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पृथ्वी की आंतरिक संरचना structure(Internal structureof the earth) earth's interior,layers of the earth, composition of layers,Crust, mantle, core, sial, Sima, nife,All Discontinuities,

 
      पृथ्वी की आंतरिक संरचना
(Structure of the earth's interior) 
• पृथ्वी का रासायनिक संगठन एवं विभिन्न परतें:-
• एडवर्ड स्वेस का वर्गीकरण:-
 एडवर्ड स्वेस ने पृथ्वी की आंतरिक संरचना को रासायनिक संगठन के आधार पर निम्नलिखित परतों में विभाजित किया है।
• भूपर्पटी(Crust) :-
• यह अवसाद से निर्मित परतदार शैलों से बनी है।इसकी गहराई एवं घनत्व कम पाया जाता है।
• भूपर्पटी रवेदार शैलों अर्थात सिलीकेट पदार्थों से निर्मित हुई है।
• भूपर्पटी में फेल्सपार तथा अभ्रक खनिजों की प्रधानता है।
• स्वेस ने भूपर्पटी को पृथ्वी की परतों के ऊपरी का आवरण माना है।
👉 एडवर्ड स्वेस ने पृथ्वी की तीन परतें बतायी है।
(1.) सियाल (SIAL) :- 
• यह परत क्रस्ट के नीचे पाई जाती है।
• इसकी रचना ग्रेनाइट आग्नेय चट्टान से हुई है।
• इस परत की रचना में सिलिका एवं एलुमिनियम तत्वों की प्रधानता है। इस कारण इसे सियाल के नाम से भी जाना जाता है।
• इस परत का औसत घनत्व 2.9 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर है।
• इसकी औसत गहराई 50 से 300 किलोमीटर तक मानी गई है।
• सियाल परत में अम्लीय पदार्थों की प्रधानता होती है।
(2.) सीमा (SIMA) :-
• सीमा की रचना बेसाल्ट आग्नेय चट्टानों से हुई है।
• ज्वालामुखी उद्गार के समय निकलने वाला लावा इसी परत से आता है।
• रासायनिक दृष्टि से इस परत में सिलिका एवं मैग्नीशियम की प्रधानता है।
• इस परत का औसत घनत्व 2.9 से 4.9 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर है।
• इस परत की औसत गहराई 1000 से 2000 किलोमीटर तक पाई जाती है।
• सीमा परत में क्षारीय पदार्थों की प्रधानता है।
• इसमें मैग्निशियम, कैलशियम, लोहे के सिलीकेट आदि की अधिकता पायी जाती है।
(3.) निफे (NIFE)  :-
• इस परत की रचना निकेल तथा फेरियम से मिलकर हुई है।
• यह कठोर धातुओं से बनी है।
• इस परत का घनत्व 11 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर है।
• इस परत का व्यास 6880 किलोमीटर(4300 मील) है।
• पृथ्वी के केंद्र में फेरियम की उपस्थिति पृथ्वी की चुंबकीय शक्ति के होने को प्रमाणित करती है।
• इस परत के द्वारा पृथ्वी की स्थिरता भी प्रमाणित होती है।
📝..  भूकम्पीय लहरों के आधार पर पृथ्वी की परतें :- भूकम्पीय लहरों के आधार पर पृथ्वी की आंतरिक भाग को तीन परतों विभाजित किया गया है।
(1.) स्थलमंडल (Lithosphere) :- स्थलमंडल की गहराई भूपर्पटी से 100 किलोमीटर की गहराई तक मानी गई है। स्थलमंडल का घनत्व 3.5 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर है। स्थलमंडल में ग्रेनाइट चट्टानों की प्रधानता है। इसमें सिलिका एवं एलुमिनियम तत्व सर्वाधिक पाये जाते हैं।
(2.) पायरोस्फीयर (Pyrosphere) :- इस परत को मिश्रित मंडल भी कहते हैं। इस परत की गहराई 100 से 2880 किलोमीटर के मध्य पाई जाती है। इस परत का घनत्व 5.6 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर है। इस परत का निर्माण बेसाल्ट आग्नेय चट्टानों से हुआ है। इस परत में सिलिका एवं मैग्नीशियम पदार्थों की प्रधानता है
(3.) बैरीस्पीयर (Barysphere) :- इस परत की गहराई 2880 किलोमीटर से पृथ्वी के केंद्र तक पाई जाती है। इस परत में लोहा एवं निकेल पदार्थों की प्रधानता है। इस परत का घनत्व 8 से 11 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर के मध्य पाया जाता है।
📝...  पृथ्वी की आंतरिक भाग का आधुनिक वर्गीकरण :- भूकम्पीय लहरों की गति एवं उनके भ्रमण पथ के वैज्ञानिक अध्ययन एवं विश्लेषण के आधार पर तथा IUGG (International Union of Geodesy and Geo-physics) के शोधों के आधार पर पृथ्वी की आंतरिक भाग को तीन वृहत्त मंडलों में विभाजित किया गया है।
(1.) क्रस्ट (Crust)
(2.) मैण्टिल (Mantle)
(3.) क्रोड़ (Core)
(1.) क्रस्ट (Crust) :-
• यह ठोस पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत है।
• यह परत बहुत भंगुर(Brital) है।
•  महासागरों के नीचे इस परत की मोटाई महाद्वीपों की तुलना में कम पाई जाती है। महासागरों में क्रस्ट की मोटाई 5 से 10 किलोमीटर के मध्य पाई जाती है। जबकि महाद्वीपों में इसकी मोटाई 30 किलोमीटर पायी जाती है।
• महाद्वीपीय क्रस्ट का निर्माण ग्रेनाइट से हुआ है, जबकि महासागरीय क्रस्ट का निर्माण बेसाल्ट आग्नेय चट्टानों से हुआ है।
• महासागरीय क्रस्ट का घनत्व 2.7 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर है, जबकि महाद्वीपीय क्रस्ट का घनत्व 3 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर है।
• क्रस्ट को दो भागों में विभाजित किया गया है। (अ) ऊपरी भूपर्पटी (Upper Crust)
(ब) निचली भूपर्पटी (Lower Crust)
कोनार्ड असंबद्धता (Conrad Discontinuity) :- ऊपरी भूपर्पटी एवं निचली भूपर्पटी के मध्य प्राथमिक लहरों की गति में अंतर आ जाता है। ऊपरी क्रस्ट में प्राथमिक तरंगों की गति 1.6 किलोमीटर प्रति सेकंड तथा निचली क्रस्ट में 6.9 किलोमीटर प्रति सेकंड होती है। यह अंतर दबाव की अधिकता के कारण आता है। इस असंबद्धता को कोनरार्ड असंबद्धता कहते हैं।
• क्रस्ट का आयतन पृथ्वी के आयतन का 1% है। • पृथ्वी के द्रव्यमान में क्रस्ट का योगदान नगण्य है।
(2.) मैण्टिल (Mantle):- 
• मैण्टिल का विस्तार मोह असांतत्य से लेकर 2900 किलोमीटर की गहराई तक पाया जाता है। • मैण्टिल को दो भागों में विभाजित किया गया है।
(अ) ऊपरी मैण्टिल या दुर्बलतामंडल (Upper Mantle or Asthenosphere)
(ब) निचला मैण्टिल (Lower Mantle)
ऊपरी मैण्टिल या दुर्बलतामंडल (Upper Mantle or Asthenosphere) :-  मैण्टिल का ऊपरी भाग अर्थात ऊपरी मैण्टिल  दुर्बलतामंडल कहलाता है। दुर्बलता मंडल का विस्तार 100 किलोमीटर से 200 किलोमीटर के मध्य पाया जाता है। ज्वालामुखी उद्गार के समय जो लावा धरातल पर पहुंचता है, उसका मुख्य स्रोत दुर्बलतामंडल ही है। दुर्बलता मंडल का घनत्व 3.4 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर से अधिक है।
📝... मोहो असंबद्धता (Moho Discontinuity) :- निचली भूपर्पटी एवं ऊपरी मैण्टिल के मध्य भूकम्पीय लहरों की गति में अंतर देखने को मिलता है। निचली क्रस्ट में प्राथमिक तरंगों की गति 6.9 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति बढ़कर 7.9 किलोमीटर से 8.1 किलोमीटर प्रति सेकंड तक हो जाती है। इस प्रकार निचली क्रस्ट एवं ऊपरी मैण्टिल के मध्य असंबद्धता का सृजन होता है। इस असंबद्धता का पता सर्वप्रथम 1909 में A. मोहरविकिक ने लगाया था। अतः इसे मोहरविकिक असंबद्धता कहते हैं। यह असंबद्धता पदार्थों के बदलाव के कारण पायी जाती है।
📝.. निम्न गति का मंडल (Zone of low velocity) :- ऊपरी मेंटल में भूकम्पीय लहरों की गति मंद पड़ जाती है। अतः इस भाग को निम्न गति का मंडल भी कहते हैं।
📝.. रेपेटी असंबद्धता (Repti Discontinuity) :-ऊपरी मैण्टिल एवं  निचले मैण्टिल में दबाव की अधिकता के कारण भूकम्पीय लहरों की गति में अंतर पाया जाता है। इस अंतर का पता सर्वप्रथम रेपेटी नामक विद्वान ने लगाया था।अतः इस असंबद्धता को रेपेटी  
असंबद्धता कहते हैं।
• यह परत पृथ्वी के कुल आयतन का 83% भाग एवं द्रव्यमान के 68% भाग का प्रतिनिधित्व करती है।
(3.) क्रोड़ (Core) :-इसका विस्तार 2900 से 6371 किलोमीटर तक पाया जाता है।
 📝... गुटेनबर्ग विसर्ट असंबद्धता (Guttenberg wiechert Discontinuity) :- निचले मैण्टिल एवं बाहरी क्रोड़ के मध्य लहरों की गति में अंतर देखने को मिलता है। निचले मैण्टिल के आधार पर प्राथमिक तरंगों की गति में अचानक वृद्धि होती है और यह बढ़कर 13.6 किलोमीटर प्रति सेकेंड हो जाती है। गति में यह परिवर्तन चट्टानों के घनत्व में अंतर को दर्शाता है। इस असंबद्धता को गुटेनबर्ग विसर्ट असंबद्धता कहते हैं। इस असंबद्धता का कारण पदार्थों में बदलाव है।
• क्रोड़ का आयतन पृथ्वी के कुल आयतन का 16% है।
• यह परत भारी पदार्थों से निर्मित होने के कारण पृथ्वी के कुल द्रव्यमान में इसका योगदान 32% है।
• संरचना की दृष्टि से इस परत को दो उप विभागों में विभक्त किया गया है।
(अ) बाहरी क्रोड़ (Outer Core) :- इस परत की गहराई 2900 से 5150 किलोमीटर तक पायी जाती है। यह परत तरल अवस्था में है। इसमें S-wave प्रवेश नहीं करती है। किस परत में प्राथमिक तरंगों की गति 10 किलोमीटर प्रति सेकंड पायी जाती है।
(ब ) आंतरिक क्रोड़ (Inner Core) :- इस परत की गहराई 5150 से 6371 किलोमीटर तक है। यह परत ठोस अवस्था में पायी जाती है। इस परत में प्राथमिक तरंगों की गति 11.23 किलोमीटर प्रति सेकंड पायी जाती है। इस परत का निर्माण मुख्य रूप से निकेल और लोहा से हुआ है।
📝...  लैहमैन असंबद्धता (Lahimen Discontinuity) :- Outer Core एवं Inner Core में भूकम्पीय लहरों की गति में अंतर आ जाता है। यहाँ प्राथमिक तरंगों की गति 10 किलोमीटर प्रति सेकंड से बढ़कर 13.6 किलोमीटर प्रति सेकंड हो जाती है। इस असंबद्धता की खोज सर्वप्रथम लैहमैन ने की थी। अतः इसे लैहमैन असंबद्धता कहते हैं।

.......शेष भाग के लिए पृथ्वी की आंतरिक संरचना भाग- 3 का अध्ययन करें।
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