( Griffith Taylor's Classification of human races )
• सामान्य परिचय :- मानव प्रजातियों का वर्गीकरण विभिन्न मानव शास्त्रियों के द्वारा विभिन्न आधारों पर किया गया है। विभिन्न मानव शास्त्रियों ने प्रजातियों के वर्गीकरण के मापदंड के रूप में बाहरी शारीरिक लक्षणों का प्रयोग किया है। मानव प्रजातियों के वर्गीकरण के लिए निम्नलिखित बाहरी शारीरिक लक्षणों को आधार बनाया जाता है।
1. शरीर का कद (strature )
2. सिर या कपाल का आकार (Cephalic size)
3. बालों की बनावट (Texture of hair)
4. नासिका की आकृति (Nasal shape)
5. कपाल धारिता
6. रंग या वर्ण (Colour)
7. मुखाकृति (Shape of the face)
8. अन्य लक्षण (Other traits)
उपर्युक्त आधारो में से किसी एक शारीरिक लक्षण को विभाजन का आधार माना जाता है। इस प्रकार भिन्न भिन्न मानवशास्त्रीयों ने भिन्न-भिन्न शारीरिक लक्षणों के आधार पर मानव प्रजातियों को वर्गीकृत करने का प्रयास किया है। 19वीं शताब्दी के प्रारंभिक दशक तक मानव प्रजातियों का जो वर्गीकरण प्रस्तुत किया गया। वह वर्तमान संदर्भ में विशेष महत्व नहीं रखता है। आधुनिक काल में विभिन्न विद्वानों द्वारा नवीन वर्गीकरण प्रस्तुत किए गए है। इनमें से ग्रिफिथ टेलर का प्रजातीय वर्गीकरण महत्वपूर्ण है।
• ग्रिफिथ टेलर का प्रजातीय वर्गीकरण ( Griffith Taylor's Classification of human races ) :- अमेरिकन विद्वान ग्रिफिथ टेलर ने जलवायु चक्र तथा विकासवाद के सिद्धांतों के आधार पर सन 1919 में प्रजातियों का वर्गीकरण प्रस्तुत किया। इन्होंने प्रजातियों के उद्भव, विकास तथा वर्तमान वितरण प्रारूपों की विस्तृत व्याख्या के लिए प्रवास कटिबंध सिद्धांत या कटिबंध स्तर सिद्धांत (Migration zone theory /zone and strata theory) का प्रतिपादन किया। ग्रिफिथ टेलर ने मध्य एशिया को समस्त मानव प्रजातियों का उद्भव स्थल (Cradle land ) माना है। इनके अनुसार यहीं से विकसित होकर विभिन्न प्रजातियांँ बाहर की ओर फैली। जो प्रजाति सबसे पहले विकसित हुई, वह अपने उद्गम स्थान से प्रवासित होकर सूदूर महाद्वीपों की बाहरी पेटियों में स्थानांतरित हो गई तथा जो प्रजाति सबसे बाद में विकसित हुई, वह आज भी मध्य एशिया में अपना अस्तित्व बनाये हुए है। टेलर के अनुसार प्रजातीय विकास क्रम में सिर की आकृति लंबी से क्रमशः चौड़ी होती गई और बाल छल्ले धार से सीधे होते गये।
• ग्रिफिथ टेलर ने कपाल सूचकांक (Cephalic index) एवं बलों की बनावट (Texture of hairs ) को मुख्य आधार मानते हुए, समस्त मानव प्रजातियों को 7 वर्गों में विभाजित किया है।
(1.) नीग्रिटो (Negrito)
(2.) नीग्रो (Negro)
(3.) ऑस्ट्रेलाइड (Australoid )
(4.) भूमध्यसागरीय (Mediterranean)
(5.) नार्डिक (Nordic)
(6.) अल्पाइन (Alpine)
(7.) मंगोलिक (Mongolic)
(1.) नीग्रिटो (Negrito) :- यह विश्व की सबसे प्राचीन मानव प्रजाति है। इसे विश्व की प्रथम मानव प्रजाति माना जाता है। यह सर्वप्रथम अपने उदगम स्थल मध्य एशिया से स्थानांतरित हुई थी। यह प्रजाति अन्य प्रजातियों द्वारा बाहर की ओर हटाए जाने के कारण महाद्वीपों के छोरो तक पहुंँच गई। इस प्रजाति के लोगों का कद नाटा या छोटा होता है। रंग काला या चॉकलेटी, चौड़ी और अधिक चपटी नाक, आगे की ओर निकला हुआ जबड़ा, छल्ले दार गुँथे हुए बाल, अधिक पतला एवं लंबा सिर होता है मूल रूप से यह प्रजाति विश्व के किसी भी भाग में वर्तमान में नहीं पायी जाती है। इस प्रजाति का सर्वाधिक प्रजातीय मिश्रण हुआ है। इस प्रजाति का कपाल सूचकांक 70 से कम पाया जाता है। यह प्रजाति मुख्य रूप से कांगो बेसिन, श्रीलंका, मलाया ,दक्षिणी पूर्वी द्विपसमूह तथा अंडमान द्विपसमूह में पायी जाती है। अंडमान निकोबार द्वीप समूह में पायी जाने वाली जरावा जनजाति इसका उदाहरण है।
(2.) नीग्रो (Negro) :- नीग्रो प्रजाति की उत्पत्ति नीग्रिटो के बाद हुई। इस प्रजाति का कपाल सूचकांक 70 से 72 के मध्य होता है। यह प्रजाति उष्णकटिबंधीय अफ्रीका के पूर्वी भाग, सूडान और गिनी तटीय प्रदेश, दक्षिणी पूर्वी एशियाई द्वीपों, पपुआ न्यू गिनी द्वीप आदि में पायी जाती है। इस प्रजाति के लोगों के बाल लंबे और ऊन जैसे घुंघराले होते है। शरीर का रंग काला, जबड़ा बाहर की ओर निकला हुआ, नाक छोटी तथा चपटी एवं शरीर का कद छोटा होता है। यह प्रजाति मुख्य रूप से पपुआ न्यूगिनी द्वीपों पर पायी जाती है।
(3.) ऑस्ट्रेलाइड (Australoid ) :- इस प्रजाति के लोगों का विस्तार 250 वर्ष पूर्ण समस्त ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप पर था। इस प्रजाति का कपाल सूचकांक 72 से 74 के मध्य पाया जाता है। यह एक लंबे सिर वाली प्रजाति है। इसके शारीरिक लक्षणों में चमकदार काला रंग, ऊन के समान घुंघराले बाल, जबड़ा आगे की ओर निकला हुआ और नाक मध्यम चौड़ी होती है। इस प्रजाति के लोगों का शारीरिक का औसत कद 160 से 167 सेंटीमीटर के मध्य पाया जाता है। इस प्रजाति के लोगों का स्थानांतरण मरुस्थलीय तथा दुर्गम क्षेत्रों की ओर यूरोपीय लोगों के यहांँ पहुंचने के कारण हुआ। यह प्रजाति वर्तमान में ऑस्ट्रेलिया एवं मध्य- दक्षिण भारत में भी पायी जाती है।
(4.) भूमध्यसागरीय (Mediterranean) :- भूमध्यसागरीय प्रजाति मुख्यतः बसे हुए महाद्वीपों के बाहरी छोरों पर पायी जाती है। इस प्रजाति के लोग लंबे सिर वाले होते है। जिनके बाल घुंघराले से कम घुंघराले होते है। नाक पतली अंडाकार, जबड़ा कुछ आगे की ओर निकला हुआ और त्वचा का रंग (कांसा के जैसा) जैतूनी होता है। इनका शारीरिक गठन सुगठित होता है। इनका औसत कद 160 से 170 सेंटीमीटर के मध्य पाया जाता है। इस प्रजाति के लोगों का कपाल सूचकांक 70 से 77 के मध्य होता है। इस प्रजाति का सर्वाधिक विस्तार भूमध्य सागर के निकटवर्ती क्षेत्रों पर है। इसी आधार पर इस प्रजाति का नामकरण भूमध्यसागरीय प्रजाति किया गया है। यह प्रजाति दक्षिणी यूरोप और उत्तरी अफ़्रीका के देशों में पायी जाती है। इसके अतिरिक्त इस प्रजाति के लोग उत्तरी अमेरिका, आस्ट्रेलिया, दक्षिण अमेरिका में भी पाये जाते है।
(5.) नार्डिक (Nordic) :- इस प्रजाति के शारीरिक लक्षणों में अधिक अंतर देखने को मिलता है। इस प्रजाति के लोगों का सिर सामान्य आकार वाला होता है। बाल लहरदार, नाक लंबी एवं नुकीली, चेहरा चपटा, त्वचा का रंग गोरा तथा भूरा एवं कद लंबा होता है। इनके कद की औसत लंबाई 167 से 172 सेंटीमीटर के मध्य होती है। शरीर सुगठित घटित होता है। इस प्रजाति के लोगों का कपाल सूचकांक 78 से 82 के मध्य पाया जाता है। यह प्रजाति मुख्य रूप से उत्तरी पश्चिमी यूरोप में पायी जाती है। इस प्रजाति के लोगों का प्रवास उत्तरी व दक्षिणी अमेरिका में भी हुआ है। वर्तमान में यह प्रजाति मिश्रित प्रजाति के रूप में पायी जाती है। प्राचीन काल में इस प्रजाति का विस्तार यूरोप, एशिया, उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका के समशीतोष्ण भागों में हुआ था।
(6.) अल्पाइन (Alpine) :- यह नवीन मानव प्रजाति है। इस प्रजाति के लोगों का सिर चौड़ा, बाल सीधे तथा नाक पतली लंबी होती है। लोगों की त्वचा का रंग भूरे से लेकर शवेत तक और चेहरा सपाट होता है। इस प्रजाति का निवास क्षेत्र मध्य और दक्षिणी पूर्वी यूरोप है। इस प्रजाति के लोगों का कपाल सूचकांक 82 से 85 के मध्य पाया जाता है। अल्पाइन प्रजाति की दो शाखाएँ है।
(1) पश्चिमी शाखा :- इस शाखा के लोग अधिक गोरे होते है। इनमें स्विस,स्लाव एवं आर्मेनियन को शामिल किया जाता है।
(2) पूर्वी शाखा :- इस शाखा के लोग कुछ पीत वर्ण वाले होते है। इसके अंतर्गत फिन्स, मगयार जाति के लोगों को शामिल किया जाता है।
(7.) मंगोलिक (Mongolic) :- यह सभी प्रजातियों के बाद में विकसित हुई प्रजाति है। इसे नवीनतम प्रजाति माना जाता है। ग्रिफिथ टेलर ने इसे उत्तर अल्पाइन (Late alpine) प्रजाति कहा है। इस प्रजाति के लोगों का सिर गोल, बाल सीधे, नाक पतली, चेहरा चपटा, रंग गोरे से लेकर पीला एवं कद औसत पाया जाता है। इस प्रजाति के लोगों का कपाल सूचकांक 85 से 90 के मध्य होता है। यह प्रजाति पूर्व में एशिया के मध्यवर्ती भागों में निवास करती थी। किंतु अब यह मध्य भाग से पश्चिम और पूर्व की ओर स्थानांतरित हो गई है। इस प्रजाति का म मिश्रण पूर्ववर्ती अल्पाइन, भूमध्यरेखीय तथा नार्डिक प्रजातियो के साथ हुआ है। यह प्रजाति वर्तमान में पूर्वी एशिया के चीन, जापान, कोरिया तथा दक्षिणी पूर्वी एशिया में पायी जाती है।
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