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📝..चक्रवात (Cyclone) :- चक्रवात निम्न वायुदाब के केंद्र होते हैं। जिनके चारों ओर से संकेंद्रीय समदाब रेखाएं विस्तृत होती है। चक्रवात के केंद्र में न्यून वायुदाब तथा बाहर की ओर अधिक वायुदाब पाया जाता है। अतः हवाएं परिधि से केंद्र की ओर चलती हैं। हवाएं केंद्र में अभिसरित होकर ऊपर की और ऊठकर बाहर की ओर चलती है, जिससे चक्रवात के केंद्र में लंबे समय तक निम्न वायुदाब बना रहता है तथा चक्रवात लंबे समय तक जीवित रहता है। चक्रवातो में हवाओं की दिशा उत्तरी गोलार्द्ब में घड़ी की सूईयों के विपरीत तथा दक्षिणी गोलार्ध में घड़ी की सूईयों के अनुकूल चलती है। 
📝 •• चक्रवातों का विभाजन (Classification of cyclones) :- चक्रवातों  को उनकी विशेषताओं के आधार पर दो भागों में विभाजित किया गया है।
(1.) शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Temperate Cyclone) 
(2.) उष्णकटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclone) 
📝 •• शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Temperate Cyclone):- 
 शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति मध्य अक्षांशों में होती है। ये चक्रवात मध्य अक्षांशों के मौसम को अत्यधिक प्रभावित करते हैं। शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में वाताग्र पाए जाते हैं जिस कारण इन चक्र बातों में वर्षा की विभिन्न कोशिकाएं पाई जाती है। इन चक्रवातों का जलवायु एवं मौसम की दृष्टि से अत्यधिक महत्व होता है।
✍️✍️ शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की प्रमुख विशेषताऐं :- 
✍️✍️ चक्रवातो का आकर :- शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का आकार गोलाकार, अंडाकार, Vअक्षर या वेज आकार का होता है। इन चक्रवातो को लो (Low), गर्त (Depression) एवं ट्रफ (Trough) कहा जाता है।  
• इन चक्रवातों को विक्षोभ (Depression) या लहर चक्रवात (Wave cyclone) के नाम से भी जाना जाता है। 
✍️✍️ उत्पत्ति क्षेत्र:-  शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति मध्य अक्षांशों में 35 डिग्री से 65 डिग्री अक्षांश के मध्य दोनों गोलाद्धों में होती है। ये चक्रवात मध्य अक्षांशों के मौसम को अत्यधिक प्रभावित करते हैं ।
✍️✍️ विस्तार :-  एक आदर्श शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात का का दीर्घ व्यास 1920 किलोमीटर होता है। तथा लघु व्यास 1040 किलोमीटर होता है।
• कभी-कभी इन चक्रवातो का विस्तार 10,00000 किलोमीटर तक भी पाया जाता है। ✍️✍️ चक्रवातों की दिशा:- ये चक्रवात पछुवा पवनों के प्रभाव से पश्चिम से पूरब दिशा की ओर प्रवाहित होते हैं।
✍️✍️ चक्रवातो की गति:- इन चक्रवातों की गति गर्मियों में 32 किलोमीटर प्रति घंटा एवं शीतकाल में 48 किलोमीटर प्रति घंटा तक पाई जाती है। 
✍️✍️ वायुदाब :- शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातो के केंद्र में निम्न वायुदाब तथा बाहर की ओर उच्च वायुदाब पाया जाता है। केंद्र से बाहर की ओर वायुदाब में 10 से 20 मिलीबार का अंतर पाया जाता है।
✍️✍️ चक्रवात में वायु प्रणाली:- शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में वायु प्रणाली अभिसारी होती है। इन चक्रवातों में हवाएं परिधि से केंद्र की ओर चलती है। केंद्र में हवाओं का एकत्रीकरण नहीं हो पाता है । क्योंकि हमारे ऊपर की ओर उठ कर बाहर की ओर चलती हैं। इससे चक्रवात के केंद्र में लंबे समय तक न्यून वायुदाब निर्मित रहता है।
• शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात में हवाऐं कोरिआलस बल एवं घर्षण बल के कारण समदाब रेखाओं को 20 डिग्री से 40 डिग्री के कोण पर काटती है। जिस कारण इनकी दिशा उत्तरी गोलार्द्ब में घड़ी की सूईयों के प्रतिकूल (Anti clock wise ) तथा दक्षिणी गोलार्द्ब में घड़ी की सूईयों के अनुकूल (Clock wise) होती है।
📝 •• कोरिआलिस बल ((Coriolis Force/Effect ) :-  पृथ्वी की अक्षीय गति (Rotation) के कारण हवाओं की दिशा में विक्षेप हो जाता है। इस परिवर्तनकारी बल को विक्षेप बल (Deflection Force) या कोरिआलिस बल ((Coriolis Force/Effect) कहते हैं। 
• जी.जी. कोरिआलिस ( G. G.Coriolis) (1792-1846ई.) ने सर्वप्रथम वायु की दिशा में विक्षेप की प्रक्रिया का अध्ययन किया था। अतः इनके नाम पर विक्षेप बल को कोरिआलिस बल या कोरिआलिस प्रभाव ( (Coriolis Force/Effect ) कहते है।
• इस बल के कारण हवाएं उत्तरी गोलार्द्ब में दाब प्रवणता की दिशा की के दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ब में प्रवणता की दिशा के बायीं ओर मुड़ जाती है। 
• कोरिआलिस बल केवल वायु की दिशा को प्रभावित करता है , उसके वेग को नहीं।
• कोरिआलिस बल हवा की दिशा को वास्तविक मार्ग से विक्षेपित कर देता है। जितना पवन वेग अधिक होगा उतना ही कोरिआलिस बल द्वारा पवन की दिशा में अधिक विक्षेपण आएगा। इस प्रकार पवन वेग एवं विक्षेप बल के प्रभाव के बीच सीधा धनात्मक संबंध पाया जाता है।
 •  ध्रुवों पर पृथ्वी की न्यूनतम घूर्णन गति के कारण कोरिआलिस बल सर्वाधिक पाया जाता है। • कोरिआलिस बल क्षैतिज रूप से प्रवाहित पवन के समकोण पर कार्य करता है। अतः हवाऐंं उत्तरी गोलार्द्ब में दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ब में बायीं ओर मुड़ जाती है। 
• भूमध्य रेखा पर कोरिआलिस बल शून्य होता है अतः पवने समदाब रेखाओं के समकोण पर चलती है। अतः निम्न दाब क्षेत्र के ओर अधिक होने के बजाय यह पूरित हो जाता है, इसी कारण  भूमध्य रेखा के निकट उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का निर्माण नहीं हो पाता है।
• कोरिआलिस बल हवाओं की दिशा में विक्षेप लाने वाला बल है।
✍️✍️ चक्रवात में तापमान:- शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का निर्माण दो विपरीत गुणों वाली वायुराशियों के मिलने से होता है। अतः चक्रवात के विभिन्न भागों में तापमान में अंतर पाया है।
•  चक्रवात के दक्षिण व दक्षिण पश्चिम में गर्म हवाऐंं पायी जाती है। अतः तापमान अधिक होता है ।
• चक्रवात के उत्तर , उत्तर-पूर्व एवं उत्तर-पश्चिम में ठंडी हवाऐं होती है। अतः तापमान कम पाया जाता है।
✍️✍️ उत्पत्ति क्षेत्र तथा प्रवाहित मार्ग:- शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति मध्य अक्षांशों में 35 डिग्री से 65 डिग्री अक्षांश के मध्य दोनों को गोलाद्धो में होती है। 
• उत्तरी गोलार्द्ब में शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति के दो प्रमुख केंद्र है। 
( अ ) एशिया का उत्तरी पूर्वी तट एल्युशियन द्वीप तथा उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तटीय भाग।
( ब ) संयुक्त राज्य अमेरिका के उत्तरी पूर्वी तटीय क्षेत्रों से लेकर पश्चिमी यूरोप के मध्यवर्ती भाग तक।
• दक्षिणी गोलार्द्ब में शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात  पश्चिम से पूरब दिशा में अक्षांशों के समानांतर प्रवाहित होते हैं।
✍️✍️शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातो के स्थानीय नाम:-
(1.) संयुक्त राज्य अमेरिका के कोलोराडो क्षेत्र में - कोलोरेडो लो (Colorado Low) कहते हैं।
(2.) कनाडा के राॅकी पर्वत के  पूर्वी भाग में  अल्बर्टा लो (Alberta Low) कहते हैं।
(3.)  उत्तर-पश्चिमी भारत व पाकिस्तान में  पश्चिमी विक्षोभ ( Western Disturbance) कहते हैं।
✍️✍️ शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में मौसम तथा वर्षा:- शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का आगमन पश्चिम दिशा से होता है। इन चक्रवातों के करीब आने पर वायु की गति मंद पड़ जाती है। चंद्रमा एवं सूर्य के चारों ओर प्रभामंडल छा जाता है।आकाश में पक्षाभ एवं पक्षाभ स्तररी मेंघ छा जाते हैं । 
उष्ण वाताग्र के आते ही वर्षा प्रारंभ हो जाती है । उष्ण वाताग्र में वर्षा वर्षा स्तरी मेघों ( Nimbo -Stratus clouds) से होती है। उष्ण वातग्र में वर्षा लंबे समय तक तथा विस्तृत क्षेत्र में होती है। क्योंकि उष्ण वाताग्र में गर्म हवा धीरे-धीरे ऊपर उठती है, जिस कारण वर्षा लंबे समय तक तथा विस्तृत क्षेत्र में होती है।
वर्षा हवा में नमी की मात्रा एवं हवा की स्थिरता पर निर्भर करती है। उष्ण वातग्र के गुजर जाने के बाद उष्ण वृतांश का आगमन होता है, जिससे मौसम साफ एवं सुहावना हो जाता है तथा वर्षा रुक जाती है।
उष्ण वृतांश के पश्चात शीत वाताग्र का आगमन होता है। जिससे तापमान गिरने लगता है तथा सर्दी बढ़ने लगती है। आकाश में काले कपासी बादल छा जाते हैं एवं तीव्र वर्षा प्रारंभ हो जाती है।
 शीत वाताग्र में वर्षा काले कपासी वर्षी मेघों (Cummulo Nimbus clouds) द्वारा होती है। वर्षा तीव्र मूसलाधार रूप में अल्पकालिक एवं सीमित क्षेत्र में होती है। शीत वाताग्र में ठंडी हवा गर्म हवा को ऊपर धकेलती है। जिस कारण वर्षा मूसलाधार एवं बिजली की चमक तथा बादलों की गड़गड़ाहट के रूप में तीव्र गति से होती है।
 शीत वाताग्र के समीप ही शीत वृतांश के होने के कारण वर्षा अल्पकालिक होती है। शीत वृतांश के आगमन के पश्चात मौसम में परिवर्तन हो जाता है। आकाश साफ हो जाता है तथा मौसम सुहावना हो जाता है। पुनः चक्रवात के आने के पूर्व की दशाऐं स्थापित हो जाती हैं।
📝 •• शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति से संबंधित सिद्धांत :- 
(1.) ध्रुवीय वाताग्र सिद्धांत :-  यह सिद्धांत वी.बर्कनीज एवं जे. बर्कनीज द्वारा दिया गया है। • इस सिद्धांत में चक्रवात के जीवन चक्र की 6 अवस्थाओं का उल्लेख है।
• इस सिद्धांत को लहर सिद्धांत भी कहते हैं।
 (1.) बर्जेन सिद्धांत :- यह सिद्धांत बर्जेन महोदय द्वारा दिया गया है।

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