती है।
• प्राथमिक तरंगे ध्वनि तरंगों की भांति चलती है।• ये तरंगे सबसे पहले धरातल पर पहुंचती है।
• ये तरंगे ठोस, द्रव, गैस तीनों माध्यमों से गुजर सकती है।
• ये तरंगे भूकम्प के झटके के 11.8 मिनट बाद पहुंचती है।
• ये तरंगे सबसे लंबे मार्ग का अनुसरण करने के कारण धरातल तक पहुंचते-पहुंचते इनका प्रभाव अत्यधिक कम हो जाता है।
• ये लहरें अधिक विनाशकारी नहीं होती है।
• प्राथमिक लहरों की गति s-wave की तुलना में 66% अधिक होती है।
(2.) अनुप्रस्थ(आडी़) या गौंण तरंगे (Secondary or Transverse or Distortional or S-waves ) :-
• ये तरंगे प्रकाश तरंगों या जल तरंगों की भांति चलती है।
• ये तरंगें द्वितीय कंपन को प्रदर्शित करती है।
• ये केवल ठोस माध्यम में ही चल सकती है।
• इन तरंगों की गति 5 किलोमीटर प्रति सेकंड होती है।
• ये तरंगे मध्यमंडल के बारे में विस्तृत जानकारी देती है।
• ये लहरें तरल माध्यम में लुप्त हो जाती हैं।
• प्राथमिक तरंगों से इनकी गति 40% कम होती है।
• इन तरंगों को लम्बवत तरंग भी कहा जाता है। (3.) धरातलीय तरंगे ( Surface or Long period waves, L-waves ) :-
• धरातलीय लहरों की उत्पत्ति प्राथमिक लहरों के सतह या ऐपीसेंटर पर टकराने के कारण होती है।
• ये लहरें पृथ्वी के ऊपरी भाग को ही प्रभावित करती हैं।
• ये तरंगे मुख्य कंपन को प्रदर्शित करती हैं।
• ये लहरें सबसे लंबा मार्ग तय करती है।
• इन लहरों की गति कम होती है। इनकी गति 3.2 किलोमीटर प्रति सेकंड होती है।
• धरातलीय लहरे सर्वाधिक विनाशकारी होती है।
• सिस्मोग्राफ यंत्र (Seismograph) :- भूकम्पीय लहरों का अंकन सिस्मोग्राफ यंत्र द्वारा किया जाता है। इस यंत्र द्वारा भूकम्पीय लहरों की तीव्रता का अंकन किया जाता है।
• भूकम्पपीय लहरों की तीव्रता का अंकन करने के तीन पैमाने है।
1.  राॅशि फेरल स्केल (Rassi feral scale ) :- इसका मापक 1 से 11 अंको तक होता है।
2. मरकेली स्केल (Mercli scale) :- यह अनुभव प्रधान स्केल है। इसका मापक 0 से 12 अंकों तक का होता है।
3. रिक्टर स्केल (Richter scale) :- यह गणितीय मापक है। इसकी तीव्रता 0 से 9 अंकों तक होती है। इस मापक में प्रत्येक अगली इकाई पिछली इकाई की तुलना में 10 गुना अधिक तीव्रता रखती है। वर्तमान में इसी मापक का उपयोग किया जाता है। 
• सम भूकम्पीय रेखा या भूकम्प समाघात रेखा (Iso-Seismal shock line ):- समान भूकम्प की तीव्रता वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को भूकम्पीय समाघात रेखा कहा जाता है।
• होमोसिस्मल रेखा (Homoseismal line) :- एक ही समय पर आने वाली भूकम्पीय क्षेत्र को मिलाने वाली रेखा को होमोसेसमल रेखा कहते हैं।
• भूकम्पीय छाया क्षेत्र (Seismic shadow zones) :- जिस स्थान पर किसी भी भूकम्पीय तरंग का अभीलेखन नहीं होता है। उसे भूकम्प का छायाक्षेत्र कहते हैं।
• भूकम्पलेखी (Seismograph) अधिकेंद्र से 105 डिग्री के भीतर किसी भी दूरी पर प्राथमिक एवं द्वितीयक तरंगों का अभिलेखन करते हैं।
• भूकम्पलेखी केंद्र से 145 डिग्री से दूर केवल प्राथमिक तरंगों का ही अभिलेखन कर पाता है। इस प्रकार 105 डिग्री से 145 डिग्री के बीच का क्षेत्र जहांँ पर किसी भी तरंग का अभिलखन नहीं होता है। प्राथमिक तरंगों व द्वितीयक तरंगों के केंद्रों के लिए छायाक्षेत्र होता है।
• भूकम्पीय तरंगों की गति तथा भ्रमण पथ के आधार पर पृथ्वी के आंतरिक भाग के विषय में जानकारी मिलती है। भूकम्पीय लहरें ठोस भाग से होकर गुजरती है तथा एक ही स्वभाव वाले ठोस भाग में ये लहरें एक सीधी रेखा में सीधे मार्ग से चलती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि यदि पृथ्वी एक ही प्रकार की घनत्व वाली चट्टानों से निर्मित एक ठोस भाग होती तो भूकंप की लहरें समान गति से पृथ्वी के अंतरतम तब तक एक सीधी रेखा में पहुंच जाती। परंतु भूकम्प केंद्रों पर इन लहरों के अंकन से यह स्पष्ट होता है कि ये लहरें एक सीधी दिशा में न चल कर वक्राकार मार्ग का अनुसरण करती है। इससे प्रमाणित होता है कि पृथ्वी के अंतरतम के घनत्व में विभिन्नता पाई जाती है। इस घनत्व की विभिन्नता के कारण ही लहरें परावर्तित होकर वक्राकार मार्ग का अनुसरण करती है।
• S लहरें तरल पदार्थ से होकर नहीं गुजरती है। • ओल्डहम ने  1909 में प्रमाणित किया कि भूकम्प केंद्र से 120 डिग्री की दूरी पर Sलहरें  लुप्त हो जाती है तथा प्राथमिक लहरें अत्यधिक दुर्बल हो जाती है। पृथ्वी के अंतरतम में S लहरों का पूर्णतया अभाव पाया जाता है। इस आधार पर प्रमाणित होता है, कि पृथ्वी के आंतरिक भाग में तरल अवस्था में एक परत है, जो 2900  किलोमीटर से अधिक गहराई में केंद्र के चारों ओर विस्तृत है। इस आधार पर यह अनुमान लगाया गया है कि पृथ्वी के कोर का लोहा तथा निकेल तरल अवस्था में होगा।
• भूकम्प के गति के आधार पर तरंगों का विभाजन :- पृथ्वी के आंतरिक भाग में चट्टानों के घनत्व में अंतर के कारण भूकम्प पर लहरों की गति में भी अंतर आता आ जाता है। गति के आधार पर भूकम्पीय लहरों को तीन युग्मों में विभाजित किया गया है।
(1.) P-Waves एवं S-wave :- इन तरंगों की गति सर्वाधिक होती है।
(2.) Pg-wave एवं Sg-wave :- इन तरंगों की गति सबसे कम होती है। 
(3.) P*-wave एवं S*-wave:- इन तरंगों की गति ऊपर लिखित तरंगों के मध्य की होती है। इस प्रकार भूकम्पीय तरंगों की गति के आधार पर प्रमाणित होता है, कि पृथ्वी के अंदर ऊपरी परत के नीचे विभिन्न परतें पाई जाती है। जिनके घनत्व में अंतर पाया जाता है।

....... शेष विवरण के लिए भाग-2 का अध्ययन करें। 
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