ज्वालामुखी क्रिया के फलस्वरुप पृथ्वी के आंतरिक भाग में मैग्मा के चट्टानों की दरारों या छिद्रों में जमा होने तथा लावा के उदगार के फलस्वरूप ठंडा होकर जमने से विभिन्न प्रकार की भू आकृतियों का निर्माण होता है। इन्हें ज्वालामुखी क्रिया द्वारा निर्मित स्थलाकृतियाँ कहते हैं। ज्वालामुखी उद्गार द्वारा निर्मित स्थल रूप स्थाई स्वरूप वाले नहीं होते हैं। क्योंकि प्रत्येक उदगार के बाद इनकी संरचना में परिवर्तन होता रहता है।
• ज्वालामुखी क्रिया द्वारा निर्मित स्थलाकृतियाँ लावा तथा विखंडित पदार्थों के अनुपात, उनकी मात्रा एवं उनके गुणों पर आधारित होती है।
• विस्फोटक उद्गार के समय विखंडित पदार्थ तथा ज्वालामुखी धूल अधिक मात्रा में होती है। परिणामस्वरूप राख शंकु या सिंडर शंकु की रचना होती है। जब उद्गार शांत रूप में होता है, तो लावा की अधिकता के कारण लावा पठार तथा लावा गुम्बद एवं लावा मैदान की रचना होती है।ज्वालामुखी क्रिया का क्षेत्र धरातल के नीचे तथा बाहर दोनों जगह होता है। अतः ज्वालामुखी स्थल रूपों को दो भागों में विभाजित किया गया है। (1.) बाह्य स्थलाकृतियाँ (Extrusive Topography ) :-
(अ) केंद्रीय विस्फोट द्वारा निर्मित स्थलाकृतियाँ। 1. ऊंचे उठे भाग (Eleveted forms )
2.नीचे धँसे भाग (Depressed Froms )
(ब) दरारी उद्गार द्वारा निर्मित स्थलाकृतियाँ।
1. लावा पठार तथा लावा गुंबद
2. लावा मैदान
(2.)आभ्यंतरिक स्थलाकृतियाँ (instrusive Topography) :-
(1.) आंतरिक लावा गुम्बद
(2.) बैथोलिथ
(3.) लैकोलिथ
(4.) फैकोलिथ
(5.) लोपोलिथ
(6.) डाइक
(7.)सील
(8.)स्टॉक
(1.) बाह्य स्थलाकृतियाँ (Extrusive Topography ) :-
(अ) केंद्रीय विस्फोट द्वारा निर्मित स्थलाकृतियाँ (Extrusive Topography) :- ज्वालामुखी के केंद्रीय उदगार द्वारा तीव्र गैस तथा वाष्प, पर्याप्त लावा तथा विखंडित पदार्थों के साथ बाहर निकलती है। इन पदार्थों के जमाव से अनेक प्रकार के ज्वालामुखी शंकुओं का निर्माण होता है।ये शंकु ऊंँचे उठे भाग होते हैं। इसके अलावा विस्फोट के समय ज्वालामुखी का कुछ भाग उड़ जाता है एवं नीचे धँसक जाता है। इस प्रकार बने भू-आकारों में क्रेटर तथा काल्डेरा प्रमुख है। इन्हें नीचे धँसे हुए भाग कहते हैं।
(1.) सिंडर शंकु या राख शंकु (Cinder cone or Ash cone) :- ये शंकु प्रायः कम ऊंचाई के होते हैं। इनका निर्माण मुख्यतः ज्वालामुखी राख एवं विखंडित पदार्थों के जमा होने से होता है। तरल पदार्थों का इनके निर्माण में कोई योगदान नहीं होता है। इनका का ढा़ल अवतल होता है। इनका क्रेटर अधिक चौड़ा होता है। सिंडर शंकु के उदाहरण :-
• मेक्सिको में पैराक्यूटीन पर्वत एवं जोरल्लो पर्वत।
• सान सल्वाडोर में इजालको पर्वत
• फिलीपींस के लूजोन द्वीप में कैमेग्विन पर्वत।
• ग्वाटेमाला में वल्केनो डी फ्यूगो पर्वत।
(2.) लावा शंकु ( lava cone) :- इस प्रकार के शंकुओं के निर्माण में अम्लीय से लेकर क्षारीय प्रकार के तरल मैग्मा के उद्गार का योगदान होता है। लावा शंकु को अम्लीय तथा क्षारीय लावा के आधार पर निम्न प्रकारों में बांटा गया है।
• (अ) अम्लीय लावा शंकु या एसिड लावा शंकु (Acid lava cone ) :- ज्वालामुखी उद्गार के समय निकलने वाला लावा जब अधिक गाढा़ एवं चिपचिपा होता है एवं इसमें सिलिका की मात्रा अधिक होती है। तो लावा धरातल पर आते ही शीघ्रता से ठंडा होकर जम जाता है। इसको फैलने का का समय भी नहीं मिल पाता है। फलस्वरुप तीव्र ढाल वाले शंकु का निर्माण होता है। इसे अम्लीय लावा शंकु या एसिड लावा शंकु कहते हैं। ये शंकु अधिक ऊंचाई व कम क्षेत्रीय विस्तार वाले होते हैं। इस वर्ग में पीलीयन तुल्य,वल्केनो तुल्य तथा स्ट्रांबोली तुल्य ज्वालामुखीयों के द्वारा निर्मित शंकुओं को शामिल किया जाता है। इस प्रकार के शंकु को स्ट्राम्बोली प्रकार का शंकु भी कहते हैं।
• (ब) क्षारीय या पैठिक लावा शंकु (Basic lava cone) :- ज्वालामुखी क्रिया के फलस्वरुप जब लावा क्षारीय होता है अर्थात उस में सिलिका की मात्रा कम होती है, तो यह हल्का और पतला होता है। यह लावा दूर तक फैल कर ठंडा हो जाता है। इससे कम ऊंचाई व अधिक क्षेत्रीय विस्तार वाले ज्वालामुखी शंकुओं का निर्माण होता है। हवाईयन प्रकार के ज्वालामुखीयों द्वारा निर्मित शंकुओं को इस वर्ग में रखा जाता है। हवाई द्विप का मोनालोआ ज्वालामुखी क्षारीय लावा शंकु का उदाहरण है। इस प्रकार के शंकुओं को शिल्ड शंकु भी कहते है। इनकी रचना बेसाल्ट लावा के द्वारा होती है। अतः इनको बेसिक या पैठिक लावा शंकु जाता है।
• (स) मिश्रित ज्वालामुखी शंकु (Composite Cone) :- यह शंकु सभी प्रकार के ज्वालामुखी शंकुओं से ऊंचे होते हैं। इनका निर्माण विभिन्न प्रकार के मिश्रित ज्वालामुखी पदार्थों के परत के रूप में जमा होने से होता है। अतः इन्हें परतदार शंकु भी कहा जाता है।इन शंकुओं में ज्वालामुखी से निकलने वाले हर प्रकार के पदार्थ पाए जाते हैं। धरातल से शंकु का ढाल 35 डिग्री से 40 डिग्री तक होता है। इस शंकु का ऊपरी भाग लावा से ढका होने के कारण अपरदन से अधिक प्रभावित नहीं होता है। विश्व के अधिकांश उच्चतम, अत्यधिक सुडौल तथा बड़े-बड़े ज्वालामुखी पर्वत कम्पोजिट शंकु के उदाहरण है। प्रमुख मिश्रित ज्वालामुखी शंकुओं के उदाहरण :-
• संयुक्त राज्य अमेरिका का रेनियर ,शस्ता तथा हुड।
• फिलीपाइन का मेयान तथा जापान का फ्यूजीयामा
• (द) परपोषित शंकु (Parasite Cone ) :- इन शंकुओं का निर्माण उस समय होता है जब ज्वालामुखी का विस्तार अधिक हो जाता है तथा उनकी मुख्य नलिका से कभी-कभी दरार के कारण उप नलीकाऐं या शाखाएँ निकल जाती है। इससे ज्वालामुखी शंकु के ढा़ल पर एक अन्य शंकु का निर्माण हो जाता है। कभी-कभी इनका आकार इतना अधिक बढ़ जाता है, कि ये मुख्य शंकु के बराबर हो जाते हैं। इन शंकुओं की नली का पोषण ज्वालामुखी की मुख्य नलीका से होता है। अतः इन्हें परपोषित शंकु कहते हैं।
उदाहरण:- संयुक्त राज्य अमेरिका का माउंट शस्तीना माउंट शस्ता का ही एक परपोषित शंकु है।
(य) लावा गुम्बद ( Lava Dome) :- लावा गुम्बद मुख्यतः शील्ड शंकु का ही एक रूप है। यह शिल्ड शंकु से अधिक विस्तृत होता है। इसका ढा़ल अधिक होता है। लावा गुम्बद का निर्माण ज्वालामुखी क्षेत्र के चारों तरफ लावा के जमाव से होता है। इस प्रकार के स्थल रूपों का निर्माण उस समय होता है। जब ज्वालामुखी उद्गार से निकलने वाला लावा अत्यधिक अम्लीय व सिलिका युक्त होता है। इन भूआकारों का निर्माण ज्वालामुखी के शांत होने के क्रम में होता है। निर्माण स्थान एवं उत्पत्ति के आधार पर लावा गुम्बद को तीन भागों में बांँटा गया है।
(1) डाट गुम्बद या लावा डाट (Lava Plug) :- जब मिश्रित शंकु वाले ज्वालामुखी शांत हो जाते हैं। तो उनकी नली तथा छिद्र ठोस लावा से भर जाता है। शंकु का अपरदन हो जाने पर नली में जमा डाट या प्लग दीवार की तरह दिखाई देने लगता है। इसे डाट गुम्बद या लावा डाट कहते हैं।
(2) ज्वालामुखी ग्रीवा (Volcanic Neck) :- जब आंतरिक गुम्बद या लावा डाट की पूरी नली लावा से भर जाती है। तो इसे ज्वालामुखी ग्रीवा कहते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के मेक्सिको प्रांत में ब्लैक हिल्स व डेविल टावर ज्वालामुखी ग्रीवा के उदाहरण है।
(3) डायट्रेम (Diatreme) :- कभी-कभी ज्वालामुखी की नली तथा मुख ब्रेसीया से भर जाता है। ऐसी आकृति को डायट्रेम कहते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में न्यू मैक्सिको में स्थित शिप राॅक डायट्रेम का उदाहरण है।
• केंद्रीय उद्गार द्वारा निर्मित निचले अथवा धँसे भूआकार :-
(1) क्रैटर (Crater) :- ज्वालामुखी छिद्र के ऊपर स्थित गर्त को क्रैटर या ज्वालामुखी मुख कहते हैं। क्रैटर का आकार मुख्यतः कीपाआकार होता है। इसका ढाल शंकु पर आधारित होता है। सिंडर शंकु के अंदर बने क्रैटर का ढाल 25 डिग्री से 30 डिग्री के मध्य होता है। एक क्रैटर का औसत विस्तार 1000 फीट तथा गहराई 1000 फीट के लगभग होती है। उदाहरण :- संयुक्त राज्य अमेरिका के अलास्का प्रांत में स्थित एनीयाकचक क्रैटर।
(2) क्रैटर झील (Crater lake) :- जब क्रैटर में जल भर जाता है, तो एक झील का निर्माण हो जाता है। इसे क्रैटर झील कहते हैं। उदाहरण -
• संयुक्त राज्य अमेरिका ओरेगन प्रान्त की क्रैटर लेक।
• महाराष्ट्र में बुलढाना जिले में स्थित लोनार झील।
(3) घौंसलादार क्रैटर (Nested Crater ) :- कभी-कभी एक मुख्य क्रैटर में कई छोटे-छोटे क्रैटरो का निर्माण हो जाता है। इन्हें घौंसलादार क्रैटर या सामूहिक क्रैटर कहते हैं। इसका निर्माण अगले उद्गार के पिछले उद्गार की तुलना में कम तीव्रता का होने से होता है। उदाहरण -
• फिलीपींस के माउंट ताल में तीन छोटे क्रैटर पाए जाते हैं।
(4.) आश्रित क्रैटर (Adventive Crater ) :- कभी-कभी प्राचीन शंकुओं में दरार पड़ जाने से उसके सहारे गैसें आदि निकलकर भयंकर उद्भेदन के साथ क्रैटर का निर्माण करती हैं। ऐसे क्रैटर को आश्रित क्रैटर कहते हैं।
(5.) काल्डेरा (Caldera ) :- यह क्रेटर का विस्तृत रूप होता है। इसका निर्माण क्रैटर में धँसाव अथवा विस्फोटक उदगार के कारण होता है। डेली महोदय के अनुसार धँसाव की क्रिया से निर्मित बड़े क्रेटर को ज्वालामुखी गर्त कहते हैं। इनके अनुसार जब क्रैटर में पुनः भयंकर विस्फोट होता है। तो शंकु के विखंडित पदार्थ दूर-दूर तक फैल जाते हैं तथा क्रैटर का आकार विस्तृत हो जाता है। इसे काल्डेरा कहते हैं।
उदाहरण :-
• जापान के का आसो क्रैटर।
• संयुक्त राज्य अमेरिका का क्रैटर लेक।
• हवाई द्वीप का काल्डेरा।
(6) सुपर काल्डेरा (Super Caldera) :- अत्यधिक विस्तृत काल्डेरा को सुपर काल्डेरा कहा जाता है। इंडोनेशिया का के सुमात्रा द्वीप के उत्तर-पश्चिम में स्थित लेक टोबा सुपर काल्डेरा का उदाहरण है।
(7) घौंसलेदार काल्डेरा (Nested Caldera) :- जब काल्डेरा के अंदर पुनः ज्वालामुखी उद्गार होता है। तो नये शंकु का निर्माण होता है। इन शंकुओं के विस्फोटक विनाश के कारण पुनः काल्डेरा का निर्माण होता है। इसे घौंसलेदार काल्डेरा कहते हैं।
(ब) दरारी उदगार द्वारा निर्मित स्थलाकृतियाँ (Topography due to fissure eruption) :- ज्वालामुखी के दरारी उदभेदन मे लावा एक लंबी दरार के सहारे धरातल पर प्रकट होता है। लावा के अत्यधिक तरल होने के कारण यह धरातल पर शीघ्रता से क्षैतिज रूप में फैल जाता है तथा धरातलीय भाग पर लावा की एक मोटी और पतली परत बीछ जाती है। इस प्रकार लावा के क्रमिक प्रवाह के कारण लावा की अनेक चादरों का विस्तार हो जाता है। प्रत्येक लावा परत की गहराई 20 से 100 फीट तक होती है। इस प्रकार के जमाव के कारण लावा पठार तथा लावा मैदान का निर्माण होता है। इस प्रकार के विस्तृत पठार एवं मैदान संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्राज़ील न्यूजीलैंड, अर्जेंटीना, मध्य पश्चिमी भारत, दक्षिण अफ्रीका, आइसलैंड एवं साइबेरिया में पाए जाते हैं।
उदाहरण :-
• भारत का ढक्कन ट्रैप
• संयुक्त राज्य अमेरिका का कोलंबिया स्नैक पठार
• दक्षिणी अफ़्रीका का ड्रैकंसबर्ग पठार
• ग्वाटेमाला का वैलकनो डी फ्यूगो पठार
• ब्राजील का पराना पठार
Next part.. Coming soon... आभ्यंतरिक स्थलाकृतियाँ (Intrusive Topography)
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2 टिप्पणियाँ
Thank U sirr.... Itte ache material ke liee
जवाब देंहटाएंThanks ji 🙏🙏
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