Cyclone शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के Cyclos (साइक्लोस) शब्द से हुई है। जिसका अर्थ है - Coils of shanke (सांप के तार)
चक्रवात निम्न वायुदाब के केंद्र होते हैं, जिनके चारों ओर संकेंद्रीय समदाब रेखाएं होती है ।चक्रवात के केंद्र में निम्न वायुदाब तथा बाहर की ओर अधिक वायुदाब पाया जाता है। चक्रवात में हवाऐं परिधि से केंद्र की ओर चलती है। हवाऐं केंद्र में अभिसरित होकर ऊपर उठकर बाहर की ओर चलती है , जिस कारण केंद्र में लंबे समय तक निम्न वायुदाब बना रहता है। चक्रवात में हवाओं की दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुईयों के प्रतिकूल (Anti - Clovk wise) तथा दक्षिणी र्गोलार्द्ध में घड़ी की सुईयो के अनुकूल (Clock wise) होती है। चक्रवातो का आकार गोलाकार, अंडाकार,वेज आकार या वी अक्षर के समान होता है। चक्रवातों को वायुमंडलीय विक्षोभ, चक्रवातीय झंझावत या तूफान भी कहते हैं। चक्रवातो का अग्रभाग वाताग्र (Front) तथा चक्रवात का पृष्ठ भाग रीयर (Rear) कहलाता है। चक्रवातों के प्रकार:-
स्थिति के आधार पर चक्रवातो को दो भागों में बांटा गया है।
( 1.) शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात ( Temperate Cyclones)
(2. ) उष्णकटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclone)
📝.. उष्णकटिबंधीय चक्रवातो की विशेषताएं:-
ग्रीष्म काल में कर्क तथा मकर रेखा के मध्य महासागरीय भागों पर उत्पन्न होने वाले चक्रवातों को उष्णकटिबंधीय चक्रवात के नाम से जाना जाता है। इन चक्रवातो में शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातो की तरह समरूपता नहीं पाई जाती है । इन चक्रवातो के केंद्र में वायुदाब बहुत कम होता है। समदाब रेखाऐं वृत्ताकार होती है ,परंतु इनकी संख्या अत्यधिक कम होती है , जिस कारण इन चक्रवातों को मानचित्र पर प्रदर्शित करने में भी कठिनाई आती है। ये चक्रवात सागरीय भागों पर उत्पन्न होकर महाद्वीपों के तटीय भागों को प्रभावित करते हैं ।इन चक्रवातो की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित है।
📝... आकार , विस्तार एवं गति :- उष्णकटिबंधीय चक्रवातो का आकार गोलाकार , अंडाकार तथाअर्धवृत्ताकार होता है। इनका व्यास 80 किलोमीटर से लेकर 300 किलोमीटर तक पाया जाता है। कभी-कभी इनका विस्तार 50 किलोमीटर से भी कम देखने को मिलता है। उष्णकटिबंधीय चक्रवातो की गति सामान्यतः 32 किलोमीटर प्रति घंटा होती है। हरिकेन में हवाओं की गति 120 किलोमीटर प्रति घंटा होती है। कभी-कभी यह गति 200 किलोमीटर प्रति घंटा भी हो जाती है। उष्णकटिबंधीय चक्रवात सागरों के ऊपर तीव्र गति से प्रवाहित होते हैं। यह महाद्वीपों के तटीय भागों को प्रभावित करते हैं तथा महाद्वीपों के आंतरिक भागों में पहुंचने से पूर्व समाप्त हो जाते हैं। उष्णकटिबंधीय चक्रवातो की ऊर्जा का स्रोत संघनन की गुप्त ऊष्मा होती है।
ये चक्रवात अपनी प्रचंड गति एवं तूफानी स्वभाव के कारण अत्यधिक विनाशकारी होते हैं। इन चक्रवातो के कारण मूसलाधार वर्षा होती है ।जिससे तटीय क्षेत्रों में बाढें आ जाती है तथा अत्यधिक जनधन की हानि होती है।
📝.. उष्णकटिबंधीय चक्रवातो की उत्पत्ति:-
उष्णकटिबंधीय चक्रवातो की उत्पत्ति ग्रीष्म काल में केवल गर्म सागरों पर कर्क एवं मकर रेखा के मध्य अंतरा उष्णकटिबंधीय अभिसरण के सहारे उस समय होती है जब यह खिसक कर 5 डिग्री से 30 डिग्री उत्तरी अक्षांश तक चली जाती है। इन चक्रवातो की उत्पत्ति के लिए 27 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है। इन चक्रवातो की संख्या कम होती है , ये चक्रवात सागरों पर तीव्र गति से प्रवाहित होते हैं तथा महाद्वीपों के तटीय भागों को ही प्रभावित करते हैं। उष्णकटिबंधीय चक्रवात 5 डिग्री से 15 डिग्री अक्षांशों के मध्य दोनों गोलाद्धो में सागरों के ऊपर उत्पन्न होते हैं । ये चक्रवात अपने निम्न दाब के कारण ऊँची सागरीय लहरों का निर्माण करते हैं , जो महाद्वीपों के तटीय भागों में अत्यधिक विनाश करती है।महाद्वीपों के आंतरिक भागों में पहुंचने से पूर्व ये चक्रवात समाप्त हो जाते हैं। इन चक्रवातो में वर्षा काले कपासी वर्षी मेंघो के द्वारा होती है ।ये चक्रवात व्यापारिक हवाओं के साथ पूर्व से पश्चिम दिशा में गति करते हैं । भूमध्य रेखा से 15 डिग्री अक्षांश तक इनकी दिशा पश्चिमी तथा 15 डिग्री से 30 डिग्री तक ध्रुवों की ओर तथा आगे इनकी गति पश्चिमी होती है। इन चक्रवातों की ऊर्जा का प्रमुख स्रोत संघनन की गुप्त ऊष्मा होती है। महाद्वीपों के आंतरिक भागों में संघनन की गुप्त ऊष्मा का ह्रास हो जाता है ।अतः ये चक्रवात समाप्त हो जाते हैं। ये चक्रवात सदैव गतिशील नहीं होते हैं , कभी-कभी एक ही स्थान पर कई दिनों तक स्थिर होकर तीव्र वर्षा प्रदान करते हैं जिससे बाढे आ जती है।
📝.. उष्णकटिबंधीय चक्रवातो की उत्पत्ति क्षेत्र तथा मार्ग :-
उष्णकटिबंधीय चक्रवातो की उत्पत्ति महासागरीय भागों पर कर्क एवं मकर रेखा के मध्य 5 डिग्री से 15 डिग्री अक्षांशों के मध्य दोनों गोलाद्धो में होती है। ये चक्रवात व्यापारिक हवाओं के प्रभाव से पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर भ्रमण करते हैं । इन चक्रवातो की उत्पत्ति केवल ग्रीष्म काल में ही होती है । इनकी संख्या तथा प्रभावित क्षेत्र भी कम पाया जाता है। ये चक्रवात सागरों पर तीव्र गति से प्रवाहित होते हैं , महाद्वीपों के तटीय भागों को प्रभावित कर आंतरिक भागों में पहुंचने से पूर्व ही समाप्त हो जाते हैं।
📝..उष्णकटिबंधीय चक्रवातो में मौसम तथा वायुप्रणाली :- इन चक्रवातो के केंद्र में बहुत कम न्यून वायुदाब पाया जाता है तथा बाहर की ओर वायुदाब में तीव्र गति से वृद्धि होती है अतः चक्रवात में हवाएं प्रचंड वेग से केंद्र की ओर चलती है ।इन चक्रवातो में समदाब रेखाएं वृत्ताकार होती है तथा इनकी संख्या कम पाई जाती है । अतः इन चक्रवातो को मानचित्र पर प्रदर्शित करने में कठिनाई होती है।
इन चक्रवातो में शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातो की तरह वाताग्र नहीं पाए जाते हैं। अतः वर्षा की विभिन्न कोशिकाएं भी नहीं पाई जाती हैं। इन चक्रवातों में केवल चक्रवात की आँख को छोड़कर प्रत्येक भाग में वर्षा होती है । ये चक्रवात निम्न अक्षांशों के मौसम को अत्यधिक प्रभावित करते हैं।
📝.. उष्णकटिबंधीय चक्रवातो की उत्पत्ति भूमध्यरेखा के समीप नहीं होती है क्योंकि यहाँ काॅरिआलिस बल की कमी पाई जाती है। भूमध्यरेखा से दूर कोरिओलिस बल तथा पृथ्वी की अक्षीय गति के कारण हवाओं की अवस्था चक्रिय हो जाती है, जिससे इन चक्रवातो की उत्पत्ति होती है ।
उष्णकटिबंधीय चक्रवातो की उत्पत्ति अंतरा उष्णकटिबंधीय अभिसरण (ITCZ) के साथ होती है ।उष्णकटिबंधीय चक्रवात उपोष्णकटिबंधो में महाद्वीपों के आंतरिक भाग में पहुंचते ही समाप्त हो जाते हैं।
📝 चक्रवात की आंँख (Eye of cyclone) :- उष्णकटिबंधीय चक्रवात के केंद्रीय भाग में निम्न वायुदाब पाया जाता है। इस क्षेत्र में वर्षा नहीं होती है इसे चक्रवात की आंख कहते हैं।
📝.. उष्णकटिबंधीय चक्रवातो के प्रकार ( Types of Tropical cyclones) :-
उष्णकटिबंधीय चक्रवातो को आकार एवं स्वभाव के आधार पर निम्नलिखित भागों में विभाजित किया गया है ।
(1.) उष्णकटिबंधीय विक्षोभ (Tropical Disturbance)
(2.) उष्णकटिबंधीय अवदाब (Tropical Depressions)
(3.) टाइफून या हरिकेन ( typhoon or Hurricane )
(4.) उष्णकटिबंधीय तूफान (Tropical Storm)
(5.) टॉरनेडो ( Tornado)
(1.) उष्णकटिबंधीय विक्षोभ :- इन चक्रवातो में हवाऐं मंद गति से चलती है । उष्णकटिबंधीय विक्षोभ में एक या दो ही समदाब रेखाऐं पाई जाती है । ये चक्रवात मुख्यतः उष्ण तथा उपोष्ण कटिबंधों को प्रभावित करते हैं। भारत में बंगाल की खाड़ी एवं अरब सागर में इन चक्रवातो की उत्पत्ति होती है । ये चक्रवात कभी-कभी एक ही स्थान पर स्थाई होकर हल्की वर्षा प्रदान करते हैं। उदाहरण - पूर्वी तरंग
(2.) उष्णकटिबंधीय अवदाब:- इन चक्रवातो की उत्पत्ति अंतरा उष्णकटिबंधीय अभिसरण के साथ होती है । जब अंतरा उष्णकटिबंधीय अभिसरण की खिसक कर 5 डिग्री से 30 डिग्री उत्तरी अक्षांशों में चली जाती है, तो इन चक्रवातो की उत्पत्ति होती है। इन चक्रवातो में एक से अधिक समदाब रेखाएं पाई जाती है। इन चक्रवातों में हवाओं की गति 40 से 50 किलोमीटर प्रति घंटा होती है। इन चक्रवातों में भारी वर्षा होती है ।जिससे तटीय भागों में बाढें आ जाती है तथा अत्यधिक जन-धन की हानि होती है। ये चक्रवात गर्मियों में भारत में बंगाल की खाड़ी तथा उत्तरी आस्ट्रेलिया को प्रभावित करते हैं । भारत में अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में ये चक्रवात अप्रैल से नवंबर के बीच उत्पन्न होते हैं। भारत में चक्रवातो के पूर्वानुमान हेतु कुल 10 रडार लगाए गए हैं। बंगाल की खाड़ी में इन चक्रवातों को सुपर साइक्लोन कहते हैं। इनकी गति 225 किलोमीटर प्रति घंटा होती है तथा दाब प्रवणता 40 से 55 मिलीबार पाई जाती है।
(3.) टायफून या हरिकेन:- ये चक्रवात अनेक समदाब रेखाओं से घिरे होते हैं। इनमें हवाऐ तीव्र गति से केंद्र की ओर झपटती है। अतः यह अत्यधिक विनाशकारी होते हैं। हरिकेन में हवाओं की गति 120 किलोमीटर प्रति घंटा होती तथा दाब प्रवणता 10 से 55 मिलीबार पाई जाती है ।जलवायु की दृष्टि से इन चक्रवातो का महत्व अत्यधिक कम होता है। ये चक्रवात कर्क तथा मकर रेखाओं के मध्य स्थित महाद्वीपों के तटीय भागों को प्रभावित करते हैं।
(अ) हरिकेन:- हरिकेन मुख्यतः मध्य अमेरिका , मैक्सिको एवं उत्तरी अमेरिका में उत्पन्न होते हैं । ये चक्रवात अत्यधिक विनाशकारी होते हैं। इनके कारण अत्यधिक जन-धन की हानि होती है। हरिकेन में समदाब रेखाऐ अत्यधिक सुडौल तथा वृत्ताकार होती है । केंद्र से बाहर की ओर तीव्र गति से वायुदाब में वृद्धि होती है , जिस कारण दाब प्रवणता अधिक पाई जाती है। इसी कारण हरिकेन प्रचंड गति के साथ आगे बढ़ते हैं। हरिकेन में मूसलाधार वर्षा होती है । भूमध्य रेखा के पास उत्पन्न होने वाले हरिकेन का आकार छोटा होता है तथा दूर जाने पर इनके आकार में वृद्धि होती जाती है। हरिकेन के कारण सागरों में तीव्र तरंगे उठती है जिन्हें हरिकेन लहर के नाम से जाना जाता है।
(ब) टाइफून :- टाइफून की उत्पत्ति जापान , चीन एवं फिलीपीस में होती है। यहां इन चक्रवातों को टाइफून कहा जाता है । जापान में इन चक्रवातों को टाइपू कहते हैं।
(4.) उष्णकटिबंधीय तूफान :- ये चक्रवात अनेक समदाब रेखा से घिरे होते हैं। इन चक्रवातो में हवाऐं केंद्र की ओर 40 किलोमीटर से 120 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से प्रवाहित होती है। इन चक्रवातो की उत्पत्ति ग्रीष्म काल में अरबसागर, बंगाल की खाड़ी, कैरीबियन सागर एवं फिलीपिंस के पास होती है। इन चक्रवातों के कारण कभी-कभी आंध्र प्रदेश तथा उड़ीसा के तटीय भागों एवं पश्चिमी बंगाल के डेल्टाई भागों एवं बांग्लादेश में में तीव्र वर्षा होती है। जिससे बाढ की गंभीर स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इन चक्रवातों को वायुमंडलीय प्रकोप या आपदा भी कहा जाता है । भारत में उष्णकटिबंधीय तूफान को चक्रवात के नाम से जाना जाता है। इसे गर्त या अवदाब भी कहते हैं । ऑस्ट्रेलिया में इन्हें willy-willy के नाम से जाना जाता है ।
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5.) टारनेडो:- यह सबसे लघु आकार का उष्णकटिबंधीय चक्रवात है, परंतु यह सर्वाधिक प्रचंड एवं विनाशकारी होता है। ये चक्रवात मुख्यतः संयुक्त राज्य अमेरिका तथा कभी-कभी आस्ट्रेलिया में भी उत्पन्न होते हैं। ऑस्ट्रेलिया में इनको को विली विलिज के नाम से जाना जाता है । इन चक्रवातो की आकृति कीपाकार होती है। इनमें हवाओं की गति 800 किलोमीटर प्रति घंटा होती है। इन चक्रवातों का संबंध कपासी वर्षी मेघों के साथ धरातल से होता है। टारनेडो समूह में चलते हैं। इस समूह को टारनेडो परिवार कहते हैं। टारनेडो की बार-बार आने की आवृत्ति को प्रस्फोट या टॉरनेडो विपलव कहते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में टॉरनेडो से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र ग्रेट प्लेंस है । इस क्षेत्र को टारनेडो विथिका (Tornado Ally) कहते हैं । भारत में टॉरनेडो को बवंडर कहा जाता है ।भारत में टारनेडो की उत्पत्ति नहीं होती है।📝...उष्णकटिबंधीय चक्रवातो का विश्व वितरण :- इन चक्रवातो की उत्पत्ति मुख्यतः 5 डिग्री से 15 डिग्री अक्षांशों के मध्य दोनों को गोलाद्धो में होती है । इन चक्रवातो की उत्पत्ति के क्षेत्र निम्नलिखित है।
1..उत्तरी अटलांटिक महासागर :- इस महासागर में इनकी उत्पत्ति दक्षिणी तथा दक्षिणी पश्चिमी भागों में 30 डिग्री उत्तरी अक्षांशों में होती है।
2..उत्तरी प्रशांत महासागर :- यहां इन चक्रवातो की उत्पत्ति मैक्सिको के पश्चिमी तट से लेकर कैलिफोर्निया के तट तक होती है।
3..दक्षिणी -पश्चिमी उत्तरी प्रशांत महासागर :- इस क्षेत्र में इन चक्रवातो की उत्पत्ति चीन सागर , फिलीपाइन द्वीप समूह , दक्षिणी जापान के पास होती है।
4. दक्षिणी प्रशांत महासागर:- दक्षिणी प्रशांत महासागर में चक्रवातो की उत्पत्ति आस्ट्रेलिया के पूर्व में 140 डिग्री पश्चिमी देशांतर के पास सोसाइटी दीपों के पूर्व में होती है।
5. उत्तरी हिंद महासागर :- उत्तरी हिंद महासागर में बंगाल की खाड़ी , अरब सागर में इनकी उत्पत्ति होती है ।
6. दक्षिणी हिंद महासागर:- यहांँ इन चक्रवातो की उत्पत्ति मेडागास्कर , रियूनियन , मॉरीशस , मोजांबिक में होती है।
📝..
भारत में 2020-2021 में आए प्रमुख चक्रवात:-
1. Jawad - आंध्र प्रदेश एवं उड़ीसा
2. Gulaub - आंध्र प्रदेश एवं उड़ीसा
3. Tauktae - अरब सागर गुजरात महाराष्ट्र
4. Tags - पश्चिमी बंगाल एवं उड़ीसा
5. Amphan - उड़ीसा एवं पश्चिमी बंगाल
6.Nisarga - अरब सागर
7.Kyarr - अरब सागर
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