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ATMOSPHERE :- definition,composition ,structure,Layers & facts वायुमंडल की परिभाषा, संगठन ,संरचना प्रत्यय एवं अन्य तथ्य :-

📜 वायुमंडल का अर्थ एवं उत्पत्ति (Meaning and Evaluation of Atmosphere)  :-
हमारी पृथ्वी के चारों ओर रंगहीन गंधहीन और स्वादहीन पारदर्शी गैसों के मिश्रण का एक विशाल आवरण पाया जाता है, जिसका विस्तार कई सौ किलोमीटर में है तथा इसी आवरण को वायुमंडल के नाम से जाना जाता है । वायुमंडल सौरविकिरण की लघु तरंगों के लिए पारदर्शी होता है परंतु पार्थिव विकिरण की लंबी तरंगों के लिए अपारदर्शी होता है। वायुमंडल हमारे लिए बहुत ही उपयोगी है , क्योंकि यह उष्मा का नियंत्रण कर पृथ्वी पर जीवन के योग्य तापमान बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान देता है। प्रारंभिक वायुमंडल का निर्माण हिलियम तथा हाइड्रोजन गैसों से मिलकर हुआ था । वायुमंडल का निर्माण प्रीकैंब्रियन से लेकर कैंब्रियन युग के मध्य हुआ माना जाता है। 
" वायुमंडल (atmosphere) " अंग्रेजी भाषा का शब्द है। इसकी उत्पत्ति ग्रीक भाषा के एटमॉस (Atmos) एवं स्पीयर (Sphere) शब्द से हुई है , जिसका तात्पर्य वाष्प प्रदेश (Region of water vapour) होता है। 
       ( वायुमंडल का अर्थ एवं उत्पत्ति )

📃 वायुमंडल की परिभाषा (Definition of Atmosphere) :-
पृथ्वी के चारों ओर हजारों किलोमीटर की ऊंचाई तक फैले गैसीय आवरण को वायुमंडल कहते हैं । इसकी रचना विभिन्न गैसों जैसे नाइट्रोजन ,ऑक्सीजन ,कार्बन डाइऑक्साइड,आर्गन, हाइड्रोजन , हीलियम , जिनोन गैसों , धूल कणों , जलवाष्प आदि से मिलकर हुई है।  वायुमंडल का पृथ्वी पर सर्वत्र समान रूप से वितरण पाया जाता है । पृथ्वी के गुरुतकर्षण शक्ति के कारण वायुमंडल इसके साथ जुड़ा हुआ है। वायुमंडल सूर्य की उष्मा को रोककर विशाल ग्लास हाउस या ग्रीन हाउस की भांति कार्य करता है । जिससे पृथ्वी पर औसत तापमान 15 डिग्री सेंटीग्रेड बना रहता है।  यही तापमान पृथ्वी पर जीव मंडल के विकास का आधार है। 
" वायुमंडल एक बहु स्तरीय गैसों का आवरण है जो पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए हैं तथा प्राकृतिक पर्यावरण एवं जैव मंडल के पारिस्थितिक तंत्र का एक महत्वपूर्ण घटक है "
 जैवमंडल के सभी सजीवो के अस्तित्व के लिए यह परम आवश्यक है । वायुमंडल सूर्य से आने वाली पराबैंगनी सौर विकिरणो को रोककर पृथ्वी के तापमान को बढ़ने  से बचाता है । 
वायुमंडल का विस्तार सागर तल से 16 किलोमीटर से लेकर 29000 किलोमीटर तक माना गया है।  वायुमंडल ने  पृथ्वी के  मौसम एवं जलवायु को (उष्मा, तापमान,वायुदाब,पवन ,आद्रता ,मेघाछन्नता, वर्षा , वायुमंडलीय तूफान आदि ) तथा जैवमंडल में पौधे एवं जंतुओं ,मानव आदि के उद्भव , विकास एवं वृद्धि को सदैव प्रभावित एवं नियंत्रित किया है। 
Note 📝 :-
💡(1) पृथ्वी का औसत तापमान 15 डिग्री सेंटीग्रेड होता है l यही तापमान पृथ्वी पर जीवन का आधार है।

वायुमंडल का संगठन(Composition of the Atmosphere) :-
वायुमंडल अनेक गैसों का यांत्रिक मिश्रण है ।इसका निर्माण विभिन्न गैसों, जलवाष्प एवं धूल कणों से मिलकर हुआ है । वायुमंडल का संगठन मुख्यतः तीन घटकों से मिलकर हुआ है। 
(1.) गैसे (Gases) 
(2.) जलवाष्प (Water vapour)
(3.) एरोसॉल(Aerosols) 

📝.. वायुमंडलीय गैसे (Atmospheric Gases) :- वायुमंडल की रचना विभिन्न गैसों जैसे हाइड्रोजन,ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड ,आर्गन, हाइड्रोजन, हिलियम,जीनोन, क्रिप्टोन आदि से मिलकर हुई है । धरातल से 25 किलोमीटर की ऊंचाई तक शुष्क वायु  में निम्नलिखित गैसे पाई जाती है ।
 वायुमंडल में मुख्यतः दो प्रकार की गैसे पायी जाती है।
1. स्थिर या स्थाई गैसे (Constant Gases) :- इन गैसों की मात्रा में वायुमंडल में कोई परिवर्तन नहीं होता है । अतः इन्हें स्थिर या स्थाई गैसे कहते हैं । नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, आर्गन आदि प्रमुख स्थाई गैसे हैं। 
2. परिवर्तनशील या अस्थिर गैसे (Variable Gases) :- वायुमंडल मैं उपस्थित इन गैसों की मात्रा में परिवर्तन होता रहता है , अतः इन्हें परिवर्तनशील या अस्थिर गैसे  कहते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड, ओजोन, हाइड्रोजन , हिलियम नियॉन, क्रिप्टन, मीथेन एवं जलवाष्प को इसके अंतर्गत शामिल किया जाता है। 
वायुमंडलीय गैसों को क्रियाशीलता तथा  अक्रियाशीलता के आधार पर दो भागों में विभाजित किया गया है ।
1. क्रियाशील गैसें :- इसके अंतर्गत ऑक्सीजन , नाइट्रोजन , कार्बन डाइऑक्साइड  गैसे शामिल  हैं।  
2. अक्रियाशील गैसें :- इसमें आर्गन,  हीलियम ,नियॉन ,क्रिप्टन ,जेनान एवं रेडॉन को शामिल किया जाता है। 
📝 Note :- 
1. आर्गन गैस वायुमंडल में पाई जाने वाली प्रमुख अक्रियाशील गैस हैं। यह वायुमंडल में सर्वाधिक मात्रा 0.93% पायी जाने वाली  अक्रियाशील गैस है। 
2. रेडॉन गैस वायुमंडल में नहीं पायी जाने वाली  अक्रियाशील गैस है। भूकंप के समय इस गैस की मात्रा वायुमंडल में सर्वाधिक बढ़ जाती है।
(1.) नाइट्रोजन गैस (Nitrogen ,N2) :- यह वायुमंडल में सर्वाधिक मात्रा में पाई जाने वाली गैस है।  वायुमंडल में इसका प्रतिशत 78.08 % पाया जाता है । नाइट्रोजन ऑक्सीजन को तनु करकेेे प्रज्वलन का नियमन करती है। वायुमंडलीय नाइट्रोजन का प्रयोग लेेेग्यूमीनस पौधोंं एवं शैैैैैैवालो द्ववाारा किया जाता है। । ये पौधे वायुमंडलीय नाइट्रोजनी पोषक तत्वोंं की पूूूूूूर्ति करते है तथा मृदा में स्तरीकरण की प्रक्रिया को क्रियाशील करते है। 
(2.) ऑक्सीजन गैस (Oxygen ,O2) :- ऑक्सीजन सजीवों के लिए जीवनदायिनी गैस है।  यह वायुमंडल के कुल आयतन का 20.24 % पायी जाती है। ऑक्सीजन का निर्माण स्वपोषित हरे पौधों एवं सागरीय शैवालोंं द्वारा प्रकाश संश्लेेषण की प्रक्रिया द्वारा होता है। ऑक्सीजन गैस प्रज्वलन के लिए भी अनिवार्य है । पेड़ पौधे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में ऑक्सीजन गैस को वायुमंडल मे छोड़ते हैं।

(3.) कार्बन डाई ऑक्साइड गैस (Carbon dioxide , CO2) :-  यह एक परिवर्तनशील गैस है। कार्बन डाइऑक्साइड का प्रयोग प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में स्वपोोषी तथा प्रकाशपोषी हरे पौधों द्वारा सूर्य के प्रकाश के माध्यम से ऑक्सीजन के साथ करते हैं। यह वायुमंडल के कुल आयतन का 0.036 % पाई जाती है। (क्योटो प्रोटोकोल 1997 के द्वारा इसकी मात्रा में कमी किए जाने के विचार के बारे में वैश्विक सहमति बनी थी परंतु इस दिशा में पर्याप्त प्रयास अभी तक नहीं हुए हैं। ) कार्बन डाइऑक्साइड गैस सौर विकिरण के लिए पारदर्शी होती है।जबकि पृथ्वी से होने वाले पार्थिव विकिरण के लिए अपारदर्शी होती है। यह पार्थिव विकिरण को सोख कर धरातल को गर्म बनाए रखती है । कार्बन डाइऑक्साइड गैस भूमंडलीय उष्मन (Global warming) को उत्पन्न करती है। यह प्रमुुुख ग्रीन हाउस गैस ( house gas) हैं। जो हरित गृह प्रभाव उत्पपन्न करती है।
(4.) ओजोन गैस(Ozone ,O3) :- यह वायुमंडल में न्यून मात्रा मेंं पाई जाने वाली गैस है ।वायुमंडल मेंं ओजोन गैस की सर्वाधिक सांद्रता 30 से 35 किलोमीटर के मध्य पाई जाती है। यह सूर्य से आने वाले पराबैंगनी सौरविकिरण (Ultra violet Rays) से हमारी रक्षा करती हैं। अतः इस गैस को जीवनरक्षक गैस कहते है तथा ओजोन परत को पृथ्वी की छतरी या जीवन रक्षक परत कहते हैं। 

📝 Note :- मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल 1987 द्वारा ओजोन परत को क्षरित होने से बचाने के लिए सहमति बनी थी । परंतु वर्तमान समय तक भी इसके रक्षण के संबंध में अधिक प्रयास नहीं हो सके हैं। जो एक चिंता का विषय है , क्योंकि इसके संरक्षण के बिना मानव जीवन ही नहीं अपितु समस्त पृथ्वी के सजीवों का जीवन संकट में  पड़ने की संभावना है।

📝... जलवाष्प(Water vapour) :- वायु में उपस्थित वाष्प के रूप में जल की मात्रा को जलवाष्प कहतेे हैं । धरातल के समीप की वायु में सर्वत्र जलवाष्प की मात्रा पाई जाती है।  वायुमंडल में जलवाष्प की मात्रा वायुमंडल के कुल आयतन का  5% पाई जाती है।वायुमंडल की संपूर्ण आद्रता का 1 % भाग 10 किलोमीटर की ऊंचाई तक पाया जाता है।  वायुमंडल की संपूर्ण जलवाष्प का 90% भाग 8 किलोमीटर की ऊंचाई तक पाया जाता है। वायुमंडल में जलवाष्प ठोस, द्रव ,गैस तीनों अवस्थाओं में पाई जाती है ।वायुमंडल में ऊंचाई में वृद्धि के साथ जलवाष्प की मात्रा में कमी होती जाती है । जलवाष्प की कुल मात्रा का 50% भाग 2 किलोमीटर की ऊंचाई तक पाया जाता है। जलवाष्प के कारण ही संघनन के सभी रूपों (कुहरा ,धुंध ,औंस,बादल , वर्षा ) का निर्माण होता है । जलवाष्प की उपस्थिति के कारण ही वायुमंडल में विभिन्न प्रकार के तूफानों तथा तड़ितझंझाओं की  उत्पत्ति होती है। पृथ्वी के धरातल से वायुमंडल को प्रति सेकेंड 1 .6 टन जल वाष्प प्राप्त  होती हैं , यदि वायुमंंडल की है। भूमध्य रेखीय प्रदेशों के घोषणापत् वायुमंडल में जलवाष्प की मात्रा सर्वाधिक 4% पाई जाती है जबकि ध्रुवीय क्षेत्रों के शुष्क वायुमंडल में जलवाष्प की मात्रा
लगभग 1 प्रतिशत पाई जाती है। जलमंडल का कुल 0.035% वायुमंडल में स्थित है। जलवाष्प सौर विकिरण के लिए पारदर्शक होती है। यह पृथ्वी के तापमान को सम बनाए रखती है। विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर जाने  पर जलवाष्प की मात्रा में कमी आती जाती है। .. एरोसॉल (Aerosols) :- वायुमंडल में उपस्थित धूलकणों, निलंबित कणकीय पदार्थों को एरोसॉल कहा जाता है। धूल कणों का सर्वाधिक सांद्रण निचले वायुमंडल में पाया जाता है। धूूूूूूूलकणों द्वारा सूर्य की किरणों का परावर्तन, प्रकीर्णन आदि क्रियाएंं होती है । प्रकीर्णन के कारण आसमान का रंग नीला दिखाई देता है तथा सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय लालिमा दिखाई देती है।  धूल , धुआँ एवं नमक के कण जलवाष्प  को आकर्षित करने के कारण आद्रताग्राही नाभिक काा कार्य करतेे हैं । धूल कणों की सर्वाधिक मात्रा उपोषण एवंं शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाती है।  औद्योगिक नगरों में भी धूलकणों की मात्रा सर्वाधिक देखने को मिलती है। धूल कणों के परावर्तन के कारण मृग मरीचिका जैसा दृश्यय उत्पन्न होता है। 

📝 ... 1. वायुमंडल में अक्रिय गैसों की कुल मात्रा 0.9347 %  पाई जाती है। 
नाइट्रोजन एवंं ऑक्सीजन दोनों गैसे मिलकर ... 2.समस्त वायुमंडल  के कुल आयतन का 99 % भाग का निर्माण करती है।

 📝... विभिन्न गैसो  की वायुमंडल में अधिकतम ऊंचाई :- 
(1) नाइट्रोजन -  120 किलोमीटर । 
(2) ऑक्सीजन  - 120 किलोमीटर ।
(3) कार्बन डााइऑक्साइड - 20 सेेे 50 किलोमीटर ।
(4) आर्गन  - 80 किलोमीटर ।

📝... वायुमंडल का स्तरीकरण या परतें (Atmospheric layers and stratification) :-
वायुमंडल को संरचनात्मक आधार पर 5 परतों  में विभाजित किया गया है ।
1.क्षोभमंडल (Troposphere) 
2. समताप मंडल (Stratosphere) 
3. ओजोन मंडल (Ozonesphere) 
4. मध्य मंडल (Mesosphere) 
5.ताप मंडल (Thermosphere) 
 (अ) आयन मंडल (Ionosphere) 
  (ब)  आयतन मंडल (Exosphere) 

(1.) क्षोभमंडल (Troposphere) :- Troposphere  शब्द की उत्पत्ति दो ग्रीक शब्दो  Tropos  एवं  Sphere  से मिलकर हुई है । जिसका तात्पर्य विक्षोभ प्रदेश(Turbulence Region) या मिश्रण प्रदेश (Mixing Region) होता है। Troposphere शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग टीजरन्स डी बोर्ट द्वारा किया गया था। यह परत मौसम व जलवायु की दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण है । समस्त प्रकार की मौसमी घटनाएं जैसे बादल का बनना , वर्षा का होना , तूफानों या तड़ित झंझाओं की उत्पत्ति आदि इसी परत में संपन्न होती है । क्षोभमंडल की औसत ऊंचाई धरातल से 13 से 14 किलोमीटर तक मानी गई है । भूमध्य रेखा पर इसकी ऊंचाई 17 से 18 किलोमीटर तक तथा ध्रुवों पर इसकी  ऊंचाई 8 से  10 किलोमीटर पाई जाती है। भूमध्य रेखा पर क्षोभ मंडल की ऊंचाई के अधिक पाए जाने का कारण संवहनीय धाराओं द्वारा तापमान का अधिक ऊंचाई तक स्थानांतरण करना है।  भूमध्य रेखा पर अधिक तापमान के कारण संवहनीय  धाराओं की उत्पत्ति होती है। अतः इस मंडल को संवहनीय मंडल भी कहा जाता है। क्षोभमंडल की मोटाई ग्रीष्म ऋतु में सर्वाधिक तथा शीत ऋतु में सबसे कम पाई जाती है।  इस परत में धरातल से ऊंचाई में जाने पर प्रति 165 मीटर की ऊंचाई पर 1 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान कम हो जाता है।  इसे तापमान की सामान्य ताप पतन दर (Normal laps rate, NLR)  कहते हैं। क्षोभमंडल में सामान्य ताप पतन दर 
(अ) 165 मीटर पर  -  1 डिग्री सेंटीग्रेड 
(ब) 1000 फीट पर  -  3.6 फॉरेनहाइट 
(स) 1000 मीटर पर  - 6.5 डिग्री सेंटीग्रेड सामान्य ताप पतन दर पृथ्वी पर सर्वत्र समान होती है । क्षोभमंडल के ऊपरी भाग में जेटस्मट्रीम धाराएं प्रवाहित होती है।  यह परत समस्त जीवो एवं उनकी जैविक क्रियाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस परत में तापमान का स्थानांतरण -  विकिरण, संचालन तथा संवहन विधियों द्वारा होता है।
✍️✍️✍️ क्षोभसीमा (tropopause):- tropopause शब्द का तात्पर्य है मिश्रण की समाप्ति (Ending of mixing)  Tropopause शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग सर नेपियर शॉ द्वारा किया गया था ।  क्षोभसीमा क्षोभमंडल केे शीर्ष पर स्थित एक संक्रमण स्तर है। इसकी मोटाई 1.5 किलोमीटर सेेेेेेेे किलोमीटर के मध्य पाई जाती है । यह क्षोभमंडल एवं समताप मंडल को अलग करती है। इस संक्रमण स्तर में सभी मौसमी परिवर्तन स्थगित हो जातेे हैं।  तापमान का गिरना भी बंद हो जाताा है। क्षोभसीमा की ऊंचाई 14 किलोमीटर पाई जाती है। भूमध्य रेखा पर इसकी ऊंचाई 18 किलोमीटर एवं ध्रुवों पर इसकी ऊंचाई 9 से 10 किलोमीटर के मध्य पाई जाती है । भूमध्य रेखा व ध्रुवों पर  क्षोभसीमा की असामान ऊंचाई का कारण इस परत का तापमान है। 
👉 भूमध्य रेखा पर - 80 डिग्री सेंटीग्रेड (सबसे कम) 
👉 ध्रुवों पर -60 डिग्री सेंटीग्रेड (सर्वाधिक)   इस संस्तर में तापमान की गिरावट में समाप्ति केे कारण इसे पृथ्वी का शीत बिंदु (Cold point of the earth) कहा जाता है । 

(2.)समताप मंडल (Stratosphere) :-stratosphere शब्द का तात्पर्य स्त्तरण मंडल (Region of Stratification ) होता है ।समताप मंडल की खोज एवं नामकरण सर्वप्रथम टीजर डी बोर्ट द्ववारा 1902 में किया गया थी। समताप मंडल की औसत ऊंचाई 50 किलोमीटर मानी गई है। समताप मंडल की मोटाई सर्वाधिक ध्रुवों पर पाई जाती है ।जिसका कारण अधिक ऊंचाई तक तापमान का स्थानांतरण है।  समताप मंडल के निचले भाग में 20 किलोमीटर की ऊंचाई तक कोई परिवर्तन नहीं होता है । हवा की गति भी सामान्य बनी रहती है। अतः यह मंडल वायुयान की उड़ानों के लिए उपयुक्त है।  इस परत की महत्वपूर्ण विशेेषता ओजोन गैस का पाया जाना हैैै। ओजोन गैस की सर्वाधिक सांद्रता इसी मंडल में 30 से 35 किलोमीटर के मध्य पाई जाती है।  ओजोन गैस सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों का अवशोषण कर हमारी रक्षा करती है। समताप मंडल के ऊपरी भाग का तापमान 0 डिग्री सेंटीग्रेड या 32 फॉरेेन्हाइट पाया जाता है । समताप मंडल में कभी-कभी विशेष प्रकार के बादल देखने को मिलते इन्हें मुक्ताभ मेघ (Mother's of Pearl Clouds) या नैक्रियस क्लाउड कहते है। समताप मंडल शीत ऋतु में 50 - 60 डिग्री अक्षांश के मध्य सर्वाधिक गर्म रहता है। 
(3.)ओजोन मंडल (Ozonesphere) :-  ओजोन मंडल की ऊंचाई 20 किलोमीटर से लेकर 35 किलोमीटर के मध्य पाई जाती है।  ओजोन गैस की सर्वाधिक सांद्रता वायुमंडल में 30 से 35 किलोमीटर के मध्य पाई जाती है।  ओजोन गैस  सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों को सोख कर तापमान को बढ़ा लेती है। अतः इस परत में तापमान प्रति 1 किलोमीटर की ऊंचाई पर 5 डिग्री सेंटीग्रेड की दर से बढ़ता है । ओजोन परत का तापमान धरातल के निकट के तापमान से अधिक होता है । ओजोन परत हमारी सुरक्षा सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों को रोककर करती है ।अतः इस परत को पृथ्वी की छतरी या जीवन रक्षक परत के नाम से भी जाना जाता है।  पृथ्वी पर परमाणु विस्फोट किए जाने पर उत्पन्न ध्वनि एवं नीरवता के वलय (Rings of sound and silence) का कारण ओजोन गैस के अधिक तापमान को बताया जाता है । वर्तमान समय में अत्यधिक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण वायुमंडलीयउष्मन एवं ओजोन क्षरण की समस्या उत्पन्न हो गई है। ओजोन परत के क्षरण के लिए जिम्मेदार गैसे सीएफसी (CFC) , क्लोरोफ्लोरोकार्बन , हेलोन्स , कार्बन डाइऑक्साइड आदि है ।जिनके अधिक उत्सर्जन पर नियंत्रण की आवश्यकता है।
(4.) मध्यमंडल (Mesosphere) :-वायुमंडल की इस परत की औसत ऊंचाई धरातल से 50 से 80 किलोमीटर के मध्य मानी गई है।  इस मंडल में ऊंचाई के साथ तापमान में भी कमी होती है। इस परत की ऊपरी सीमा पर तापमान घटकर -80 डिग्री सेंटीग्रेड हो जाता है।  इस परत  की ऊपरी सीमा को मेसोपास कहते हैं।  मेसोपाज के ऊपर तापमान  बढ़ने लगता है अतः मेसोपाज  तापीय प्रतिलोमन की स्थिति को प्रदर्शित करता है । मध्यमंडल में गर्मियों में कभी-कभी ध्रुवों पर बादल दिखाई देते हैं इन बादलों को नाक्टीलुसेंट बादल कहते हैं । नाक्टीलुसेंट बादलों के बनने का कारण उल्काओं की धूल एवं संवहनीय प्रक्रिया है । मध्यमंडल में वायुदाब  भी कम पाया जाता है । 
50 किलोमीटर की ऊंचाई पर 1.0 मिलीबार तथा 90 से 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर 0.01 मिलीबार पाया जाता है । मेसोपाज में वायुमंडल का न्यूनतम तापमान पाया जाता है। यह - 100 डिग्री सेंटीग्रेड होता है। 
(5.) तापमंडल (Thermosphere ):-  तापमंडल की औसत ऊंचाई 80 किलोमीटर से लेकर 10000 किलोमीटर तक मानी गई है।  वायुमंडल की इस परत में ऊंचाई के साथ तापमान में तीव्र गति से वृद्धि होती है।  इस मंडल में हवा का तापमान 1700 डिग्री सेंटीग्रेड पाया जाता है । जिसका मापन साधारण तापमापी के द्वारा संभव नहीं है।  इस मंडल को दो भागों में विभाजित किया गया है।
1. आयन मंडल -  80 से 64 किलोमीटर ।
2. बर्हिमंडल -  400 से 10000 किलोमीटर ।
✍️✍️✍️ 1. आयनमंडल( Ionosphere) :-आयनमंडल की औसत ऊंचाई 80 से 640 किलोमीटर के मध्य मानी गई है। इस परत को 6 आयनीकृत परतों में विभाजित किया गया है। 
 [1.] D  :- इसकी औसत ऊंचाई 80 से 99 किलोमीटर है । 
[2.] E परत :- इसकी औसत ऊंचाई 99 से 130 किलोमीटर है। इस परत को केनली  हेविसाइट परत (Kennely heavisite layer)  के नाम से जाना जाता है । 
[3.] विशिष्ट E परत:- इसकी औसत ऊंचाई 130 से 150 किलोमीटर के मध्य पाई जाती है।  इस परत की उत्पत्ति उल्काओं के प्रवेश के कारण होती है ।
[4.] E2 पर :- इसकी औसत ऊंचाई 150 से 160 किलोमीटर के मध्य पाई जाती है।
[ 5.] F परत :- इसकी औसत ऊंचाई 160 से 380 किलोमीटर के मध्य पाई जाती है। इस परत का संबंध सूर्य के सौर कलंको से है। इस परत से रेडियो की लघु तरंगे परावर्तित होती है। इस परत को दो भागों में बांटा गया है 
(1.) F1 परत
(2.) F2 परत
F1 F2  को संयुक्त रूप से एपलेटन परत (Appleton layer) कहते हैं ।
[6.] G परत :- इसकी औसत ऊंचाई 380 से 640 किलोमीटर के मध्य है ।
आयन मंडल रेडियो तरंगों,  टेलीविजन संचार , टेलिफोनिक संचार हेतु महत्वपूर्ण परत है।
✍️✍️✍️2.आयतन मंडल (Exosphere):-  इस परत की औसत ऊंचाई 640 से 10000 किलोमीटर के मध्य मानी गई है। इस परत की खोज लेहमन स्पीटनर महोदय ने की थी। इस परत में हीलियम एवं हाइड्रोजन गैस की प्रधानता है। इसका औसत तापमान 5568 डिग्री सेंटीग्रेड है । इस मंडल में वॉन एलेन रेडिएशन बेल्ट की स्थिति पाई जाती है। आयतन मंडल में उत्तरी ध्रुवीय ज्योति (अरौरा बोरियालिस , Aurora Borealis) एवं दक्षिणी ध्रुवीय ज्योति (अरौराऑस्ट्रेलेससिस, Aurora Australis)  दिखाई देती है।यह प्रकाश मध्य रात्रि में पृथ्वी के दोनों ध्रुवो पर  दिखाई देता है। इस प्रकाश के निर्मित होने का कारण सूर्य की सतह से विसर्जित इलेक्ट्रॉन तरंगें है । यह दिव्य प्रकाश आकाश में विचित्र बहुरं 📝 Note :- वायुमंडल का रासायनिक वर्गीकरण ( Chemical Composition of Atmosphere) :- वायुमंडल को मार्सेल निकोलेट ने रासायनिक संगठन के आधार पर दो मुख्य भागों में विभाजित किया है। 
(1.) सममंडल ( Homosphere) :- सममंडल की औसत ऊंचाई धरातल से 90 किलोमीटर तक मानी गई है। इस परत में नाइट्रोजन , ऑक्सीजन आदि गैसों के अनुपात में कोई परिवर्तन नहीं होता है । अतः इसे सममंडल कहते हैं।  इसके अंतर्गत क्षोभमंडल, समताप मंडल, ओजोन मंडल एवं मध्य मंडल को शामिल किया गया जाता है ।(2.) विषममंडल ( Heterosphere) :- विषम मंडल की औसत ऊंचाई 90 से 10000 किलोमीटर तक मानी गई है।  इसमें तापमंडल , आयनमंडल , बर्हिमंडल को शामिल किया जाता है।  विषम मंडल को 4 उप भागों में विभाजित किया गया है ।
1.आणविक नाइट्रोजन परत :- 90-200 K.M.
2. एटॉमिक ऑक्सीजन परत :- 200-100 K.M. 
3. हीलियम परत :- 1100 - 3500 K. M. 
4. एटॉमिक हाइड्रोजन परत :- 3500 -10000 K.M. 

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Auther - Mahipal Gaur  






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