" पारिस्थितिक पिरैमिड "
( Ecological Pyramids )
• अर्थ एवं परिभाषा :- किसी भी पारिस्थितिक तंत्र के प्राथमिक उत्पादकों एवं द्वितीय, तृतीय तथा उच्चतम श्रेणी के उपभोक्ताओं की संख्या, जीव भार एवं संचित ऊर्जा में एक पारस्परिक संबंध पाया जाता है। इस संबंध को जब चित्र रूप में प्रदर्शित किया जाता है। तो इसे पारिस्थितिक पिरैमिड कहा जाता है।
• पारिस्थितिक पिरैमिड का विचार सर्वप्रथम Charls Elston ने 1927 में दिया था। अतः इन्हें एल्टन पिरामिड (Estonian Pyramids) भी कहा जाता है।
• पारिस्थितिक पिरैमिड के प्रकार (Types of Ecological Pyramids) :- पारिस्थितिक पिरैमिड को मुख्यतः तीन प्रकारों में विभाजित किया गया है।
(1.) जीव-संख्या पिरैमिड (Pyramid of Numbers)
(2.) जीव भार पिरैमिड (Pyramid of Biomass)
(3.) संचित ऊर्जा पिरैमिड (Pyramid of Energy)
(1.) जीव संख्या का पिरैमिड(Pyramid of Numbers) :-
• इस पिरैमिड के द्वारा पारिस्थितिक तंत्र के प्राथमिक उत्पादकों एवं विभिन्न श्रेणी के उपभोक्ताओं की संख्या के संबंध को प्रदर्शित किया जाता है। इसे जीव संख्या पिरैमिड कहते हैं। • ऐसे पिरैमिड का आधार सदैव प्राथमिक उत्पादकों की संख्या को बतलाता है।
• आधार के ऊपरी भाग क्रमशः प्रथम उपभोक्ता, द्वितीय उपभोक्ता, तृतीय उपभोक्ता एवं उच्चतम श्रेणी के उपभोक्ताओं की संख्या को प्रदर्शित करते हैं।
• इन पिरैमिडो़ का सबसे ऊपरी भाग सदैव उच्चतम श्रेणी के माँसहारी जंतुओं की संख्या को प्रदर्शित करता है।
• ये पिरैमिड्स सीधे तथा उल्टे दोनों प्रकार के हो सकते हैं।
•उदाहरण :-
(अ) घास स्थलीय पिरैमिड एवं फसल स्थलीय पिरैमिड :- इन पारिस्थितिक तंत्रों के पिरैमिड सीधे बनते हैं। घास स्थलीय एवं फसल स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्रों में प्राथमिक उत्पादको जैसे घास के पौधों एवं फसल के पौधों की संख्या सर्वाधिक होती है। अतः इन्हें सीधे पिरैमिड के आधार पर दिखाया जाता है। जबकि विभिन्न श्रेणी के उपभोक्ता जंतुओं की संख्या क्रम से घटती जाती है।अतः इनको ऊपरी स्तर में दिखाया जाता है।
(ब) एक पेड़ का पारिस्थितिक तंत्र :-पेड़ के पारिस्थितिक तंत्र का पिरैमिड उल्टा बनता है। इस पारिस्थितिक तंत्र में प्राथमिक उत्पादक अर्थात स्वयं पेड़ की संख्या एक है। अतः इसे उल्टे पिरैमिड के आधार के रूप में दिखाया जाता है। जबकि इसके उपभोक्ताओं की संख्या क्रम से बढ़ती जाती है। अतः इसे ऊपर की ओर दिखलाया जाता है।
(2.) जीव भार पिरैमिड (Pyramid of Biomass) :-
• इस पिरैमिड में पारिस्थितिक तंत्र के प्राथमिक उत्पादको एवं विभिन्न श्रेणी के उपभोक्ताओं के भार के संबंध में जानकारी प्रदर्शित की जाती है। इसे जीव भार का पिरामिड कहते हैं।
• इस पिरैमिड के आधार पर सदैव प्राथमिक उत्पादकों के भार को प्रदर्शित किया जाता है।
• पिरैमिड के आधार के ऊपर के भागों में विभिन्न श्रेणी के उपभोक्ताओं तथा जंतुओं के भार को दिखलाया जाता है।
• जीव भार के पिरैमिड भी सीधे एवं उल्टे दोनों प्रकार से बनाए जा सकते हैं।
• उदाहरण :-
(अ) वन एवं घास स्थल पारिस्थितिक तंत्र के पिरैमिड :- वन एवं घास स्थल पारिस्थितिक तंत्र के पिरैमिड सीधे बनते हैं। क्योंकि दोनों तंत्रों के प्राथमिक उत्पादको (वृक्षों एवं घास के पौधों) का भार विभिन्न श्रेणी के उपभोक्ताओं के भार से अधिक होता है। दोनों पारिस्थितिक तंत्रों के पिरैमिड में वृक्षों तथा घास के पौधों को चौड़े आधार की ओर प्रदर्शित किया जाता है। जबकि विभिन्न श्रेणी के उपभोक्ताओं के भार को ऊपर की ओर दिखलाया जाता है।
(ब) तालाब का पारिस्थितिक तंत्र का जीव भार पिरैमिड :- तालाब के पारिस्थितिक तंत्र का जीव भार पिरैमिड सदैव उल्टा बनता है। क्योंकि इसमें प्राथमिक उत्पादकों की संख्या सर्वाधिक होते हुए भी उनका भार कम होता है। जबकि उच्च माँसाहारी अर्थात बड़ी मछलियाँ, जंतुओं की संख्या कम होते हुए भी उनका भार अधिक होता है। अतः इसका जीव भार पिरैमिड उल्टा बनाया जाता है। इस पिरामिड में के आधार पर छोटे-छोटे हरे पौधों, प्लैकंटन तथा ऊपर की ओर चौड़े भाग में बड़ी मछलियों को प्रदर्शित किया जाता है।
(3.) संचित ऊर्जा पिरैमिड (Pyramid of Energy) :-
• संचित ऊर्जा पिरैमिड में किसी पारिस्थितिक तंत्र के विभिन्न पोषण तलो के जीव धारियों द्वारा प्रयोग में लाई गई ऊर्जा के के संपूर्ण परिमाण को प्रदर्शित किया जाता है। इन्हें संचित ऊर्जा का पिरैमिड कहतेे हैं।
• यह ऊर्जा पारिस्थितिक तंत्र में एक इकाई भाग में एक निश्चित समय में (Usually per square meter per year) में पायी जाती है।
• ऊर्जा पिरैमिड सदैव सीधा बनताा है। क्योंकि इसमें समय का महत्वपूर्ण योगदान होता है। अतः इसका (Time factor) विशेष ध्यान रखा जाता है।
• प्राथमिक उत्पादक सूर्य की ऊर्जा को सर्वप्रथम रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करते है। यह कार्बनिक पदार्थों केेे रूप में होती है।
• हरे पौधे केवल 10% ऊर्जा को ही अपने में संचित रख पाते हैं। शेष 90% ऊर्जा विभिन्न जैविक क्रियाओं में प्रयोग में आ जाती है।
• यह 10% ऊर्जा विभिन्न श्रेणी के उपभोक्ताओं में स्थानांतरित होती है।
• हर पोषण तल पर ऊर्जा क्रमशः घटती जाती है। क्योंकि प्रत्येक पोषण तल के जंतु केवल 10% ऊर्जा ही अगले पोषण तल को दे पाते हैं। शेष सभी पोषण तलों से 90% ऊर्जा का उपभोग कर लिया जाता है।
• सभी पारिस्थितिक तंत्रों में प्राथमिक उत्पादकों की संख्या समय के साथ परिवर्तित होती रहती है। अतः निश्चित समय के बाद इनके द्वारा संचित एवं प्राप्त की गई ऊर्जा सर्वाधिक होती है। इसी कारण प्राथमिक उत्पादकों को सीधे पिरैमिड में चौड़े आधार पर प्रदर्शित किया जाता है।
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