ERATOSTHENES (276-196B.C.)
🔜 प्रमुख रचना(Book's):-
✍️✍️ ज्योग्राफिका (geographical):- यह इरेटोस्थनीज की महान रचना है। इस पुस्तक में इरेटोस्थनीज ने गणितीय भूगोल का वर्णन किया है। इसी पुस्तक में ही इन्होने सर्वप्रथम भूगोल विषय के लिए भूगोल (Geographie) शब्द का प्रयोग किया। इसमें इरेटोस्थनीज ने अधिवासीत पृथ्वी (Ekumene) का वर्णन किया हैं। उसने अधिवासात पृथ्वी का दो प्रकार से विभाजन किया है।
(1) प्रथम विभाजन :- इसके अन्तर्गत इरेटोस्थनीज ने पृथ्वी को तीन भागों में विभक्त किया है।
(a) यूरोप
(b) एशिया
(c) लीबिया या अफ्रीका
(2)दूसरा विभाजन :- यह जलवायु कटीबंधों के आधार पर किया गया था। इस आधार पर इरेटोस्थनीज ने पांच जलवायु कटिबंधों का निर्धारण किया था।
1. उष्ण कटिबंध।
2.उत्तरी शीतोष्ण कटिबंध।
3.दक्षिणी शीतोष्ण कटिबंध।
4 उत्तरी शीत कटिबंध।
5.दक्षिणी शीत कटिबंध।
इरेटोस्थनीज ने बताया कि उष्ण कटिबंध पृथ्वी की परिधि पर 48 अंश(24 अंश प्रत्येक उत्तरी व दक्षिणी) के अंतर्गत विस्तृत है। उसने शीत कटिबंध ध्रुवों से 24 अंशों पर विस्तृत है। समशीतोष्ण कटिबंध की स्थिति उष्णकटिबंधों तथा धुवीय वृत्त के मध्य मानी थी।
🔜 इरेटोस्थनीज का भूगोल में योगदान:-
✍️✍️✍️(1) पृथ्वी की परिधि का मापन:-
इरेटोस्थनीज ने सर्वप्रथम पृथ्वी की परिधि के मापन का प्रयास किया पृथ्वी के गोलाभ,आकार,विस्तार,स्थिति विषयक समस्याओं के विषय में इरेटोस्थनीज ने अरस्तु तथा यूक्लिड की धारणाओं को अपनाया। वह पृथ्वी को ब्रह्मांड के मध्य में स्थित गोलाभ आकृति की मानता था। जिसके चारों ओर खगोलीय पिंड 24 घंटे चक्कर काटते हैं। इरेटोस्थनीज के अनुसार सूर्य व चंद्रमा अपनी स्वतंत्र गति से गतिमान है। इस प्रकार पृथ्वी की आकृति के बारे में उसका विचार आधुनिक भूगोलवेताओं से मिलते हैं।
इरेटोस्थनीज ने पृथ्वी की परिधि के मापन हेतु नोमोन यंत्र का उपयोग किया। उसने सूर्य की स्थिति का अवलोकन दो अलग-अलग स्थानों पर किया।
👉1.प्रथम अवलोकन :- साइएन(syene) असवान पर किया। इस स्थान पर एक गहरा कुआँ था। जिसके तल में ग्रीष्मकाल की कर्क सक्रांति को जल में सूर्य परावर्तित होता था। सूर्य की इस स्थिति को देखने के लिए बहुत से लोग एवं पर्यटक आते जाते रहते थे। जहां ग्रीष्म की कर्क सक्रांति को सूर्य ठीक सिर के ऊपर रहता था।
👉2.दूसरा अवलोकन :- अलेक्जेंड्रिया के म्यूजियम के बाहर किया। जहां एक लंबा स्तंभ था। इस स्तंभ को इरेटोस्थनीज में नोमोन की भांति प्रयोग कर अयनांत(Solstice) पर उसकी लंबाई की माप ली। इस प्रकार वह सूर्य की किरणों एवं सीधे खड़ेस्तंभ के बीच बने कोण को माप सका। इन गणनाओं को आधार मानकर उसने थेल्स के प्रसिद्ध प्रमेय का प्रयोग किया। इन गणनाओं के आधार इरेटोस्थनीज ने पृथ्वी की परिधि लगभग 25000 मील बताई। यह पृथ्वी की वास्तविक परिधि 24860 मील के समकक्ष है। इरेटोस्थनीज द्वारा पृथ्वी की परिधि के मापन में केवल त्रुटि यह थी कि उसने पृथ्वी को गोलाई में मापा जबकि वह ध्रुवों पर चपटी और उसकी आकृति गोलाभ हैं। इसलिए विषुवत रेखा का दीर्घ वृत्त (great circle)लंबाई में 25000 मील नहीं हो कर वास्तविकता में वह 24860 मील है। इस प्रकार की त्रुटि को नजरअंदाज किया जा सकता है,क्योंकि यह माप नोमोन द्वारा ली गई थी। यह यंत्र अधिक शुद्ध नहीं था।
✍️✍️✍️(2) पृथ्वी से सूर्य व चंद्रमा की दूरी का निर्धारण :- इरेटोस्थनीज ने पृथ्वी से सूर्य व चंद्रमा की दूरी भी निर्धारित करने का प्रयास किया। उन्होंने चंद्रमा को 780000 स्टेडिया और सूर्य को 4000000 स्टेडिया दूरी पर स्थित बताया। इसे किस प्रक्रिया द्वारा निर्धारित किया इसके विषय में कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। ये परिणाम सत्यता से बहुत दूर है।
✍️✍️✍️(3)अक्षांश एवं देशांतर का निर्धारण:-इरेटोस्थनीज प्रथम वैज्ञानिक भूगोलवेत्ता थे। जिन्होंने विषुवत रेखा की लंबाई शुद्ध एवं सही ढंग से निर्धारित करने का प्रयास किया। इन्होंने विश्षुवत रेखा को नोमोन यंत्र की सहायता से निर्धारित किया। इन्होंने विश्व मानचित्र हेतु निर्देशांको की व्यवस्था को विकसित किया। अक्षांश व देशांतर रेखाओं को मानचित्र में सर्वप्रथम इन्हीं के द्वारा खींचा गया। अतः इन्हें भू-गणित(Geodesy) का संस्थापक कहा जाता है। उसने नोमोन की सहायता से रोडे द्वीप का अक्षांश निर्धारित किया। जिसे वह पश्चिम में जिब्राल्टर जलडमरूमध्य तथा फरात नदी पर स्थित थापसाकस से गुजरता हुआ पूर्वी महासागर व हिमालय तक निर्धारित किया था। इरेटोस्थनीज ने आर्कटिक वृत्त को थूले(thule) पर स्थित माना। इरेटोस्थनीज के लिए देशांतर रेखाओं का निर्धारण करना ओर भी अधिक कठिन कार्य था। क्योंकि उस समय परिष्कृत मापन यंत्र उपलब्ध नहीं थे। अतः यह कार्य अशुद्ध व अवैज्ञानिक यंत्रों द्वारा किया गया। इन्होने ने दक्षिण की ओर देशांतर रेखा का निर्धारण एलेक्जेंड्रिया,साइआए, मेरोई, व रोडे से ट्राओस,बाइ़जन्टियम और बोरेस्थनीज(नीस्टर) के मुहाने से काला सागर तटीय भाग तक किया। दूसरी अन्य देशांतर को इरेटोस्थनीज ने कार्थेज, रोम और मेसीडोनिया के जल संयोजको से गुजरते हुए खींची। परंतु ये गणनाऐं अशुद्ध थी।
✍️✍️✍️(4) विश्व के विस्तार के विषय में इरेटोस्थनीज के विचार :- इरेटोस्थनीज के अनुसार विश्व का विस्तार उत्तर-दक्षिण की तुलना में पश्चिम-पूर्व की ओर अधिक है। इनके अनुसार विश्व अटलांटिक महासागर से पूर्वी महासागर तक 78000 स्टेडिया (7800 मील) की लंबाई में विस्तृत है। इसकी चौड़ाई सीनामन भूभाग से थूले समानांतर पर 38000 स्टेडिया (3800 मील) से अधिक नहीं है। इरेटोस्थनीज ने अधिवासित विश्व को थूल से तापराबोन (श्रीलंका) और अटलांटिक महासागर से बंगाल की खाडील तक विस्तृत मानता था। इरेटोस्थनीज को भूमध्य सागर के तट पर स्थित स्पेन व गाॅल के तटीय प्रदेशों का अत्यधिक शुद्व ज्ञान था। यूरोप के पश्चिमी प्रदेशों के बारे में उसका ज्ञान पाइथियस (प्रसिद्ध जहाजरान) के विवरणों पर आधारित था। उसे काला सागर के उत्तर में विस्तृत प्रदेश सिथिया के विषय में भी ज्ञान नहीं था। वह जर्मनी के उत्तरी तट से भी अवगत नहीं था।
(चित्र- इरेटोस्थनीज के अनुसार पृथ्वी की परिधि का मापन)
✍️✍️✍️(5) एशिया के विषय में इरेटोस्थनीज के विचार :-इरेटोस्थनीज ने एशिया के विषय में सिकंदर के विवरणों और लेखों पर विश्वास किया था। उसके अनुसार टाॅरस पर्वत आर्मीनिया,कुर्दिस्तान से संबंधित है। एलबुर्ज का सम्बन्ध हिमालय से है।
👉इरेटोस्थनीज ने गंगा नदी के प्रवाह को पश्चिम से पूरब दिशा की ओर वर्णित किया था। यह नदी पूर्वी महासागर में जाकर मिल जाती है ऐसा उसका विश्वास था। भारत की भौगोलिक स्थिति,आकृति आदि के विषय में इरेटोस्थनीज की जानकारी शुद्ध नहीं थी। वह भारतीय उपमहाद्वीप को समचतुर्भुज की आकृति का मानता था। इसके उत्तर में पश्चिम से पूर्व को हिमालय श्रेणी(Imous) सीमा बनाती है। उसका विश्वास था सिंधु नदी उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवाहित होती हैं। इरेटोस्थनीज प्रायद्वीपीय भारत को दक्षिण की बजाय दक्षिण पूरब की ओर विस्तृत मानता था। इरेटोस्थनीज को तापराबोन (श्रीलंका /Ceylon) के नाम की विषय में जानकारी थी। इसकी जानकारी यूनानीयों को सिकंदर के समय से हीथी। इरेटोस्थनीज तापराबोन को दक्षिण में भारत की भूमि से सात दिवसीय यात्रा की दूरी पर स्थित मानता था।
👉इरेटोस्थनीज को लाल सागर के विस्तार और लंबाई-चौड़ाई के विषय में पर्याप्त ज्ञान था। इरेटोस्थनीज ने इसका विस्तार स्वेज खाड़ी से टोलेमाई इपीथेरा तक 9000 स्टेडिया (900 मील) बताया है। इरेटोस्थनीज के पूर्ववर्ती विद्वानों की तुलना में नील नदी के विषय में उनका ज्ञान अधिक स्पष्ट एवं शुद्ध था। निचली नील नदी के विषय में इरेटोस्थनीज को पूर्ण ज्ञान था।
👉 इरेटोस्थनीज नूबियनोन का उल्लेख करने वाला प्रथम यूनानी भूगोलवेत्ता था। ये लोग नील नदी के पश्चिमी प्रदेश पर बसे हुए थे। अफ्रीका को इरेटोस्थनीज चारों ओर से महासागर द्वारा घिरा हुआ मानता था।
👉 इरेटोस्थनीज ने कैस्पियन सागर को उत्तरी महासागर की एक भुजा ही माना था।
✍️✍️✍️✍️ प्रमुख बिंदु :-
👉 इरेटोस्थनीज ने सूर्य के उत्तरायण एवं दक्षिणायन स्थितियों को ज्ञात करके सूर्य के कांति वृत्त तल(plane of eclliptic) के तिर्यकता की माप की थी।
👉इरेटोस्थनीज ने तत्कालीन सूचनाओं के आधार पर विश्व का एक मानचित्र निर्मित किया था। जिसमें 7 अक्षांश एवं 7 देशांतर रेखाओं को प्रदर्शित किया गया था। ये रेखाएं समान दूरी पर एवं दोषपूर्ण तरीके से दर्शाई गई थी। इस मानचित्र में यूरोप, एशिया और अफ्रीका महाद्वीपों को प्रदर्शित किया गया था। इस मानचित्र में अफ़्रीका एवं एशिया महाद्वीप को अपने वास्तविक आकार से बहुत छोटा दिखाया गया था।
👉इरेटोस्थनीज को प्राचीन क्रमबद्ध भूगोल का पिता भी माना जाता है।
👉इरेटोस्थनीज प्रथम विद्वान था जिसने नोमोन यंत्र की सहायता से विषुवत रेखा की सही लंबाई ज्ञात की थी।
👉इरेटोस्थनीज ने वास योग्य विश्व को एक्यूमेन (Ekumene) की संज्ञा दी थी।
👉इरेटोस्थनीज ने पृथ्वी का प्रथम यांत्रिक मॉडल प्रतिपादित किया था।
✍️✍️✍️निष्कर्ष :- उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि इरेटोस्थनीज एक महान गणितज्ञ एवं भूगोलवेत्ता था जिसने भूगोल को जिसने भूगोल में अतुलनीय योगदान दिया।
🌍 संदर्भ:-
1. भौगोलिक चिंतन का इतिहास-एस.डी.मौर्य
2. भौगोलिक चिंतन का इतिहास-माजिद हुसैन
3. वैकल्पिक भूगोल - एन.एन.ओझा
4. मानव भूगोल- प्रो. बी.एन सिंह
6.मानव एवं आर्थिक भूगोल- प्रो.बी.एन.सिंह
7.सामाजिक भूगोल- प्रो.बी.एन.सिंह
8.Human geography A.V.1966,longmans.
9.the Indian geographical Journal vol.51
10.the history of geography, New York.
11.the encyclopedia of philosophy, New York. etc.
thanks...... Mahi Gaur 🙏🙏🙏
2 टिप्पणियाँ
Nice work Sir it's very useful 👍
जवाब देंहटाएंWow super 🔥🔥🎉
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