(Geological Structure of India )
• भारत में प्लिस्टोसीन काल में बांगर (पुरानी जलोढ़ मिट्टी), कश्मीर घाटी के करेवा निक्षेप एवं शिवालिक पर्वत श्रृंखला का निर्माण हुआ था।
• सामान्य परिचय :- भारत की भूगर्भिक संरचना के अनुसार यहांँ पर प्राचीनतम चट्टानों से लेकर नवीनतम चट्टानें पायी जाती है। भारत में अत्यधिक प्राचीन आर्कियन तथा प्री-कैंब्रियन युग की चट्टानें पायी जाती है। दूसरी ओर यहाँ क्वार्टरनरी युग की नवीनतम चट्टानें भी पायी जाती है। भारत में भूगर्भिक संरचना की दृष्टि से निम्नलिखित चट्टानें पायी जाती है।
(1.) आर्कियन समूह की चट्टानें :-
(अ )आर्कियन क्रम की चट्टानें।
(ब ) धारवाड़ क्रम की चट्टानें।
(2.) पुराण समूह की चट्टानें :-
(अ ) कुडप्पा क्रम की चट्टानें।
(ब ) विंध्यन क्रम की चट्टानें।
(3.) द्रविडियन समूह की चट्टानें।
(4.) आर्यन समूह की चट्टानें :-
(अ ) गोंडवाना क्रम की चट्टानें।
(ब ) दक्कन ट्रैप।
(स ) टरर्शियरी क्रम की चट्टानें।
(द ) क्वाटरनरी क्रम की चट्टानें।
(1.) आर्कियन समूह की चट्टानें :- आर्कियन समूह की चट्टानों का निर्माण पुराकैंब्रियन युग में हुआ था। इन चट्टानों को निम्नलिखित दो भागों में विभाजित किया गया है।
(अ )आर्कियन क्रम की चट्टानें :-
• आर्कियन क्रम की चट्टानों का निर्माण पृथ्वी के निर्माण के समय तप्त पृथ्वी के ठंडा होने से हुआ था। ये चट्टानें मानव जीवन की उत्पत्ति से भी अधिक पुरानी है। वर्तमान समय में इन चट्टानों का अत्यधिक रूपांतरण हो चुका है। जिस कारण ये चट्टानें अपना वास्तविक स्वरूप खो चुकी है।
• पृथ्वी पर सर्वप्रथम इन चट्टानों का निर्माण होने के कारण इन्हें प्राचीनतम प्राथमिक चट्टानें कहा जाता है।
• ये चट्टानें रवेदार है।
• यह चट्टानें नीस, ग्रेनाइट और शिस्ट के रूप में पाई जाती है।
• ये चट्टाने वर्तमान समय में नाइस, नीस, शिस्ट के रूप में रूपांतरित हो चुकी है।
• ये चट्टानें महान हिमालय के गर्भ में रीड की हड्डी के समान स्थित है।
• आर्कियन चट्टानों में आणविक खनिज थोरियम, कैडमियम, यूरेनियम आदि पाये जाते है।
• आर्कियन चट्टानों का विस्तार भारत में कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, बिहार के छोटा नागपुर पठार एवं दक्षिणी पूर्वी राजस्थान में पाया जाता है।
• इन चट्टानों में निम्नलिखित नीस के प्रकार पाये जाते है।
1. बुंदेलखंड नीस - ये सबसे प्राचीनतम नीस चट्टानें है।
2. बेल्लारी नीस
3. नीलगिरी नीस
4. बंगाल नीस
• भारत का दक्षिण का प्रायद्वीपीय पठार प्राचीन भूखंड गोंडवाना लैंड का भाग है। जिसका निर्माण आर्कियन आग्नेय चट्टानों से हुआ है। प्रायद्वीपीय पठार भारत की सर्वाधिक प्राचीनतम संरचना है।
(ब ) धारवाड़ क्रम की चट्टानें :-
• यह भारत की प्रमुख चट्टानी संरचना है।
• धारवाड़ क्रम की चट्टानों का निर्माण आर्कियन क्रम की चट्टानों के अपरदन एवं निक्षेपण के फलस्वरूप हुआ है।
• ये प्राचीनतम एवं प्रथम परतदार चट्टानें है।
• धारवाड़ क्रम की चट्टानों में जीवाश्मों का अभाव पाया जाता है। क्योंकि इनके निर्माण के समय भी पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति नहीं हुई थी।
• वर्तमान समय में ये चट्टानें अत्यधिक रूपांतरित हो चुकी है।
• भारत में अरावली पर्वत का निर्माण धारवाड़ क्रम की चट्टानों से ही हुआ है। अरावली पर्वतमाला संसार की प्राचीनतम मोड़दार वलित पर्वतमाला है।
• धारवाड़ क्रम की चट्टानें भारत में मुख्य रूप से कर्नाटक के धारवाड़ व शिमोगा जिलों में पायी जाती है। कर्नाटक के धारवाड़ जिले के नाम पर ही इन चट्टानों का नामकरण धारवाड़ क्रम की चट्टानें रखा गया है।
• धारवाड़ क्रम की चट्टानें प्रायद्वीपीय भारत एवं बाह्म प्रायद्वीपीय भारत में भी पायी जाती है।
(1) प्रायद्वीपीय भारत की धारवाड़ चट्टानें :- प्रायद्वीपीय भारत में पायी जाने वाली धारवाड़ चट्टानों में मुख्यतः सासर श्रेणी, की चिपली श्रेणी, गोंडाइट श्रेणी, कुदोराइट श्रेणी, अरावली श्रेणी, चंपानेर श्रेणी (गुजरात) आदि प्रमुख है।
(2) बाह्म प्रायद्वीपीय भारत की धारवाड़ चट्टानें :-भारत में धरवाड़ चट्टानें प्रायद्वीपीय भारत के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी पाई जाती है। इन चट्टानों का विस्तार प्रायद्वीपीय भारत के अलावा पश्चिमी हिमालय के लद्दाख श्रेणी, जास्कर श्रेणी, गढ़वाल व कुमाऊं पर्वत श्रेणियों, लद्दाख के कि स्पीति घाटी के निकट वैक्रता श्रेणी तथा असम में शिलांग श्रेणी के रूप में पाया जाता है।
• भारत के प्रमुख धात्विक खनिज धारवाड़ क्रम की चट्टानों में ही पाए जाते है। इन चट्टानों में मुख्यता लोहा, सोना, मैगनीज़, तांबा, क्रोमियम,टंगस्टन,जस्ता आदि धात्विक खनिज प्रचुर मात्रा में पाये जाते है।
• धारवाड़ चट्टानों में सोना, कर्नाटक में क्वार्टज चट्टानों में कोलार और धारवाड़ की घाटी में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
• इन चट्टानों में लोहा झारखंड, उड़ीस ,मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़,गोवा एवं कर्नाटक में मिलता है।
• धारवाड़ चट्टानों में फ्लुराइट, इलमेनाइट, सुरमा, वुलफ्राम, अभ्रक, एस्बेस्टस, कोबाल्ट, सीसा, संगमरमर, गारनेट आदि खनिज भी पाये जाते है।
(2.) पुराण समूह की चट्टानें :- इन चट्टानों का निर्माण प्रोटिरोजोइक युग में हुआ था। इन चट्टानों को निम्नलिखित दो भागों में विभाजित किया गया है।
(अ ) कुडप्पा क्रम की चट्टानें :-
• कुडप्पा चट्टानों का निर्माण धारवाड़ क्रम की चट्टानों के अपरदन व निक्षेपण के फलस्वरुप हुआ है।
• कुडप्पा चट्टानों का नामकरण आंध्र प्रदेश के कडप्पा जिले के नाम पर किया गया है। यहांँ पर ये चट्टानें अर्धचंद्राकार रूप में फैली हुई है।
• इन चट्टानों का अपेक्षाकृत कम रुपांतरण हुआ है। फिर भी इनमें जीवाश्मों का अभाव पाया जाता है।
• ये चट्टानें भारत में आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान तथा हिमालय के कुछ क्षेत्रों, नल्लामलाई श्रेणी, चेयर श्रेणी, कृष्णा घाटी तथा पापाघानी श्रेणी के रूप में पायी जाती है।
• कुडप्पा क्रम की चट्टानें धारवाड़ चट्टानों की अपेक्षा आर्थिक दृष्टि से कम महत्वपूर्ण है। ये चट्टानें अधात्विक खनिजों के लिए प्रसिद्ध है।
• कुडप्पा क्रम की चट्टानें बलुआ पत्थर,चूनापत्थर, संगमरमर तथा एस्बेस्टस के लिए प्रसिद्ध है।
• इन चट्टानों में गोलकुंडा [महाराष्ट्र] में हीरे भी पाए जाते है।
• पूर्वी घाट पर्वत का निर्माण कुडप्पा क्रम की चट्टानों से हुआ है।
• राजस्थान की कुडप्पा चट्टानें दिल्ली श्रेणी के नाम से जानी जाती है। पूर्वी राजस्थान में इन्हीं चट्टानों से तांबा कोबाल्ट तथा रांगा प्राप्त होता है।
(ब ) विंध्यन क्रम की चट्टानें :-
• विंध्यन चट्टानों का निर्माण छिछले सागर एवं नदी घाटियों में तलछट के निक्षेपण से हुआ है।
• ये परतदार चट्टाने है।
• इन चट्टानों में सूक्ष्म जीवों के जीवाश्म पाये जाते है।
• ये चट्टानें धात्विक खनिजों के लिए प्रसिद्ध है।
• इन चट्टानों का नामकरण विंध्याचल पर्वत के नाम पर किया गया है।
• ये चट्टानें भारत में लगभग 1,00000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई है।
• भारत में ये चट्टानें पूर्व में झारखंड के सासाराम एवं रोहता क्षेत्र से लेकर पश्चिम में राजस्थान के चित्तौड़गढ़ क्षेत्र तक तथा उत्तर में आगरा से लेकर दक्षिण में होशंगाबाद तक फैली हुई है। इनकी अधिकतम चौड़ाई आगरा एवं नीमच के बीच में पायी जाती है।
• इन चट्टानों से चूने का पत्थर, बलुआ पत्थर, चीनी मिट्टी, अग्नि प्रतिरोधक मिट्टी तथा वर्ण मिट्टी प्राप्त होती है।
• ये चट्टानें भवन निर्माण के पत्थरों हेतु प्रसिद्ध है।विंध्यन चट्टानों में मुख्य रूप से भवन निर्माणकारी पत्थर जैसे चूना पत्थर, चीनी मिट्टी डोलोमाइट पाये जाते है। इन्हीं चट्टानों में पाये जाने वाले लाल बलुआ पत्थरों से सांची स्तूप, लाल किला, जामा मस्जिद आदि ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण किया गया है।
• इन चट्टानों में पन्ना वह गोलकुंडा (महाराष्ट्र) में हीरे भी पाए जाते है।
• भारत में विंध्यन क्रम की चट्टानों के मुख्य क्षेत्र:-
1. सोन नदी की घाटी में सेमर श्रेणी
2. आंध्र प्रदेश के दक्षिणी पश्चिमी भाग में करनूल श्रेणी।
3.भीमा नदी की घाटी में भीमा श्रेणी।
4. राजस्थान में जोधपुर-चित्तौड़गढ़ में पालनी श्रेणी।
5. उत्तरी गोदावरी घाटी
6. नर्मदा घाटी में मालवा तथा बुंदेलखंड
(3.) द्रविडियन समूह की चट्टानें :- इन चट्टानों का विस्तार प्रायद्वीपीय भारत के दक्षिणतम राज्यों में देखने को मिलता है। ये चट्टाने विंध्यन क्रम एवं दक्कन ट्रैप की चट्टानों से साम्यता रखती है। इन चट्टानों का निर्माण कैंब्रियन युग में हुआ माना गया है।
(4.) आर्यन समूह की चट्टानें :- आर्यन समूह की चट्टानों का निर्माण कार्बोनिफरस युग से लेकर वर्तमान होलोसीन युग तक माना जाता है। इन चट्टानों को निम्नलिखित चार भागों में विभाजित किया गया है।
(अ ) गोंडवाना क्रम की चट्टानें :-
• इन चट्टानों का निर्माण ऊपरी कार्बोनिफरस युग से लेकर के मध्य जुरैसिक युग के बीच माना गया है।
• ये परतदार चट्टानें है। इन चट्टानों में मछलियों एवं रेंगने वाले जीवों के जीवावशेष पाये जाते है।
• ये चट्टानें कोयले की दृष्टि से विशेष महत्वपूर्ण है। भारत का 98% लिग्नाइट कोयला इसी क्रम की चट्टानों में पाया जाता है।
• ये चट्टानें अभी भी क्षैतिज अवस्था में पायी जाती है।
• गोंडवाना क्रम की चट्टानों का विस्तार भारत में मध्य प्रदेश,आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, बिहार एवं महाराष्ट्र राज्यों में पाया जाता है।
• गोंडवाना क्रम की चट्टानें मुख्यतः दामोदर घाटी, महानदी घाटी एवं गोदावरी नदी घाटियों में विस्तृत है।
• गोंडवाना क्रम की चट्टानों को दो उप विभागों में बांटा गया है।
(01) निम्न गोंडवाना क्रम की चट्टानें :- इन चट्टानों में तालचेर श्रेणी, दामुदा श्रेणी एवं पंचेत श्रेणी प्रमुख है।
(02) ऊपरी गोंडवाना चट्टानें :- इन चट्टानों में राजमहल श्रेणी, महादेव श्रेणी, जबलपुर श्रेणी एवं उमिया श्रेणी प्रमुख है।
• प्रायद्वीपीय भारत का उत्तर एवं उत्तर पूरब की ओर स्थानांतरण कार्बोनिफरस काल से ही जारी है। प्रायद्वीपीय भारत के स्थानांतरण की सर्वाधिक गति नवजीव कल्प अर्थात सेनोजोइक काल में थी।
(ब ) दक्कन ट्रैप :-
• दक्कन ट्रैप का निर्माण मेसोजोइक युग के अंत में क्रिटशियस युग से लेकर इयोसीन काल के मध्य ज्वालामुखी क्रिया के दरारी उदभेदन के फलस्वरुप निकले लावा के ठंडा होकर जमा होने से हुआ है इसे दक्कन ट्रैप कहा जाता है।
• दक्कन ट्रैप का विस्तार भारत के लगभग 50,0000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर पाया जाता है।
• दक्कन ट्रैप क्षेत्र में लावा की औसत मोटाई 600 से 1500 मीटर एवं कहीं-कहीं तो यह 3000 मीटर तक पायी जाती है।
• दक्कन ट्रैप की रचना बेसाल्ट तथा डोलोमाइट चट्टानों से हुई है। ये चट्टानेंं अत्यधिक कठोर है।
• दक्कन ट्रैप की चट्टानों के विखंडन से काली मिट्टी( रेगुड़ मिट्टी) का निर्माण हुआ है।
• दक्कन ट्रैप का विस्तार महाराष्ट्र के अधिकांश क्षेत्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु एवं आंध्रप्रदेश राज्यों में पाया जाता है।
• नोट :- राजमहल ट्रैप का निर्माण दक्कन ट्रैप से पूर्व जुरैसिक कल्प में हुआ था।
(स ) टरर्शियरी क्रम की चट्टानें :-
• टरर्शियरी चट्टानों का निर्माण इयोसीन युग से लेकर प्लायोसीन युग के मध्य हुआ था।
• इयोसीन से प्लायोसीन के मध्य ही हिमालय पर्वत श्रृंखला का निर्माण हुआ था।
• इयोसीन काल में भारत में रानीकोट श्रेणी एवं किरथर श्रेणी का निर्माण हुआ था।
• ओलीगोसीन काल में भारत में हिमालय क्षेत्र में नारी, गज, मुर्री आदि चट्टानों का निर्माण हुआ था। • मुर्री चट्टानों का निर्माण नदी व सागर के मिलन स्थल पर हुआ है।
• शिवालिक हिमालय की चट्टानें नदिय प्रकृति की है।
• भारत में असम, राजस्थान एवं गुजरात राज्यों के खनिज तेल भंडार इयोसीन एवं ओलीगोसीन संरचना में ही पाये जाते है।
• टरर्शियरी क्रम की चट्टानों में भारत का लगभग 2% कोयला पाया जाता है। इन चट्टानों में उत्तरी पूर्वी भारत एवं जम्मू कश्मीर में निम्न कोटि का कोयला पाया जाता है।
• गोंडवाना क्रम की चट्टानों का विस्तार भारत में कश्मीर से असम तक एवं पूर्वी व पश्चिमी भारत के तटीय क्षेत्रों में पाया जाता है।
• टरर्शियरी महाकल्प ने भारत को दो महत्वपूर्ण भौतिक प्रदेश प्रायद्वीपीय पठार एवं हिमालय पर्वत प्रदान किए है।
(द ) क्वाटर्नरी क्रम की चट्टानें :-
• इन चट्टानों का विस्तार सिंधु एवं गंगा के मैदानी भाग में पाया जाता है। इन चट्टानों में निम्नलिखित संरचना देखने को मिलती है।
(01) बांगर :- बांगर का निर्माण मध्य एवं ऊपरी प्लिस्टोसीन काल में हुआ था।
(02) खादर :- खादर का निर्माण अंतिम प्लिस्टोसीन काल से लेकर वर्तमान होलोसीन काल में हुआ माना जाता है। इसका निर्माण वर्तमान समय में भी जारी है।
• गंगा -ब्रह्मपुत्र मैदान में कांप मिट्टी की अधिकतम गहराई 2000 मीटर के मध्य पायी जाती है। कांप मिट्टी की गहराई हिमालय की तरफ अधिक है। जबकि प्रायद्वीपीय पठार की तरफ इसकी गहराई कम पायी जाती है।
• क्वाटर्नरी चट्टानों का विस्तार भारत में सिंधु नदी, गंगा नदी, सतलज नदी, नर्मदा नदी, कृष्णा नदी, ताप्ती नदी एवं गोदावरी नदी घाटियों में पाया जाता है।
• प्लिस्टोसीन काल के हिमानी करण के प्रमाण हिमालय क्षेत्र में कम ऊंँचाई पर ही देखने को मिलते है।
• कश्मीर घाटी का निर्माण प्लिस्टोसीन काल में ही हुआ था। यहांँ पाये जाने वाले करेवा निक्षेप प्लिस्टोसीन काल के ही है। जिसमें केसर (जाफ़रान) की खेती की जाती है।
• पश्चिमी राजस्थान में थार के मरुस्थल में प्लिस्टोसीन काल के निक्षेप पाये जाते है।
नोट :-
• भारत में मध्य हिमालय का निर्माण मायोसिन से प्लायोसीन युग के मध्य हुआ था।
• महान हिमालय का निर्माण मायोसिन काल में हुआ था।
• दक्कन ट्रैप का निर्माण इयोसीन से क्रीटेशस युग के मध्य हुआ था।
• आर्कियन समूह की चट्टानों को कायांतरित चट्टानों का क्रम भी कहा जाता है।
• भारत में प्रथम ज्वालामुखी क्रिया धारवाड़ युग में हुई थी।
• प्रायद्वीपीय पठार पर दरारों एवं भ्रंशों का निर्माण गोंडवाना युग में हुआ था।
• आर्यन समूह की चट्टानों को Basement Complex के नाम से भी जाना जाता है।
• भारत के छोटा नागपुर पठार को खनिजों की अधिकता के कारण भारत का रूर प्रदेश कहा जाता है।
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