Place this code on every page across your site and Google will automatically show ads in all the best places for you site's HTML. This script loads the relevant amp-auto-ads libraries. कार्ल रिटर (Carl Ritter, 1779-1859) :- भूगोल में योगदान....

कार्ल रिटर (Carl Ritter, 1779-1859) :- भूगोल में योगदान....

       Carl Ritter ( 1779-1859 A. D.) 

जीवन परिचय:- 
कार्ल रिटर  हंबोल्ट के समकालीन एक प्रखर बुद्धि व नाना प्रकार की प्रतिभाओं से युक्त विद्वान था। कार्ल रिटर  भूगोल की आधुनिक विचारधारा के संस्थापकों में से एक था ।जो ईश्वर में गौर आस्था रखता था और हंबोल्ट की भांति अज्ञेयवादी नहीं था । कार्ल रिटर अनुभविक शोध (Empirical  Research) में विश्वास व्यक्त करने वाला भूगोलवेत्ता था । रिटर का ब्रह्मांड के बारे में सुव्यवस्थित और सद्भावनापूर्ण दृष्टिकोण था । भूगोल में उसका उपागम उद्देश्यपरक अथवा प्रयोजनमूलक (Teleogical) उपागम कहलाता है । कार्य रिटर् ने अध्यापक के रूप में अपने विद्यार्थियों के समक्ष यह प्रकट किया कि ईश्वर की सत्ता की योजना मानव एवम प्रकृति के मध्य सुमेल तथा सामंजस्य स्थापित करने हेतु निर्मित की गई है । रिटर को आधुनिक भूगोल का संस्थापक माना जाता है। रिटर को आर्मचेयर भूगोलवेत्ता भी कहा जाता है।रीटर उद्देश्यवादी एवं ईश्वर में प्रबल विश्वास करता था।
जीवन परिचय:- 
कार्ल रिटर का जन्म 1779 में एक साधारण परिवार में हुआ था।  उनके पिता चिकित्सक थे। जब रिटर् 5 वर्ष के थे उसी समय इनके पिता की मृत्यु हो गई।
 रिटर की शिक्षा की व्यवस्था क्रिश्चियन साल्किजमैन (C. Salzaman) ने की। इन्होने रिटर को गट्स मूस (Guts Muths) के निर्देशन में रखा। विद्यालयी शिक्षा समाप्त करने के पश्चात रिटर ने एक धनी परिवार में निजी शिक्षक के रूप में कार्य किया। रिटर् ने फ्रैंकफर्ट विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और यहां इतिहास तथा भूगोल का अध्ययन किया। 1807 में रिटर प्रथम भेंट हंबोल्ट से हुई और वे हंबोल्ट के दृष्टिकोण तथा तथ्यों के पर्यवेक्षण से बहुत अधिक प्रभावित हुए। कार्ल रिटर की भौगोलिक अध्ययन के प्रति  विशेष रूचि जागृत हुई। उन्होंने यूरोप के प्रादेशिक भूगोल का सविस्तार अध्ययन किया। रिटर ने   गांटीगन विश्वविद्यालय (1814-8116) में प्रवेश लिया तथा इतिहास और भूगोल के साथ ही भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र, वनस्पतिशास्त्र और खनिज विज्ञान की शिक्षा प्राप्त की।  विश्वविद्यालय स्तर पर रिटर् नेे यूनानी और लैटिन भाषाओं का चयन किया और इतिहास तथा भूगोल का गहराई से अध्ययन किया। 
रिटर की अमर कृति अर्डकुण्डे (Erdkunde) के प्रथम 2 खंड सत्र 1918 में प्रकाशित हुए। जर्मनी में इस ग्रंथ का बड़ा स्वागत हुआ और इसी के आधार पर उन्हें फ्रैंकफर्ट विश्वविद्यालय बरेली में 1820 में नवसृजित भूगोल के प्रोफेसर पद पर नियुक्ति मिल गई। 1818 से वे इसी विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर पद पर कार्य कर रहे थे। रिटर् ने  1820 में बर्लिन भौगोलिक संस्थान की स्थापना की। 
 1959 में 80 वर्ष की आयु में रिटर की मृत्यु हो गई। 

कार्ल रिटर  की प्रमुख रचनाएं:- 
1. यूरोप :-  भौगोलिक,  ऐतिहासिक तथा सांख्यिकीय  चित्रण । (Europe :-A geographical historical and statistical painting) :- इसके प्रथम खण्ड का प्रकाशन 1804 में हुआ । इसके द्वितीय खण्ड का प्रकाशन 1807 में हुआ।  इसमें रिटर ने यूरोप के प्रादेशिक भूगोल का सविस्तार वर्णन किया है। 
2.अर्डकुण्डे (Erdkunde) :- यह रिटर की सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं प्रतिष्ठित ग्रंथमाला है। इसका प्रकाशन 1817 से लेकर 1859 तक कुल 19 खंडों में किया  गया यह एक भौगोलिक ग्रंथमाला है। रिटर् ने भूगोल   के लिए जर्मन में अर्डकुण्डे  शब्द का प्रयोग किया था।  यह एक व्यापक जर्मन शब्द है जो प्रकृति और इतिहास के संदर्भ में पृथ्वी के विज्ञान (भूगोल) के लिए प्रयुक्त किया गया है।
अर्डकुण्डे का प्रथम खंड 1817 एवं द्वितीय खण्ड 1818 में प्रकाशित हुआ।
प्रथम खंड में अफ्रीका महाद्वीप का वर्णन किया गया है।  द्वितीय खण्ड में  एशिया महाद्वीप का भौगोलिक वर्णन किया गया है। 
अर्डकुण्डे  के 19 खंडों में अफ्रीका एवं एशिया के  भूगोल का ही वर्णन किया गया है। किसी भी अंक में यूरोप के भूगोल का वर्णन नहीं किया गया है। अर्डकुण्डे के प्रकाशन से रिटर को बड़ी ख्याति मिली। अर्डकुण्डे सामान्य तुलनात्मक भूगोल का ग्रंथ है। 
3. यूरोप के 6 मानचित्र :- रिटर ने 1806 में यूरोप के 6 मानचित्रो का प्रकाशन किया ।
रिटर का विधि तंत्र :-
कार्ल रिटर ने अपने अध्ययन एवं वर्णन में अनेक विधियों को अपनाया है ये निम्नांकित है। 
1. अनुभविक विधी(Empirical  method) - रिटर  भूगोल को एक अनुभविक विज्ञान मानते थे।  इन्होंने अपने भौगोलिक अध्ययनों के लिए इसी विधि का उपयोग किया है।  
2. तुलनात्मक विधि(Comparative method):-  रिटर् ने कार्य कारण संबंधों को जानने के लिए तुलनात्मक विधि का उपयोग किया। इसी आधार पर  उन्होंने अर्डकुण्डे का  दूसरा नाम सामान्य तुलनात्मक भूगोल  रखा है। 
3. मानचित्रण विधि(Cartographic method) :-  रिटर् ने अपने भौगोलिक तथ्यों की स्थिति को प्रदर्शित करने के लिए मानचित्र विधि का उपयोग किया है।इन्होंने यूरोप के छः मानचित्र भी निर्मित किए थे।  इन्होंने अरडकुण्डे में  विभिन्न प्रादेशिक मानचित्रो को प्रदर्शित किया है। 
4. विश्लेषण और संश्लेषण विधि(Analysis and Systhesis method ) :- रिटर् ने भौगोलिक तथ्यों के वर्णन में विश्लेषण एवं संश्लेषण विधि का प्रयोग किया है। 

रिटर की विचारधारा:-
रिटर के विधितंत्र,कार्यों तथा विचारधारा पर हंबोल्ट का प्रभाव है। यद्यपि कुछ विषयों में रिटर की विचारधारा स्वतंत्र और भिन्न है।  रिटर की विचारधारा के प्रमुख तथ्य निम्नलिखित हैं। 
1.पार्थिव एकता(Terrestrial unity) :- रिटर पार्थिव या प्राकृतिक एकता में विश्वास करते थे।  वे प्राकृतिक एकता में जैविक और अजैविक मानवीय और गैर मानवीय को सम्मिलित करते थे। 
रिटर् ने शुद्ध भूगोल (Reine geography) का विरोध किया था। क्योंकि इसमें प्राकृतिक भूदृश्य पर अत्यधिक बल दिया जाता था। रिटर ने भूगोल में किसी क्षेत्र की समस्त वर्तमान परिस्थितियों का वर्णन तथा व्याख्या को शामिल  किया है।
2. रिटर पर्यावरण नियतिवाद के समर्थक थे। 
3. मानव केंद्रित भूगोल :- रिटर के अनुसार भूगोल का उद्देश्य मानव केंद्रित दृष्टिकोण से भूतल का अध्ययन करना है और मानव और प्रकृति को संबंधित करना है। रिटर ने अपने अध्ययनों में मानव केंद्रित भूगोल पर बल दिया है। रिटर के अनुसार  भूगोल में पृथ्वी तल का अध्ययन मानव गृह के रूप में किया जाता है। रिटर के अनुसार " जिस प्रकार शरीर की रचना आत्मा के लिए हुई है उसी प्रकार पृथ्वी का निर्माण मानव जाति के उपयोग के लिए हुआ है।"
4. ईश्वर परख दृष्टिकोण(Theological  view)  :- रिटर का दृष्टिकोण धार्मिक विश्वास से प्रेरित था।  रिटर का विश्वास था कि ईश्वर ने पृथ्वी की रचना किसी विशेष उद्देश्य से की है। उनका मानना था कि विभिन्न महाद्वीपों की रचना, उच्चावच और धरातल का निर्माण ईश्वरीय नियमों द्वारा हुआ है। ईश्वर ने प्रत्येक क्षेत्र को वह स्वरूप और स्थिति प्रदान की है जो उसके ऊपर रहने वाले मानव के विकास में योगदान दे सकें।
5. प्राकृतिक प्रादेशिक उपागम(physio regional approach) :- रिटर् ने भौगोलिक अध्ययन में प्रादेशिक विधि को अपनाया है। इन्होंने भूतल को प्राकृतिक प्रदेशों में विभक्त करके उनका भौगोलिक वर्णन किया।  प्रदेशों के सीमांकन के लिए प्राकृतिक तथ्यो को आधार बनाया है। इन्होंने प्राकृतिक प्रदेश के लिए जर्मन भाषा के शब्द लाण्डेरकुंडे (Landerkunde)  का प्रयोग किया है।
6. प्रादेशिक भूगोल एवं क्रमबद्ध भूगोल :- रिटर के अनुसार प्रादेशिक व क्रमबद्ध भूगोल एक ही सिक्के के दो पहलूहै। क्रमबद्ध भूगोल पृथ्वी की संपूर्ण सतह का विस्तार पूर्वक अध्ययन करता है जबकि प्रादेशिक भूगोल पृथ्वी की छोटी-छोटी समायोजित क्षेत्रीय ईकाईयों सर्वांगीण अध्ययन करता है। इस प्रकार क्रमबद्ध भूगोल का दृष्टिकोण सामान्य है जबकि प्रादेशिक भूगोल का दृष्टिकोण विशिष्ट है। 
7. संपूर्ण की संकल्पना :- रिटर् ने  अपने भौगोलिक अध्ययनों में समस्त तथ्यों एवं घटनाओं की सम्पूर्ण व्याख्या को शामिल किया है।  रिटर के अनुसार  भूगोल की पूर्णता के लिए सभी शक्तियों एवं कारकों की गहन व्याख्या आवश्यक है । 
इस प्रकार स्पष्ट है कि रिटर ने अपने भौगोलिक दर्शन द्वारा भूगोल को नवीन ऊंचाइयों पर पहुंचाया एवं भूगोल में महत्वपूर्ण योगदान दिया जिसका भूगोल सदैव ऋणी रहेगा ।
 Thanks for Reading...... 
                            Mahipal Gaur🙏

एक टिप्पणी भेजें

6 टिप्पणियाँ

Please do not enter any spam link in the comment box.